वर्कर्स यूनिटी का असर बडवाइज़र मैनेजमेंट की पिट्ठू कमेटी से बीएमएस ने नाता तोड़ा

budwiser worker

(August 8, 2019)

बीयर बनाने वाली दुनिया की अग्रणी कंपनी बडवाइज़र के सोनीपत मूर्थल प्लांट में मैनेजमेंट की पिठ्ठू यूनियन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी की मज़दूर यूनियन बीएमएस ने अपने हाथ खींच लिए।

चार अगस्त को धरनास्थल पर पहुंच कर बीएमएस के ज़िला प्रधान श्रीकृष्ण सिंह ने हरियाणा ब्रेवरीज़ लिमिटेड यूनियन के धरनारत मज़दूरों को आकर अपनी कमेटी को तत्काल प्रभाव से ख़त्म करने का पत्र सौंपा।

ज़िला प्रधान कृष्ण ने खुद स्वीकार किया कि ये कमेटी मैनेजमेंट की मिलीभगत से बनाई गई थी और साल 2016 से जो यूनियन कमेटी काम कर रही है उसी को सभी मज़दूर समर्थन करें।

यूनियन नेता देशराज ने बताया कि मैनेजमेंट की पिट्ठू यूनियन का ख़त्म होना मज़दूरों की जुझारू लड़ाई का नतीजा है।

देशराज ने वर्कर्स यूनिटी की मज़दूर वर्गीय निष्पक्ष पत्रकारिता को श्रेय देते हुए कहा कि उससे पहले मीडिया संस्थान उनके धरने को दिखाने और छापने में कोताही बरतते थे।

सात जुलाई को धरना प्रदर्शन के 500 दिन पूरे होने पर वर्कर्स यूनिटी ने धरनास्थल से फ़ेसबुक लाईव किया था जो वायरल हो गया।

इसके बाद कई मीडिया संस्थानों ने इस ख़बर को सुर्खियां बनाईं और इसीलिए यूनियन के दो अगुआ नेताओं को निलंबित भी किया गया, जिनके बारे में घरेलू जांच की जा रही है।

https://www.facebook.com/WorkersUnity18/videos/635309330301492/

बीएमएस की भूमिका

एक मज़दूर ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि बीएमएस की शह पर ही हरियाणा ब्रेवरीज़ लिमिटेड यूनियन के ख़िलाफ़ 20-25 मज़दूरों को लेकर मैनेजमेंट ने विरोधी यूनियन का गठन कराया।

ये बीएमएस ही थी जिसने इस मैनेजमेंट की पिट्ठू यूनियन को न केवल शह दी बल्कि संबद्धता भी दे दी। मैनेजमेंट इसी यूनियन से वार्ता करता था और अपनी मनमर्ज़ी चलाता था।

मज़दूरों का आरोप है कि बीएमएस ने मैनेजमेंट की साजिश में हिस्सेदारी की और जब ख़बर वायरल होने के बाद उसके चेहरे से नकाब उठा तो उसने मज़बूरी में अपनी संबद्धता ख़त्म की।

जुलाई के प्रथम सप्ताह में बीयर बनाने वाली दुनिया की अग्रणी कंपनी बेल्जियम की बडवाइज़र ब्रांड की एबी इनबेव कंपनी के मजदूरों के प्रदर्शन के 500 दिन पूरे हो गए थे।

तीन साल पहले चार परमानेंट वर्करों को फैक्ट्री से गैरकानूनी तरीके से निकाल दिया गया और उसी के बाद मज़दूर धरने पर बैठ गए।

उस दौरान 20 दिनों तक धरना प्रदर्शन के बाद समझौता हुआ लेकिन अभी तक उन वर्करों की कार्य बहाली नहीं हुई है।

इस दौरान वर्कर अपने काम से लौट कर धरने पर लगातार बैठते रहे। छुट्टी के दिन पूरी शिफ़्ट के लोग वहां बैठते हैं।

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