18 रुपये रसोई गैस सब्सिडी भी मजदूर आबादी से छिनने की बारी, ओटीपी के बिना नहीं मिलेगा सिलिंडर

अगले महीने से रसोई गैस सिलिंडर की होम डिलीवरी में ऐसा बदलाव होने जा रहा है कि मजदूर आबादी का बड़ा हिस्सा चूल्हा फूंककर खाना पकाता नजर आ सकता है। सरकार ने नए दिशानिर्देश के अनुसार, 1 नवंबर से अपने घर पर गैस सिलिंडर मंगाने के लिए ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) यानी एक बार की गैस मिलने के लिए मोबाइल पर मैसेज से आने वाले नंबर की जरूरत पड़ेगी।

कहा जा रहा है कि तेल कंपनियां गैस चोरी रोकने और सही उपभोक्ताओं की पहचान के लिए नई व्यवस्था लागू कर रही है। हालांकि, इसका दूसरा और अहम पहलू ये है कि इस व्यवस्था से सरकार का रसोई गैस सब्सिडी खर्च काफी कम हो सकता है।

नई व्यवस्था में अगर उपभोक्ता का मोबाइल नंबर अपडेट नहीं है तो डिलीवरी देने वाला एजेंसी कर्मचारी एक ऐप के जरिए इसे रियल टाइम में अपडेट करेगा और कोड जेनरेट करेगा।

इस व्यवस्था के लागू होने से उन लोगों को परेशानी होगी जिनका पता या मोबाइल नंबर गलत है। गलत जानकारी दर्ज होने पर गैस सिलिंडर की डिलीवरी बंद हो सकती है। बताया जा रहा है कि कथित 100 स्मार्ट शहरों के बाद इसे दूसरे शहरों में लागू किया जाएगा। यह सिस्टम कमर्शियल सिलिंडरों पर लागू नहीं होगा।

दरअसल, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग होंगे जो किराए के मकानों में रहकर परिवार का गुजारा करते हैं। रोजमर्रा की जरूरतों की तंगी के चलते मजदूर आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो मोबाइल रखने, उसको रिचार्ज कराने या मरम्मत कराने की भी स्थिति में नहीं है।

सब्सिडी पाने वाले कुल उपभोक्ताओं में ऐसी आबादी सिर्फ एक करोड़ भी मान ली जाए, तो हर महीने 20 करोड़ का लाभ होगा, क्योंकि वे डिलीवरी नहीं ले सकेंगे। ये बीस करोड़ रुपये का आंकड़ा भी दिलचस्प है। सब्सिडी की रकम कम होते होते 18 रुपये प्रति डिलीवरी ही बची है।

ग्लोबल सब्सिडीज इनीशिएटिव की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वित्तीय वर्ष 2017/18 के अंत तक पंजीकृत एलपीजी कनेक्शनों की संख्या 26 करोड़ 30 लाख हो गई है। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के मुताबिक घरेलू एलपीजी की कुल खपत पिछले एक दशक में लगभग दोगुनी हो गई है। वित्त वर्ष 2008-09 में 10.6 मिलियन टन से बढक़र खपत 20.4 मिलियन टन हो गई है।

दूसरी ओर सब्सिडी के बजट का दायरा लगातार घटता गया है। भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2013/14 में 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी दी। वित्त वर्ष 2016/17 में लगभग सब्सिडी लगभग 12,000 करोड़ कम हो गई।

इसके बाद वित्त वर्ष 2017/18 में बजट बढ़ाकर 20,000 करोड़ रुपये किया गया, जो बाद में कई करोड़ उपभोक्ताओं के सब्सिडी छोडऩे या आय के आधार पर निकल जाने से काफी नीचे आ गई। उज्जवला योजना के तहत सरकार को सिर्फ छह हजार करोड़ रुपये का भार उठाना पड़ा।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.