पूर्वांचल: उत्तर प्रदेश के गांवों से बड़े पैमाने पर निकल रही हैं अर्थियां, ये 4 वजह हैं जिम्मेदार

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By डॉ. सिद्धार्थ

मैं पूर्वांचल ( गोरखपुर) का रहने वाला हूं। जिंदगी के करीब 20 साल राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता के तौर इस इलाके में सक्रिय रहा। संपर्कों का दायरा गोरखपुर और उनके आस-पास के जिलों तक फैला हुआ था और उनमें से कई सारे अब भी संपर्क में हैं। उन्हीं से प्राप्त सूचनाओं और पारिवारिक-आत्मीयजनों के साथ हुए हादसों के आधार पर यह बात कह रहा हूं।

गांवों से जो सूचनाएं आ रही हैं, वे बता रही हैं कि घरों से अर्थियां निकलना शुरू हो गई हैं। अधिकांश के अस्पताल पहुंचने की नौबत भी नहीं आ रही हैं। बड़ा कारण तो आर्थिक अभाव-कंगाली है, लेकिन जो लोग किसी तरह शहर-कस्बों में पहुंचने की स्थिति में हैं, वे प्राथमिक-द्वितीय श्रेणी के अस्पतालों और सदर अस्पताल तक पहुंच सकते हैं, जहां गंभीर स्थिति में कोरोना से बचाव के उपाय- ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और आईसीयू करीब-करीब नदारद हैं।

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश तो एक विशेषाधिकार बन गया है। वैसे तो वहां जगह भी खाली नहीं है, लेकिन यदि जगह है भी तो अक्सर उन्हीं का प्रवेश हो पा रहा है, जो रसूख और संपर्क वाले हैं। खैर, वहां भर्ती होना, कोई बचने की गारंटी नहीं है,क्योंकि कितनों को ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और आईसीयू मिल पाएगा। यह जग-जाहिर है।

निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन युक्त वेंटीलेटर का खर्चा वहन करना गांव के कुछ चंद तथाकथित अमीर लोगों तक के बस की बात नहीं, शेष के बारे में तो कुछ कहना ही नहीं। वैसे भी ऐसे निजी अस्पताल भी बहुत कम हैं।

गहने तो फिलहाल तुरंत बिक जा रहे हैं, इनसे थोड़ा पैसा इलाज के लिए आ जा रहा है, लेकिन कितनों के पास कितना गहना है। कुछ लोगों के पास खेत हैं, लेकिन वे भी तुरंत तो बिक नहीं सकता और रेहन रखने पर कितना मिलता है। फिर कोई कैसे पूरे परिवार की रोजी-रोटी का एकमात्र सहारा, खेत बेच दे।

गावों में अधिकांश लोग बच सकते थे, यदि उन्हें प्रारंभिक अवस्था में डॉक्टरी सलाह और चिकित्सकीय मदद मिल जाती । आर्थिक अभाव गरीबी के साथ अज्ञानता भी एक कारण है, लेकिन सबसे बड़ा कारण है, राज्य की मशीनरी का पूरी तरह गांवों में अनुपस्थित होना और योग्य डाक्टरों और अस्पतालों का अभाव होना।

गांवो के चिकित्सक झोला-छाप डॉक्टर इस बीमारी के बारे में न कुछ जानते हैं, न कुछ कर पा रहे हैं। हां बुखार की दवा जरूर दे दे रहे हैं। कुछ को बचा भी ले रहे हैं। लेकिन लोग बड़े पैमाने पर संक्रमण के शिकार हैं और उसके तरह-तरह के लक्षण दिख रहे हैं।

एक और वजह ने स्थिति को विकराल बनाया है, वह यह धारणा की कोरोना-फोरोना कुछ नहीं है, यह सिर्फ शहरी और अमीर लोगों को होता है।

पूर्वांचल के गांवों मे कोरोना मुख्यत: चार कारकों से तेजी से फैला है- स्थानीय निकाय के चुनाव, कुंभ मेला, शादी का सीजन और राज्य मशीनरी की पूरी तरह अनुपस्थति।

1- स्थानीय निकायों के चुनाव
इन चुनावों के दौरान शहरों से लोग गांवों में गए। कई प्रत्याशी मुख्यत: शहरों में रहने वाले थे। चुनाव के दौरान वे और उनका लाव-लश्कर गांवों में गया। कुछ लोग वोट डालने के लिए या अपने प्रत्याशियों का समर्थन करने के लिए महानगरों-शहरों से गांवों में गए। इसके ही साथ दारू की पार्टियां और खाने-पीने की पार्टियां शुरू हुईं। गांवों में जाने वाले चुनाव अधिकारियों-कर्मचारियों के माध्यम से भी कोरोना गांवों में पहुंचा और यह चुनाव अधिकारी-कर्मचारी भी गावों के लोगों से संक्रमित हुए।

2- कुंभ मेला
हरिद्वार कुंभ मेला में करीब 70 लाख लोगों ने स्नान किया। इनका बड़ हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार का था। ये लोग कुंभ स्नान के बाद अपने-अपने गांवो में पहुंचे और इनमें से बहुत सारे अपने साथ कोरोना लेकर गए। खुद शिकार हुए और औरों को शिकार बनाए।

3- शादी का सीजन
शादी-ब्याह। हिंदुओं में शादी-ब्याह लग्न के समय के अनुसार होता है। अप्रैल महीना शादी-ब्याह का महीना था। मई भी लग्न का महीना है। शादी ब्याह के दौरान की भीड़ और शहरों से आना-जाना संक्रमण का एक बहुत बड़ा कारण बना।नातेदार- रिश्तेदार भी आते हैं, वे संक्रमित हो भी रहे हैं और कर भी रहे हैं। शादी के एक दो दिन पहले और शादी के एक दो दिन बाद दुल्हे या दुल्हन की मौत की खबरें भी आ रही हैं।

एक अन्य कारण भी, बड़ा कारण बनता जा रहा है। अधिकांश मौते घरों पर ही हो रही है, जहां मौत के बाद लाश को रैप करने की न व्यवस्था है, न संसाधन और न ही कोई समझ। अपने प्रिय से प्यार और धार्मिक कर्मकांडों की जरूरत भी इसके फैलाव का एक बड़ी वजह बन रही है और बनने जा रही है।

4-राज्य मशीनरी की पूरी तरह अनुपस्थति

आधुनिक लोकतंत्र में लोगों के जीवन की रक्षा करना राज्य की जिम्मेदारी है। संविधान के अनुसार उसकी यह पहली जिम्मेदारी है। इसके लिए हम सरकार चुनते है। पूर्वांचल के गांवो में राज्य मशीनरी पूरी तरह अनुपस्थित है। सारी राज्य मशीनरी स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न कराने में लगी हुई थी।

यदि गांवों में लोगों तक प्राथमिक कोरोना किट ( जिसमें वे न्यूनतम दवाएं होती है, जो कोरोना के संक्रमित लोगों के लिए प्राथमिक तौर पर जरूरी हैं) भी पहुंचा होता, तो 70-80 प्रतिशत से अधिक लोगों की जान बचायी जा सकती थी और बचायी जा सकती है। लेकिन सबकुछ नदारद है।

गांव के लोगों को राज्य ने मरने के लिए राम भरोसे छोड़ दिया है। न कोई डाक्टरी सलाह उपलब्ध है, ने अस्पताल, न दवाएं।

इन चारों कारकों के लिए राज्य मशीनरी जिम्मेदार है।

ये सहज-स्वाभाविक मौंते नहीं है, ये राज्य मशीनरी द्वारी की गई हत्याएं हैं, जिसके जिम्मेदार योगी-मोदी हैं। यह एक आपराधिक कृत्य है, इस अपराध के सबसे बड़े जिम्मेदार योगी-मोदी है। हजारों लोगों की जान लेना एक अक्षम्य अपराध है।

इस सब के बावजदू भी योगी वेशधारी अजय मोहन बिष्ट ( उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री) कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में कोरोना संकट पूरी तरह नियंत्रित हैं, न अस्पताल का अभाव है, न डॉक्टर का, न बेड का, न आक्सीजन का, न वेंटीलेटर का और न आईसीयू का।

भारत के नेताओं में झूठ के मामले यदि कोई मोदी से भी आगे निकल गया है, तो उस व्यक्ति का नाम अजय मोहन बिष्ट है, जो योगी का चोगा धारण करता है।

मुझे खुद पर भी शर्म आ रही है, मैं खुद को सावित्रीबाई फुले का अनुयायी कहता हूं। उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर प्लेग में लोगों की सहायता की, भले ही उनकी जान चली गई और मैं अपने पूर्वांचल को लोगों को छोड़कर यहां दिल्ली में बेबस और असहाय सबकुछ देख रहा हूं और अपने लोगों की मदद के लिए हाथ भी नहीं बढ़ा पा रहा हूं।

यह सबकुछ निजी संपर्क सूत्र और अनुभव पर आधारित है। किसी को सच और किसी को झूठ लग सकता है।”

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