झारखंड में मनरेगा मज़दूर बैठे हड़ताल पर, स्थाई नौकरी की मांग

झारखंड के मनरेगा कर्मी अपनी पांच मांगो को लेकर 27 जुलाई से अनिश्चितकालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर हैं। पर सरकार अभी भी खामोश है।

लॉकडाउन के कारण भारत में बेरोज़गारी की बाढ़ आगई है। लेकिन मनरेगा में पद खाली पड़े हैं।

मेहनतकश के अनुसार, झारखंड मनरेगा यूनियन ने बिते 12 जून और 17 जून को सरकार से मनरेगा मज़दूरों की मांगो को लेकर बात करने की कोशिश की थी, पर कोई हल नहीं निकला।

फिर 19 जून को मनरेगा कमिश्नर से बातचीत हुई पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।

अंत में मनरेगा यूनियन ने अनिश्चितकालीन राज्यव्यापी हड़ताल करने का फैसला लिया।

अपनी पांच मांगो को लेकर मनरेगा मज़दूर हड़ताल कर रहे हैं। मज़दूरों की मांग है कि झारखंड़ मनरेगा में काम करने वाले मज़दूरों को स्थाई नौकरी दी जाए।

परमानेंट रहने तक पद के अनुसार अच्छा वेतन दिया जाए।

मनरेगा मज़दूरों का 25 लाख का लाइफ इंश्योरेंस कराया जाए और स्वास्थ्य बीमा का फायदा दिया जाए।

50 फीसदी आरक्षण की मांग

मनरेगा में काम करने के  दौरान यदि किसी मज़दूर की मौत होती है तो उनके परिवार को 25 लाख का मुआवजा दिया जाए और सरकारी नौकरी भी।

इनकी डिमांड है कि किसी आरोप में मनरेगा मज़दूरों को फौरन काम से निकालने के बजाए सरकारी कर्मचारियों की तरह छान-बीन की जाए।

निकाले गए मज़दूरों को दोबारा नौकरी पर रखा जाए और इसके अलावा मनरेगा कर्मियों को सीमित उप समाहर्ता की परीक्षा में बैठने का अवसर दिया जाए।

झारखंड मनरेगा में काम करने वाले कर्मचारियों की उम्र सीमा में छूट और खाली पड़े पदों पर 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की जाए।

बिहार की तरह मनरेगा को स्वतंत्र इकाई घोषित करते हुए मनरेगा मज़दूरों को इनके क्रियान्वयन की पूरी जिम्मेदारी दी जाए।

आंकड़ों के अनुसार मनरेगा मज़दूरों की संख्या घट गई है। यदि हड़ताल इसी तरह जारी रही तो मनरेगा के अंतर्गत होने वाले काम रुक जाएंगे और राज्य के विकास में बांधा आएगी।

कोरोना महामारी के समय मनरेगा कई लोगों के लिए सहारा बना रहा। अगर सरकार ने जल्द कोई फैसला नहीं किया तो कई मज़दूर बेरोज़गारी और भुखमरी का शिकार हो जाएंगे।

लॉकडाउन से 84 हज़ार से अधिक योजनाए प्रभावित

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश पर पांच अगस्त  को राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने झारखंड यूनियन को बोकारो जिला स्थित भंडारीदह पर बुलाया था।

सचिव जॉन पीटर बागे ने बताया कि, मंत्री जी ने कहा हमारी डिमांड एकदम सही है। इस पर विचार करेंगे।

उन्होंने आगे कहा, मांगो को पूरा करने के लिए सरकार और यूनियन के बीच समझौते का का काम करेंगे।

यूनियन के प्रदेश सचिव जॉन पीटर बागे कहते हैं, “झारखंड के कुछ अधिकारी मनरेगा के मज़दूरों के खिलाफ सरकार का कान भरने में लगे हैं। ये लोग झारखंड़ का विकास नहीं देख सकते हैं।”

जाहीर है कोरोना और लॉकडाउन के कारण कई क्षेत्रों में लोग बेरोज़गार हो गए हैं। इसका असर दिहाड़ी मज़दूरों पर सबसे अधिक पड़ा है।

इस दौर में मनरेगा ही मज़दूरों का सहारा बनी रही। इस में काम करने वाले कई कुशल कारीगर भी शामिल थे।

बता दें कि हड़ताल से मुख्यमंत्री द्वारा चार मई को की गई घोषणा समेत महत्वकांक्षी तीन योजनाओं को लेकर कुल चार लाख 84 हजार 17 योजनाएं सर्वाधिक प्रभावित हो रही हैं।

मनरेगा में 1499 पद रिक्त

चार मई को प्रारंभ की गई योजनाओं में बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर पीतांबर जल समृद्धि योजना और शहीद पोटो हो खेल विकास योजना शामिल है।

पूरे झारखंड में मनरेगा मज़दूरों के 1499 पद खाली पड़े हैं। कई प्रखण्डों में प्रखण्ड कार्यक्रम जैसे महत्वपूर्ण पद रिक्त हैं।

सरकार के इस रवैये से मनरेगा कर्मी कई बार परेशान हो जाते हैं। वहीं इस में काम करने वाले मज़दूरों का वेतन 7 हज़ार से 20 हज़ार के भीतर ही है।

लॉकडाउन से पहले सात लाख लोग मनरेगा में काम कर रहे थे। पर दो दिन के भीतर ही ये आंकड़ा घट कर तीन लाख हो गया है।

ये आंकड़ा 70 हजार से एक लाख प्रतिदिन घटने का अनुमान है। सरकार के आदेश पर मनरेगा में काम करने के लिए सरकार के विभागों में काम करने वाले अन्य लोगों को रखा गया है। पर इससे कोई खास असर नहीं पड़ रहा है।

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