मज़दूर प्रतिरोध दिवस: मज़दूर विरोधी नीतियों और नफ़रत की राजनीति के खिलाफ मज़दूरों ने दिखाई एकजुटता

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8 फरवरी को देश भर के 17 संघर्षशील और क्रांतिकारी श्रमिक संगठनों/यूनियनों के एक समन्वय मंच, मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने मौजूदा सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ और मज़दूर वर्ग के जायज मांगों को लेकर पूरे देश में “मजदूर प्रतिरोध दिवस/श्रमिक प्रतिरोध दिवस” मनाया.

दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और 40 से अधिक स्थानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए.

दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, पटना, जयपुर आदि विभिन्न राज्यों की राजधानियों, गुड़गांव-मानेसर, रुद्रपुर-हरिद्वार, गोदावरी बेसिन कोयला बेल्ट आदि जैसे विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में और अलग-अलग जिला मुख्यालयों में रैलियां, प्रदर्शन और कार्यक्रम एक साथ आयोजित किए गए.

मासा से जुड़े संगठनों का कहना है कि ” मोदी सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा देशी-विदेशी बड़ी पूंजी के इशारे पर नए मजदूर विरोधी श्रम कोड, बड़े पैमाने पर निजीकरण, बेरोजगारी, महंगाई, यूनियन अधिकारों पर हमला और अन्य श्रमिक विरोधी नीतियों के रूप में देश की मेहनतकश जनता पर बड़े पैमाने पर हमले किये जा रहे हैं. इसके साथ ही फासीवादी ताकतें सांप्रदायिक नफरत फैला रही हैं और मेहनतकश जनता को धार्मिक-जातिगत भेदभाव और हिंसा की राजनीति में फंसाया जा रहा है”.

उन्होंने आगे बताया ” आरएसएस-भाजपा जैसी फासीवादी ताकतें राजनीतिक लाभ के लिए धर्म को एक साधन के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं और आम लोगों के बीच नफरत और विभाजन के बीज बो रही हैं, जिसका उद्देश्य मेहनतकश जनता को पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शोषण के खिलाफ आंदोलन और आजीविका पर हो रहे हमलों के खिलाफ संघर्ष से मजदूरों को भटकाना है”.

प्रतिरोध दिवस में शामिल कार्यकर्ताओं ने बताया “मजदूर प्रतिरोध दिवस/श्रमिक प्रतिरोध दिवस” मनाते हुए, मेहनतकश लोगों पर देशी-विदेशी पूंजीपतियों और फासीवादी ताकतों द्वारा किये जा रहे हमलों के खिलाफ और सम्मानजनक जीवन और वास्तविक जनवाद के लिए शहरी, औद्योगिक और ग्रामीण मेहनतकश जनता पूरे देश में मासा के आह्वान पर सड़कों पर उतर आई.

अपनी मांगों के बारे में जानकारी देते हुए मासा ने बताया :-

· चार नई श्रम संहिताओं को वापस लिया जाए. मजदूर हित में श्रम कानूनों में सुधार किया जाए, सभी मजदूरों के लिए
श्रम कानून की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाए!

· निजीकरण पर रोक लगाई जाए! बुनियादी क्षेत्रों और सेवाओं का राष्ट्रीयकरण किया जाए.

· सभी के लिए रोजगार की, सुरक्षित व स्थाई आय की व्यवस्था की जाए! स्कीम वर्करों (आशा, आंगनवाड़ी, भोजन माता आदि), घरेलु कामगार, आई टी श्रमिक, गिग वर्कर को ‘मजदूर’ का दर्जा देकर सभी श्रम कानूनों का सुरक्षा और सम्मानजनक वेतन दिया जाये. ग्रामीण मजदूरों के लिए साल भर काम, सामाजिक सुरक्षा और सम्मानजनक वेतन हो.

· यूनियन बनाने और संगठित होने का अधिकार, हड़ताल-प्रदर्शन का अधिकार सुनिश्चित किया जाये.

· महीने में 26 हजार रुपये न्यूनतम मजदूरी लागू की जाए! सभी के लिए सम्मानजनक निर्वाह मजदूरी सुनिश्चित किया जाये.

· धार्मिक-जातिगत-लैगिक भेद-भाव व धार्मिक नफरत की राजनीति बंद की जाए. धर्म को निजी मामला मानते हुए उसका राजनैतिक प्रदर्शन बंद किया जाए.

मासा ने बताया कि ‘इन मुख्य मांगों के साथ-साथ मेहनतकश जनता के लिए क्षेत्रीय स्तर की विभिन्न मांगें भी उठाई गईं और भारत के राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजे गए’.

मज़दूर प्रतिरोध दिवस के दौरान दिल्ली में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया, जिसमें कारखाने के श्रमिकों, घरेलू श्रमिकों, स्वच्छता श्रमिकों, गिग श्रमिकों और विभिन्न असंगठित क्षेत्रों के मज़दूरों ने भाग लिया. यह प्रदर्शन दिल्ली में MASA के घटकों – IMK, MSK, IFTU(S), GMU, TUCI, MSS – द्वारा आयोजित किया गया था और इसमें MEC, लोकपक्ष, SKM, AIFTU (न्यू) आदि संगठन/यूनियन भी शामिल हुए.

मासा ने जानकारी देते हुए बताया ‘ इस प्रतिरोध दिवस के दौरान हरियाणा में गुड़गांव, फ़रीदाबाद, कुरूक्षेत्र, कैथल, जींद, गोहाना और करनाल में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गये. उत्तराखंड में रुद्रपुर, हरिद्वार, काशीपुर व देहरादून में विरोध कार्यक्रम आयोजित किये गये.उत्तर प्रदेश में बलिया, बरेली, शामली और मेरठ में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गये.बिहार में, राज्य की राजधानी पटना और रोहतास जिले में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल,राजस्थान,पंजाब ,तेलंगाना और तमिलनाडु के अलग-अलग जगहों पर भी विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गए.’

मासा का मानना है कि ‘ भारतीय और विदेशी पूंजीपति वर्ग और फासीवादी ताकतों के खिलाफ देश भर में निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष विकसित करना समय की मांग है और मासा इस कार्य के लिए प्रतिबद्ध है. आज का कार्यक्रम उसी दिशा में एक कदम है. मजदूर वर्ग जब भी जागा है, इतिहास ने अपनी करवट बदली है’.

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