खूनी खेल के ख़िलाफ़ दक्षिण कोरिया के पांच लाख वर्कर सड़क पर

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कोरोना महामारी के बाद लेबर मार्केट में आए उतार चढ़ाव का असर उभर कर सामने आने लगा है। अमेरिका में हो रही हड़तालों के साथ साथ दक्षिण कोरिया में 20 अक्टूबर को एक दिवसीय आम हड़ताल में 5 लाख वर्करों ने कार्य बहिष्कार कर आगे की लड़ाई के संकेत दे दिए हैं।

दक्षिण कोरिया में हर सेक्टर के वर्कर इस हड़ताल में शामिल हुए। पुलिस ने इस हड़ताल को विफल करने के हर इंतज़ाम किए थे लेकिन राजधानी सिओल में विशाल रैली आयोजित हुई। वर्करों ने ‘स्क्विड गेम’ के कास्ट्यूम पहन कर मज़दूरों की जीवन परिस्थितियों को दिखाने की कोशिश की।

‘स्क्विड गेम’ असल में एक वेब सिरीज़ है जिसमें कुछ चंद अमीरों के मनोरंजन के लिए आर्थिक तंगी से जूझ रहे आम लोगों के बीच खूनी खेल कराने पर आधारित है।

ये हड़ताल भी तीन महीने बाद जनवरी 2022 में पूरे देश स्तर पर आयोजित एक विशाल विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की तैयारी के लिए भी थी।

और अगले प्रदर्शन तक शहरी और ग्रामीण केंद्रों पर आम प्रदर्शन किए जाएंगे। कोरियन कॉनफ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन (केसीटीयू), जो कि देश में सबसे बड़ी केंद्रीय यूनियन है जिसकी सदस्य संख्या 11 लाख है, देश के शहरी ग़रीबों और किसानों को भी इस विशाल प्रदर्शन के लिए लामबंद कर रही है।

तीन मुख्य मांगें

  • पहला, पार्ट टाइम, टेंपरेरी या ठेका प्रथा को ख़त्म किया जाए और श्रम क़ानूनों के दायरे में सभी वर्करों को लाया जाए।
  • संकट के समय आर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के फैसलों में वर्करों को भी हिस्सेदार बनाया जाए।
  • मुख्य उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाए और शिक्षा और आवास जैसी सेवाओं का सामाजिकरण किया जाए।

सालाना सर्वाधिक काम के घंटे के मामले में दक्षिण कोरिया का तीसरा स्थान है। साथ ही 2015 में कार्यस्थल पर होने वाली मौतों के मामले में ये ओईसीडी (ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट) देशों में भी इसका स्थान तीसरा था।

देश के कुल वर्करों में 40 प्रतिशत अनियमित वर्कर हैं और अमेरिका की तरह ही इनमें अधिकांश गिग इकोनॉमी यानी ऐप आधारित डिलीवरी एवं अन्य सेवा में लगे हुए हैं।

दुनिया की तरह यहां भी अमीरी ग़रीबी के बीच की खाई बढ़ी है। साल 2016 के आंकड़ों के अनुसार, शीर्ष 10 प्रतिशत कमाने वाले देश की कुल आमदनी के 45 प्रतिशत पर कब्जा किए थे।

रीयल इस्टेट की वजह से देश में आवास की समस्या पैदा हो गई और स्वास्थ्य और शिक्षा में निजीकरण ने ग़ैरबराबरी को और बढ़ा दिया है।

कोरोना की शुरुआत से ही मज़दूर वर्ग एक के बाद एक झटके झेल रहा है।

सैमसंग, हुंडई या एलजी जैसे चमचमाते इलेक्ट्रॉनिक्स और कार ब्रांडों के पीछे शोषण की अनगिनत और भयावह कहानियां दबी हैं।

इसी साल की शुरुआत में एलजी के ट्विन टॉवर हेडक्वार्टर के सफ़ाई कर्मचारी 136 दिनों तक वहीं टेंट लगाकर धरना दिए रहे। एलजी ने किराए के गुंडों से वर्करों पर हमले करवाए, कड़कड़ाती ठंड में उनके टेंट प पानी डलवाए।

ये सफ़ाई कर्मचारी छंटनी, लेऑफ़ और काम के हालात को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।

असल में पूरे देश में कोई भी ऐसा उद्योग अछूता नहीं है जहां शोषण और असुरक्षित काम के हालात न हों। कोरिया कोल सरकारी कंपनी है। इसके वर्कर सांस की बीमारी और अत्यधिक काम लिए जाने से पीड़ित हैं।

एक खनिक ने अनियमित खनिकों की व्यथा बताते हुए कहा, “सरकार ने श्रमिकों की संख्या को आधा कर दिया। इसलिए हमारी यूनिट को दो यूनिटों के बराबर काम करना पड़ता है। सभी बीमार हैं। यहां ऐसा कोई नहीं है जो बीमार न हो।

हमारी मज़दूरी बढ़नी चाहिए थी, लेकिन वो वहीं की वहीं है। हम परमानेंट वर्कर का ही काम करते हैं लेकिन हमें आधी तनख्वाह मिलती है।”

(यह लेख ट्रुथआउट वेबसाइट से लिया गया है। पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।)

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