पढ़िए 9 अगस्त की हड़ताल पर मज़दूर संगठनों ने क्या कहा ?

सेंट्रल ट्रेड यूनियनों और मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने मिलकर 9 अगस्त को देशव्यापी आंदोलन की घोषणा की है।

17 से अधिक संगठनों ने 9 अगस्त को हुई हड़ताल का समर्थन करते हुए अपने विचार भी व्यक्त किए हैं। जो आज हम आप को यहां बता रहे हैं।

प्रधानमंत्री जी क्या आप अपने उन शब्दों को भूल गए जिसमें आपने ने कहा था, कोरोना से 21 दिन में भारत को निजात दिला देंगे। लेकिन उसी कोरोना का इस्तेमाल आप अवसर की तरह कर के जनता का शोषण कर रहे हैं।

24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते हुए मोदी जी ने कहा था कि इस काल से लड़ने के लिए हम देश वासियों को 21 दिन एहतियात बरतने होंगे।

इनके बयान के पांच महीने बाद भी स्थिती जस की तस है। बिना किसी योजना के किए गए लॉकडाउन की मार देश की जनता झेल रही है।

कोरोना की आड़ में कंपनी मालिक मज़दूरों का शोषण कर रहे  हैं। सरकार श्रम क़ानूनो को रद्द कर रही है।

मोदी सरकार देश की निजी संपत्ति को पूंजीपतियों के हवाले कर रही है।

workers of the world unite

क़ानून को पूंजीपतियों के पक्ष में किया जा रहा है।

सब क़ानून पूंजीपतियों के पक्ष में और मज़दूरों के ख़िलाफ लागू किया जा रहा है।

कई लोगों की नौकरियां रातों-रात चली गई। लोग डिग्री लेकर सड़कों पर घूम रहें हैं। बेरोज़गारों की फौज बढ़ती जा रही है।

युवा काम की तलाश कर रहा है। काम करने वालों को महीनो से वेतन नहीं मिला है।

फ्रंट लाइन में खड़े होकर काम करने वाले, सफाईकर्मी, डॉक्टर, नर्स, स्कीम वर्कर्स, आदि को 3 महीने से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है।

लॉकडाउन के 5 दिन बाद मोदी सरकार ने घोषणा की, कोई भी नियोक्ता अपने कर्मचारी को काम से न निकाले और न ही वेतन काटे। पर सब कुछ इसके विपरीत हुआ।

सरकार ने इस आदेश को 17 मई को वापस ले लिया। और 4 जून को वेतन को लेकर सुनवाई के दौरान सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस वादे से पीछे हट गई।

मज़दूरों की ताकत सत्ता को हिला देगी

सरकार का तर्क था कि, ‘जब लॉकडाउन शुरू हुआ था, तब कर्मचारियों के काम वाली जगह को छोड़कर अपने गृहराज्यों की ओर पलायन करने से रोकने की मंशा के तहत अधिसूचना जारी की गई थी। लेकिन अंततः ये मामला कर्मचारियों और कंपनी के बीच का है और सरकार इसमें दखल नहीं देगी।’

कोर्ट, संसद सब कुछ बंद था। लॉकडाउन की आड़ में श्रम क़ानूनों में भयंकर बदलाव किया गया। नए श्रम क़ानूने में पूंजीपतियों को मज़दूरों का शोषण करने के लिए पूरी छूट दे दी गई।

सरकार इस समय सब कुछ बहूत तेजी से निजी हाथों में दो रही है। क़ानूनो को बदला जा रहा है।

कोयला खदानों, रेल, शिक्षा, बिमा, बैंक, टेलीकॉम कंपनियों को निजी हाथों में बेच दिया गया है। इससे सरकार को प्रकृती को लूटने में आसानी होगी।

सरकार सब कुछ क़ानून के विपरीत कर रही है। संविधान का उल्लंघन कर रही है। इस से समाज सेवियों, मज़दूर संघ, आंदोलनकारियों और पत्रकारों पर हमला बढ़ता जा रहा है।

सरकार को भलीभाती पता है मज़दूरों में वो ताकत है जो सत्ता को हिला देगी। इसीलिए मज़दूरों पर अत्याचार किया जा रहा है। उनमें फूट डाली जा रही है। बढ़ते जुल्म के ख़िलाफ हम सभी मज़दूरों को एक होना चाहिए और सत्ता से लड़ना चाहिए।

अत्याचार के ख़िलाफ लड़ना ही उपाय है

हमें आज़ादी लड़कर ही मिली थी। एक बार फिर आज़ाद होने के लिए लड़ना पड़ेगा। क्योंकि लड़ना ही एकमात्र उपाय है।

हम 7 और 8 अगस्त को हुई मानदेय मज़दूरों की हड़ताल का समर्थन करते हैं।

हम सभी साथी 9 अगस्त को होने वाला देशव्यापी हड़ताल में हिस्सा लेंगे।

ट्रेड यूनियन 18 अगस्त को होने वाला कोयला मज़दूरों की हड़ताल का समर्थन करता है।

प्रदीप IFTU, गौतम मोदी NTUI, संजय सिंघवी TUCI, विजय कुमार AIFTU-N, ओपी सिन्हा AIWC, उमेश दुशाद ECL TSAU,एस पालनीस्वामी NDLF, एस वेंकटेश्वर राव IFTU, कन्हाई बरनवाल IFTU-Sarwahara, नागेन्द्र IMK, सुरिंदर IMK, पंजाब, सुदेश कुमारी, JSM, हरियाणा, वरदा राजन KSS, केके सिंह MSK, मुकुल MSK, अशोक GMU, बिहार, अमिताव भट्टाचार्य SWCC, पश्चिम बंगाल

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