जलवायु परिवर्तन से 2100 तक भारत में श्रम उत्पादकता 40% तक कम हो सकती है: अध्ययन

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जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में श्रम उत्पादकता 40 प्रतिशत तक गिर सकती है, जिससे वैश्विक खाद्य उत्पादन को खतरा हो सकता है

दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया, पश्चिम और मध्य अफ्रीका और उत्तरी दक्षिण अमेरिका के अन्य क्षेत्रों में भी मज़दूरों के शारीरिक कार्य क्षमता के कम होने का खतरा है.

हालिया प्रकाशित एक रिपोर्ट के आकलन के अनुसार जलवायु परिवर्तन फसल की पैदावार को कम करके खाद्य सुरक्षा चुनौतियों को बदतर बना देगा.

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में 40 प्रतिशत तक की गिरावट आएगी, जिससे वैश्विक खाद्य उत्पादन को खतरा होगा. शो

शोध में भविष्यवाणी की गई है कि ‘दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया, पश्चिम और मध्य अफ्रीका और उत्तरी दक्षिण अमेरिका के अन्य क्षेत्रों में शारीरिक कार्य क्षमता 70 प्रतिशत तक कम होने की उम्मीद है.’

अध्ययन के प्रमुख जेराल्ड नेल्सन (अमेरिका के इलिनोइस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर) ने कहा कि ” आकलन लगातार यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से फसल की पैदावार कम हो जाएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा चुनौतियां और भी बदतर हो जाएंगी. और इससे केवल हमारी फसलें और पशुधन ही प्रभावित नहीं बल्कि कृषि श्रमिक जो हमारी जरूरत का अधिकांश भोजन बोते हैं, जोतते हैं और काटते हैं. उन्हें भी गर्मी के कारण नुकसान होगा, जिससे खेत में काम करने की उनकी क्षमता कम हो जाएगी.”

अध्ययन में भौतिक कार्य क्षमता (पीडब्ल्यूसी) की भविष्यवाणी करने के लिए कम्प्यूटेशनल मॉडल का उपयोग किया गया है. जिसे विभिन्न अनुमानित जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के तहत बिना किसी गर्मी के तनाव वाले वातावरण के सापेक्ष एक व्यक्ति की कार्य क्षमता का तुलनातमक अध्ययन किया गया.

लॉफ़बोरो विश्वविद्यालय, यूके द्वारा विकसित मॉडल, 700 से अधिक ताप तनाव परीक्षणों के डेटा पर आधारित हैं. जिसमें तापमान और आर्द्रता की एक विस्तृत श्रृंखला, धूप और हवा सहित विभिन्न मौसम स्थितियों में काम करने वाले लोगों का अवलोकन शामिल था.

शोधकर्ताओं ने कहा कि ठंडी जलवायु में व्यक्तियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली अधिकतम कार्य क्षमता को अध्ययन के लिए बेंचमार्क के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जो 100 प्रतिशत शारीरिक कार्य क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है.

क्षमता में कमी का मतलब है कि लोग शारीरिक रूप से जो कर सकते हैं उसमें सीमित हैं. भले ही वे काम करना चाहते हो लेकिन शारीरिक रूप से वो सक्षम नहीं होंगे.

रिपोर्ट के मुताबिक ‘किसानों को समान काम करने के लिए अतिरिक्त श्रमिकों की आवश्यकता होगी. और ऐसे में यदि मज़दूर उपलब्ध नहीं होते हैं, तो उनकी फसल का आकार कम हो जाएगा.’

अध्ययन से पता चलता है कि ‘कृषि मज़दूर पहले से ही गर्मी महसूस कर रहे हैं. दुनिया के आधे फसली किसान हाल के वर्षों (1991-2010) की जलवायु परिस्थितियों में 86 प्रतिशत क्षमता से नीचे काम कर रहे हैं.’

शोधकर्ताओं ने कृषि श्रमिकों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए संभावित उपायों पर भी चर्चा की है.

उन्होंने कहा कि ‘ सीधे धुप के संपर्क में काम न कर के रात के समय या छाया में काम करने से मज़दूरों की उत्पादकता में 5-10 प्रतिशत का सुधार देखा गया.’

शोधकर्ताओं के अनुसार ‘ दूसरा विकल्प यांत्रिक मशीनरी और उपकरणों के वैश्विक उपयोग को बढ़ाना है. विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में जहां कृषि पद्धतियों में बड़े पैमाने पर कठिन शारीरिक श्रम शामिल होता है.’

(इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट से साभार)

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