प्रवासी मज़दूरों की शिकायतः मनरेगा में जेसीबी मशीनों से खुदाई कर लाखों रुपये की हेराफेरी

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लॉकडाउन के चलते बेरोजगार मजदूरों के लिए एक ओर शासन मनरेगा के तहत कार्य करवा रही है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों ने इन योजनाओं को अपनी कमाई का जरिया बना रखा है। मजदूरों से कराए जाने वाले काम खुलेआम मशीनों से कराए जा रहे हैं। इससे मजदूरों का हक छीना जा रहा है।

इस तरह का मामला शुक्रवार को क्षेत्र के गंधावड़ रोड स्थित सालिया तालाब से सटे फारेस्ट लैंड (नर्सरी) में देखने को मिला। यहां पौधे लगाने के लिए जिम्मेदार लोग मशीनों से गड्ढे खुदवा रहे हैं।

नर्सरी के दोनों और कुछेक मजदूरों को काम पर लगाकर नर्सरी के बीच खुलेआम जेसीबी मशीनों से कार्य करवाया जा रहा है जबकि नियमानुसार शासन ने मशीनों से कार्य लेने पर रोक लगाई है। मौके पर तीन मशीनें गड्ढों की खुदाई कर रही थी।

यहां मौजूद 15-20 मजदूरों ने जितने गड्डे नहीं खोदे उससे दस गुना मशीनों ने गड्ढे तैयार कर दिए। इस संबंध में रेंजर रामगोपाल दशोरे ने बताया कि यह काम फारेस्ट मद के अंतर्गत हो रहा है। इसमें मजदूरों व मशीन दोनों की स्वीकृति है। (खबर नईदुनिया)

70 % मज़दूर हैं कुशल कारीगर

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, लॉकडाउन की घोषणा होते ही, चंपालाल भील गुजरात के बोटाद से अपने घर राजसमंद पैदल ही चले गए।

बिजली का काम करने वाले चंपालाल करीब दो साल पहले अपने परिवार के साथ गुजरात काम काज की तलाश में गए थे।

चंपालाल बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते जब उन्हें वहां काम मिलना बंद हो गया तो वह अपने गाँव कॉलेट्रा वापस चला आया, पर गांव में कोई रोजगार न होने के कारण उसे अपनी पत्नी के साथ ‘मनरेगा’ में काम करना पड़ा, जो कि तीसरी बार मां बनने वाली है।

राजस्थान के मनरेगा आयुक्त पी सी किशन का कहना है कि 25 वर्षीय कुशल कारीगर, जो अब जीवित रहने के लिए ‘मनरेगा’ में रोजगार तलाश रहा है, अकेला नहीं है।

वो कहते हैं, “राज्य में वापस आने वाले प्रवासी श्रमिकों में से 60-70% कुशल हैं। क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है तो, अतः उनमें से अधिकांश ने ‘मनरेगा’ की ओर रुख किया है, जो वर्तमान में राज्य में 52 लाख से अधिक मजदूरों को रोजाना काम दे रहा है, ये देश में सबसे ज्यादा है।”

17 अप्रैल तक यह संख्या 62,000 हजार थी, जो अब रोजाना बढ़ रही है। राजस्थान ‘मनरेगा’ में काम करने वाले मज़दूर रोजाना 220 रू.कमा लेते हैं।

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