श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से दक्षिण पश्चिम रेलवे को 28.9 करोड़ की हुई कमाई

कर्नाटक से देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवासी श्रमिकों को ले जाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के संचालन से, दक्षिण पश्चिम रेलवे ने 28.9 करोड़ की, कमाई की है।

लगभग 3.32 लाख प्रवासी श्रमिकों को घर पहुचांने के लिए, 229 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया गया था।

प्रवासी श्रमिक अपने गृहराज्य वापस जाने के लिए, 23 मई तक  टिकटों का भुगतान स्वंय कर रहे थे। हालाँकि, कुछ राज्य जैसे उत्तरप्रदेश, असम और केरल प्रवासी श्रमिकों की यात्रा खर्च उठा रहे थे।

दक्षिण पश्चिम रेलवे के मुख्य पीआरओ, ई. विजया ने बताया, 23 मई के बाद, प्रवासी श्रमिकों की यात्रा मुफ्त कर दी गई थी। यात्रा का पूरा खर्च राज्य सरकारें उठाने लगी थी।

शुरूवात में प्रवासी श्रमिकों से किराया वसूलने को लेकर विपक्ष ने सरकार की जमकर आलोचना की। तब जाकर 22 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस येदियुरप्पा ने घोषणा की कि राज्य सरकार प्रवासी श्रमिकों की यात्रा का खर्च उठाएगी  (यह खबर द हिंदू में प्रकाशित हो चुकी है)

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85 पर्सेंट प्रवासियों को चुकाना पड़ा घर वापसी का किराया: सर्वे

यदि एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर विश्वास किया जाए, तो 85 प्रतिशत से अधिक प्रवासी मज़दूर, जो कोरोनोवायरस के कारण हुए लॉकडाउन में अपने गृहराज्य से दूर फंसे हुए थे, उन प्रवासी मज़दूरों को घर वापस जाने के लिए यात्रा का किराया खुद चुकाना पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 62 प्रतिशत प्रवासी मज़दूरों ने यात्रा के लिए 1,500 रुपये से अधिक का भुगतान किया।

एक वॉलंटियर ग्रुप स्ट्रेंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) ने एक फोन सर्वे किया है, जिसमें 1,963 प्रवासियों से बात की गई है। इसमें से सिर्फ 33 पर्सेंट लोग ही अपने घर को जा पाए, बाकी के 67 पर्सेंट लोग मजबूरी में शहर में ही रुक गए। जो गए भी, उनमें से 85 पर्सेंट ने घर जाने का किराया अपने जेब से दिया है।

‘टु लीव ऑर नॉट टु लीव: लॉकडाउन, माइग्रैंट वर्कर्स ऐंड देयर जर्नी होम’ नाम से यह रिपोर्ट शुक्रवार को जारी हुई है। यह सर्वे मई के आखिरी और जून के पहले हफ्ते में किया गया है।

सर्वे के मुताबिक, सुप्रीमकोर्ट का 28 मई का वह आदेश काफी देरी से आया, जिसमें सरकारों को कहा गया कि वे प्रवासियों के जाने का खर्च उठाएं। जानकारी के मुताबिक, मई की शुरुआत में ही काफी प्रवासी अपने घरों को जा चुके थे।

सर्वे के मुताबिक, जितने लोग घर को गए उसमें से 44 पर्सेंट लोगों ने बस पकड़ी और 39 पर्सेंट को श्रमिक स्पेशल ट्रेन में जगह मिल गई। लगभग 11 पर्सेंट लोग ट्रक, लॉरी और अन्य साधनों से अपने घर को गए। 6 पर्सेंट लोग ऐसे भी थे, जो पैदल ही अपने गांव को लौट गए। रिपोर्ट के मुताबिक, शहरों में फंसे 55 पर्सेंट लोग किसी भी हाल में अपने घर जाना चाहते हैं।  (यह खबर टाइम्स नाउ न्यूज़ में प्रकाशित हो चुकी है)

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‘जेसीबी इंडिया’ ने 400 कर्मचारियों को दिखाया बाहर का रास्ता

“इकोनॉमिक टाइम्स” में प्रकाशित खबर के मुताबिक भारतीय कंपनियां अनलॉक 1.0 में खुल सकती हैं, लेकिन कुछ कंपनियों के लिए, कर्मचारियों की छँटनी प्राथमिकता बन गई है। भारत की सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट कंपनी जेसीबी इंडिया ने 400 कर्मचारियों की छँटनी कर दी है। पिछले एक पखवाड़े में इन कर्मचारियों को निकाला गया है।

इसमें से 80-90 कर्मचारी डीजीएम से लेकर वाइस प्रेसीडेंट स्तर के हैं। कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट सेक्टर में 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी रखनेवाली जेसीबी इंडिया में कुल 8,000 कर्मचारी हैं। इसमें से 4,000 कर्मचारी परमानेंट हैं। जबकि बाकी कांट्रैक्ट पर हैं।

कंपनी ने इन कर्मचारियों को 6 महीने की सैलरी दी है। इसमें से कई कर्मचारी तो 15 सालों से काम कर रहे थे। हालांकि कंपनी पर कोई कर्ज नहीं है और इसका ऑर्डर बुक भी मजबूत है

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