क्या बिल गेट्स वाक़ई बहुत परोपकारी, दरियादिल इंसान हैं?

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By धर्मेंद्र आज़ाद

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस की दूसरी लहर का सामना कर रही है। इस महामारी से लाखों लोगों की जानें जा रही हैं, लोगों की मदद के लिये विश्वस्तर पर साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है।

लेकिन इसी बीच कथित परोपकार के लिए मशहूर माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल ग्रेट्स (Bill Gates) ने भारत व अन्य विकासशील देशों को कोरोना वैक्‍सीन का फ़ॉर्मूला न देने की वकालत की है।

स्काई न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में जब बिल गेट्स से पूछा गया कि क्या इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ को बदलना संभव होगा, जिससे कोविड वैक्सीन का फॉर्मूला अन्य देशों के साथ साझा करने में हम सक्षम हो सके।

इसका जवाब देते हुए बिल गेट्स ने कहा, ‘कोरोना वैक्सीन का फॉर्मूला विकासशील देशों को नहीं दिया जाना चाहिए। इस वजह से विकासशील और गरीब देशों को भले ही कुछ समय इंतजार करना पड़े, लेकिन उन्हें वैक्सीन का फॉर्मूला नहीं मिलना चाहिए।’

बिल गेट्स ने कहा, ‘भले ही दुनिया में वैक्सीन बनाने वाली बहुत सी फैक्टरियां हैं, और लोग टीके की सुरक्षा को लेकर बहुत ही गंभीर हैं। फिर भी दवा का फार्मूला नहीं दिया जाना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘यूएस की जॉनसन एंड जॉनसन फैक्ट्री और भारत की एक फैक्टरी में अंतर होता है। वैक्सीन को हम अपने पैसे और अपनी विशेषज्ञता से बनाते हैं। वैक्सीन फॉर्मूला किसी रेसिपी की तरह नहीं है कि इसे किसी के भी साथ शेयर किया जा सके। इसके लिए बहुत अधिक सावधानी रखनी होती है, टेस्टिंग करनी होती है, ट्रायल्स करने होते हैं। वैक्सीन बनने के दौरान की हर चीज बहुत ही सावधानी से देखनी होती है।’

यानी इन्हें विकसित करने में बहुत धन लगता है, फिर क्यों मुनाफ़ा कमाने का मौक़ा गँवाया जाये? कुछ लाख लोग मरते हों तो मरें। ये है बिल गेट्स जैसे पूँजीपतियों का असली चरित्र।

दरअसल, बिल गेट्स व अन्य बड़े पूँजीपति अच्छे से जानते हैं कि पूँजीवादी-साम्राज्यवादी शोषण व लूट के ज़रिए उन्होंने समाज के बहुलांश आबादी को बेहद गरीब-कुपोषित बनाया है, हर सुख सुविधाओं से वंचित रखा है।

लुटी-पिटी जनता का ग़ुस्सा इसके संचालक अरबपतियों पर न फूट पड़े इसलिये ये अरबपति परोपकारी-दानदाता होने का स्वाँग रचते हैं। हैरानी नहीं होनी चाहिये कि इसी बिल गेट्स का नाम इन तथाकथित दानदाताओं की सूची में सबसे ऊपर हैं।

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2000 में गेट्स और उनकी पत्नी ने बिल एवं मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन के नाम से एक चेरिटबल संस्थान बनाया, जो ख़ुद को विश्व में सबसे अधिक पारदर्शी तरीके से संचालित चेरिटबल संस्थान होने का दावा करता है। बिल गेट्स और उनके पिता रॉकफेलर ने मिलकर रॉकफेलर फ़ाउंडेशन भी चलाया।

इन चेरिटबल फ़ाउंडेशनों के माध्यम से इन्होंने दुनिया का मसीहा बनने की ख़ूब कोशिशें की। ये अल्पसंख्यक समुदायों के लिये कालेज छात्रवृत्तियां, ऐड्सनिवारण, तीसरी दुनिया के देशों में फैले रोग-महामारियाँ दूर करने आदि के नाम पर ख़ूब दान किया करते हैं।

ये वही बिल गेट्स हैं जो भारत के गांवों में जाकर ग़रीब बच्चों और टूटी झोपड़ियों में बैठकर फ़ोटो खिंचवाते हैं और ग़रीबों की मदद करने का ज़ोर शोर से प्रचार करते हैं। इसी सिलसिले में वो बिहार के दूरदराज़ इलाके में भी जा चुके हैं।

बिल गेट्स ऐसे दिखाते हैं कि उनका दिल गरीब-हाशिये पर धकेले गये लोगों के लिये ही धड़कता है। इन्हें दान देते हुए फ़ोटो खिंचवाने, सुर्ख़ियों में रहने का बड़ा शौक़ है। 2017 में अपनी संस्था माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प के पाँच फ़ीसदी शेअर दान करने से ये 21वीं सदी के सबसे बड़े ‘दानवीर’ बने।

क्या बिल गेट्स सच में बहुत परोपकारी, दरियादिल इंसान हैं? अगर ऐसा होता तो वे इस महामारी के समय अपने ‘प्रिय’ ग़रीब देशों की ग़रीब जनता को हर सम्भव मदद देने के लिये बवाल खड़ा कर सकते थे, अपने रसूख़ व पैसे का इस्तेमाल कर दुनिया भर के वैक्सीन निर्माताओं को तुरन्त ग़रीब देशों को भी वैक्सीन व उसके फ़ॉर्मूले देने के लिये दबाव डाल सकते थे, लेकिन उन्होंने तो ठीक इसका उल्टा किया।

फिर यह दोहरा चरित्र क्यों?

दरअसल ऊपर से देखने पर यह विरोधाभासी लगता है, लेकिन बिल गेट्स व उनके जैसे पूँजीपति अपनी सोच में बहुत स्पष्ट होते हैं। मज़दूरों-कर्मचारियों का शोषण कर मुनाफ़ा कमाना,अपने उत्पादों का पेटेंट कर उसकी रॉयल्टीज़ से पैसा उसूलना, शेअर बाज़ार में बड़ी पूँजी के दम पर दख़ल देकर धन बटोरना आदि इनका मुख्य पेशा व नियति होती है।

इनके करनी का परिणाम ही यह है कि 21वीं सदी में जब विज्ञान व टेक्नोलॉजी इतना विकास कर चुकी है कि कामकाजी आबादी का केवल चंद घण्टे काम करने से दुनिया भर के लोगों की सारी बुनियादी ज़रूरतें पूरी की जा सकती हैं, पर इन पूँजीवादी नीतियों ने ग़रीबी-असमानता बनाकर रखनी ही है, ज्यों ही मेहनतकशों की मेहनत का बड़ा हिस्सा बिल गेट्स जैसे लोगों की जेबों में चला जाता है, अमीरी ग़रीबी की खाई वहीं से बननी शुरू होती है।

यही नहीं खुद को परोपकारी दिखाने के लिये भी इन्हें समाज में ग़रीबी-मुफ़लिसी बनाकर रखनी होती है, ताकि बहुत अधिक हाहाकार मचने पर ये मलहम लेकर जायें व ग़रीबों की वाहवाही बटोरें, उनके नज़रों में मसीहा की छवि बना पायें।

जब तक पूँजीवाद रहेगा ग़रीबी-बेरोज़गारी बनी रहेगी, बिल गेट्स कैसे कुछ तथाकथित मसीहा भी समाज में ‘अवतरित’ होते रहेंगे। पूँजीवाद के ख़ात्मे के बाद समाजवादी व्यवस्था में ग़रीबी-बेरोज़गारी भी ख़त्म कर दी जायेगी, इन पूँजीपतियों के आगे हाथ फैलाने के बजाय मेहनतकश लोग इन सबकी सम्पत्तियों पर सामूहिक मालिकाना स्थापित पर इन जैसे लोगों को भी मेहनतकश इंसान बनायेंगे। तब न किसी मसीहा की ज़रूरत होगी न ही मसीहावाद की।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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