कर्मचारियों को आत्महत्या करने पर मज़बूर करने वाले मैनेजमेंट को जेल और ज़ुर्माना

france telecom chief executive Didier Lombard

By रवींद्र गोयल

पेरिस की आपराधिक अदालत ने हाल ही में  दूरसंचार कंपनी  फ्रांस टेलीकॉम (जिसका नया नाम ‘ऑरेंज’ है)  और इसके आला अफसरों  को एक दशक पहले अपने 35 कर्मचारियों  को आत्महत्या के लिए मज़बूर करने का दोषी पाया है।

कर्मचारियों के वकील इस संख्या को कम से कम इससे दो गुना बताते हैं। अदालत ने कंपनी और उस समय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सहित पूर्व प्रबंधन टीम के दो और सदस्यों पर जुर्माना किया और तीन अफसरों को चार महीने की जेल की सजा भी सुनाई।

अदालत ने कंपनी को पीड़ितों को हर्जाने के रूप में 30 लाख यूरो (तकरीबन 252 करोड़ रुपये ) का भुगतान करने का आदेश भी दिया है।

2000-2010 के दशक के मध्य में इन अफसरों ने कंपनी के 1,20,000 कर्मचारियों में से 22,000 कर्मचारियों को काम से निकालने के लिए कंपनी में भय का ऐसा माहौल बनाया की कई कर्मचारियों को आत्महत्या या आत्महत्या के प्रयास करने पड़े। कई कर्मचारी डिप्रेशन के भी शिकार हो गए।

यह गौरतलब है की इन कर्मचारियों को नौकरी की शर्तों के अनुसार, कानूनी रूप से नहीं निकाला जा सकता था। केस की सुनवाई के दौरान कर्मचारियों ने कंपनी द्वारा सुनियोजित उत्पीड़न के बारे में विस्तार से बताया।

https://www.youtube.com/watch?v=eKpjwftgpbs&t=565s

मैनेजमेंट परेशान करता था

सुनवाई के  दौरान उन्होंने अपने हताश सहकर्मियों के बारे में बताया जिन्होंने खुद को फाँसी पर लटका लिया, खुद को आग लगा ली, या खुद को खिड़कियों से बाहर, गाड़ियों और पुलों और राजमार्गों के नीचे फेंक दिया था।

ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि कंपनी अफसरों ने उन्हें जानबूझकर ऐसी काम दिए जिनको  वो पूरा नहीं कर सकते थे।

आत्महत्या करने वालों में सबसे छोटा , 28 वर्षीय निकोलस ग्रेनोविले था, जिसने अपने गले में एक इंटरनेट केबल डाल  कर खुद को गैरेज में फाँसी पर लटका लिया।वो एक जिम्मेवार तकनीशियन था जो फोन लाइनों पर अकेले काम करता था। कंपनी ने अचानक उसे निकाल दिया।

ग्राहकों के साथ बिक्री के काम में बिना किसी प्रशिक्षण  के लगा दिया गया। अगस्त 2009 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले ही श्री ग्रेनेविले ने लिखा था, “मैं इस काम को अब और ज्यादा नहीं कर सकता। फ्रांस टेलेकॉम को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा उसे सिर्फ पैसे की चिंता है।”

इसी तरह 30 साल  से ज्यादा समय  से काम कर रहे  एक 57 वर्षीय कर्मचारी ने कंपनी के कार पार्किंग में अपने को आग लगा कर आत्महत्या कर ली।चार बच्चों के पिता, रेमी लुव्रादो, नाम के इस कर्मचारी की आत्महत्या का कारण उसके बार बार के ट्रान्सफर  को बताया जा रहा है।

france telecome suicide

अदालत ने दोषी पाया

पेरिस की आपराधिक अदालत ने पाया कि भय के माहौल के द्वारा कर्मचारियों को कम करने का यह तरीका किसी भी तरह से उचित नहीं था।  अदालत ने  अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “22,000  कर्मचारियों को कम करने के  लिए चुने गए साधन अनुचित थे।”

अधिकारियों ने कर्मचारियों की कार्य स्थितियों को बिगाड़ने के लिए एक सचेत योजना बनाई  ताकि कर्मचारी काम छोड़ कर स्वयं चलें जाएँ। और कहा कि इस नीति ने “चिंता का माहौल बनाया” जिसके कारण आत्महत्याएं हुई।

कंपनी अधिकारियों ने अपने बचाव में कहा  कि कर्मचारियों  ने कंपनी को स्वेच्छा से छोड़ था। लेकिन इस दावे का फैसले ने नकार दिया। स्वयं कंपनी  के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) श्री लोम्बार्ड ने 2006 में कंपनी के अन्य अधिकारियों से कहा था  कि कर्मचारियों को जाना होगा चाहे  “खिड़की से  या दरवाजे से”।

आत्महत्या के सवाल पर कंपनी का मानना था  की इतनी बड़ी कंपनी के लिए आत्महत्या की दर कोई सांख्यिकीय रूप से असामान्य नहीं है। कंपनी के अपराधी ठहराए  गए अफसरों ने कहा है कि वो इस फैसले को चुनौती देंगे।

इसके विपरीत कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली  यूनियनों ने फैसले का स्वागत  किया। उन्होंने कहा है कि  “इसे एक उदाहरण के रूप में समझा जाये ताकि  फिर कभी (कार्यस्थल पर) सामाजिक हिंसा की ऐसी नीति न बने।”

यह गौरतलब है कि हालिया वर्षों में दुनिया के पैमाने पर  पहली बार फ्रांस की एक कंपनी को इस तरह के अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इस फैसले का ज्यादा श्रेय फ्रांस टेलीकॉम के कर्मचारी यूनियनों को ही जाता है। यूनियनों की पहल के  कारण प्रबंधन और सरकारी नीति दोनों में आमूल-चूल परिवर्तन हुए।

देर से ही सही फैसला आया

ये सफल हो पाए क्योंकि उन्होंने श्रमिकों को एक सुसंगत संदेश के चारों ओर जुटाया और फिर उस संदेश को जनता तक पहुँचाया: श्रमिकों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को शेयरधारक रिटर्न से ऊपर माना जाना चाहिए।

और कंपनियों को अपने कर्मचारियों की भलाई के लिए जिम्मेदार होना होगा। लेकिन इस काम में काफी समय लगा। ध्यान रहे की सार्थक फैसला आने में कई साल लग गए।

फ्रांस टेलीकॉम के कर्मचारीयों द्वारा अनुभव किए जाने वाले  गैरकानूनी “संस्थागत नैतिक उत्पीड़न” और उससे पैदा होनेवाली कार्य स्थल पर अत्यधिक अमानवीय काम की स्थितियां और  तनाव  भारतीय उद्योग जगत की भी सच्चाई है।

इस दरिंदगी के उदहारण के तौर पर पिछले साल होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर्स कंपनी द्वारा निकले गए एक मजदूर द्वारा आत्माहत्या या 2012 में मारुति से निकाले गए मज़दूर की इस साल की शुरुआत में की गई आत्महत्या के रूप में देखा जा सकता है।

इसी महीने गुजरात में एक कंपनी में 10 दलित मजदूरों ने ज़हर पीकर आत्माहत्या की कोशिश की है। ऐसे और भी सैंकड़ों उदहारण पिछले सालों में गिनाये जा सकते हैं।

रेमी लुव्रादो  के बेटे ने कोर्ट के बाहर सही ही कहा था : “ कौन डरे इसके पक्ष बदलने होंगे। इन लोगों ( प्रबंधन ) को अपने आपको बेलगाम समझना बंद करना होगा, ताकि वे फिर कभी ऐसा न करें। और  दूसरी कंपनियों में ऐसा न करें, क्योंकि उन्हें समझना होगा कि इन ऐसे कर्मों से उनको जेल जाने का खतरा है।”

france telecome suicide case

फ्रांस में दिए गए इस फैसले का एक सरल और सुसंगत संदेश है  कि नियोक्ताओं/ उद्योगपतियों  की एक सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी होती  है कि वे अपने मुनाफे को बढ़ाने  की चिंता के साथ साथ  अपने कर्मचारियों को स्वस्थ और सुरक्षित नौकरी प्रदान करें।

अधिक स्पष्ट रूप से कहें: जब मुनाफे की भूख में  प्रबंधक अपने श्रमिकों के काम करने की शर्तों को असहनीय बना दें  तो उन्हें जेल जाना चाहिए। न कि जैसा मारुति के 18 जुलाई 2012 के केस में हुआ।

मारुति वाले मामले में 13 आरोपियों को हत्या के जुर्म में गैर कानूनी तरीके से उम्रकैद की सजा सुनाई गयी। यह फैसला न्याय/ कानून पर आधारित न होकर सरकार की हर शर्त पर विदेशी पूँजी को बुलाने और उन्हें मुनाफे की खुली छूट देने की नीती पर आधारित था।

उम्मीद की जानी चाहिए  की फ्रांस टेलीकॉम के मामले में  यह फैसला आने  वाले समय में कानूनी चिंतन  में एक  मजदूर हितैषी मोड़ लाने में मदद करेगा।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)