भूख से बड़ा बागी कुछ नहीं होता इस दुनिया में!- ख़ालिद ख़ान की कविताएं

workers resting at a shelter in Bhopal

(युवा कवि ख़ालिद ए. ख़ान की ये कविताएं बग़ावती तेवर लिए हुए होती हैं। कला के लिए कला या कविता के लिए कविता चाहे अपनी जगह सही हो, लेकिन अगर उसमें भविष्य के सपने न हों तो आवाम के लिए उसका कोई ख़ास महत्व नहीं रहता। खालिद की कविताएं भविष्य के सपने बुनती हैं, उम्मीद दिखाती हैं, वही उम्मीद जिसके सहारे आज देश के 10 करोड़ मज़दूर सैकड़ों किमी पैदल यात्राएं कर ले रहे हैं। सं.)

1.

लोग भूखे मर रहे हैं
अनाज सड़ रहे हैं
सरकारी गोदामों में

कौन है वो जो लिखता है
दाने दाने पर
खाने वाले का नाम!

2.

भूख थी
रोटी थी
खून में लिपटी
और था उस पर
धड़ाधड़ रौंदता
विकास का अंधा पहिया!

3.

रोटी शहरों में पैदा नहीं होती
शहर जीता है रोटी पर
हम भाग नहीं रहे है शहरों से
हम लौट रहे अपनी ज़मीनों पर
वहीं पैदा होती है रोटी
और अपनी ही ज़मीन से
उठ खड़ी होती है
कोई भी लडाई!

4.

अगर तुम छीनोगे
हमसे हमारी रोटी
तो अपने कदमों तले
रौंद सकता हूं मैं ये पूरी धरती
मिटा सकता हूं सभ्यता के निशान
उलट पलट सकता हूं
तुम्हारी सारी व्यवस्था
घोंप सकता तुम्हारे सीने में चाकू
भूख से बड़ा बागी कुछ नहीं होता
इस दुनिया में!

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)