मज़दूरों के घर में नहीं है राशन, दुकानों पर बढ़ रही उधारी, बेचना पड़ रहा है खेत

By खुशबू सिंह

भारत में कोरोना अपनी चरम पर है। लॉकडाउन खत्म होने की कगार पर है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि देश की अर्थव्यस्था पटरी पर आ रही है।

लेकिन इस सगुफे से बाहर निकल कर देखेंगे तो मज़दूरों की बदहाली की तस्वीरे कम नहीं हुई हैं। बस उन तस्वीरों को चीन – पाकिस्तान के मुद्दों से ढ़क दिया गया है।

मज़दूरों की बदहाली की तस्वीरे गुड़गांव की गलियों में साफ दिखाई दे रहा है। यहां पर रहने वाले कई मज़दूर भुखे रहने को मज़बूर हैं।

गुड़गांव के शीतला कॉलोनी में रहने वाल हरी राम बताते हैं, “मैं यहां 20 साल से रह रहा हूं। दिहाड़ी मज़दूर हूं। दो कमरे हैं जिनको किराए पर उठाया था पर लॉकडाउन के कारण किराएदार घर चले गए हैं। काम बंद पड़ा है। नौबत अब भुखे मरने की आ गई है।”

हरी राम आगे कहते हैं, “बहुत शोर मचा था सरकार राशन बाट रही है। उसेक लिए एक फॉर्म भरना पड़ेगा। मैंने 5 रुपए में फॉर्म खऱीद कर भरा पर कोई राशन नहीं मिला। राशन उन्हीं लोगों को मिला है जो लोग कोटेदार के क़रीबी हैं।”

बहन की शादी के लिए बेचा खेत

हरी राम के बगल में बैठे शानू शेख ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि, “वे साड़ी बेचने का काम करते हैं। घर में अकेले कमाने व्यक्ती हैं। महिपालपुर में 3 हज़ार का किराए का कमरा लेकर रहते हैं। लॉकडाउन के कारण काम बंद होने के वज़ह से कर्ज तले डूब गया हैं। राशन का पैसा बाकी है, किराए का कमरा देना है। और भी कई लोगों से उधार लिया हुआ है।”

वे आगे कहते हैं, “लॉकडाउन के बीच जहां खाना मिलता था, वहां हम लोग भागे-भागे जाते थे। खाने में कंकड-पत्थर के सिवा कुछ नहीं होता था।”

शानू ने बताया कि, “जब से लॉकडाउन में ढ़ील मिली है। तब से लेकर अब-तक 2,000 हज़ार रुपए की कमाई हुई है। सुबह 9 बजे से धंधा करने के लिए घर से निकला हूं एक बजने वाला है पर एक भी साड़ी नहीं बिकी है।”

“बहन की शादी करने के लिए खेत बेच दिया पर लॉकडाउन के कारण इतनी तंग हाली बढ़ गई की बहन की शादी भी नहीं हो पाई और सारे पैसै खत्म हो गए। खेत बिक गया है पापा दूसरों के खेतों में काम कर के घर का खर्च चला रहे हैं।”

दुकानों पर बढ़ी उधारी

शीतला माता मंदीर के पास फूल माला बेचने का काम करने वाले संतोष कुमार कहते हैं, “दुकान से पूरा घर चलता था। पर 3 महीने से दुकान बंद पड़ी है। माता पिता घर में बीमार पड़े हैं इल़ाज के लिए पैसा नहीं है। घर में राशन नहीं है। सरकार ने राशन देने के लिए एक फ़ोन नंबर जारी किया था। 1950 पर कई बार फ़ोन करने के बाद भी राशन नहीं मिला।”

गुड़गांव के शीतला कॉलोनी में दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या सबसे अधिक है वहीं पर पीछले पांच सालों से फरचून की दुकान चलाने वाले सतीश कुमार ने बताया कि, “दुकान चल रही है पर आमदनी का रस्ता बंद है क्योंकि समान खरीदने वालों में 95 फीसदी लोग उधार वाले हैं।”

यू तो सरकार लगातार दावा कर रही है कि देश में सभी लोगों को राशन मिल रहा है। जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है।

पर सवाल ये उठता है कि अगर सरकार अपना काम कर रही है तो मज़दूर भूखे क्यों मर रहें हैं, खेत क्यों बेचना पड़ रहा है, हेल्पलाइन नंबर पर फ़ोन करने के बाद भी मदद क्यों नहीं मिल रही है। दुकानों पर उधारी क्यों बढ़ रही है।

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