आत्मनिर्भरता का राग अलापते मोदी ने 41 कोयला खदान बेच दिए, यूनियनें 3 दिन के हड़ताल पर

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By वर्कर्स यूनिटी डेस्क

कोयला खदानों को निजी कंपनियों को बेचे जाने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध तेज़ हो रहा है।

एक तरफ़ कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड के मज़दूरों ने दो जुलाई से तीन दिवसीय हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है।

जबकि दूसरी तरफ़ छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य क्षेत्र के नौ गांवों के सरपंचों ने मोदी को चिट्ठी लिख कर चिंता जताई है।

झारखण्ड जनाधिकार महासभा ने आम जनता से इस फैसले के विरोध में प्रदर्शन करने का आह्वान किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र ने बीते गुरुवार को 41 कोयला खदानों को प्राईवेट कंपनियों को नीलाम करने का फैसला लिया, जिसका पूरे देश में विरोध हो रहा है।

मोदी के इस फैसले से कोयला खनन जैसे कोर सेक्टर को निजी कंपनियों के हवाले करने का रास्ता साफ़ हो गया है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनें भी उतरीं समर्थन में

सरकार का तर्क है कि इन कोयला खदानों को निजी कंपनियों के हवाले करने से अगले पांच सालों में 33,000 करोड़ रुपये का निवेश आएगा।

लेकिन ट्रेड यूनियनों का कहना है कि इससे कोयला खनन क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता ख़त्म हो जाएगी और सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादन इकाईयां निजी कंपनियों की ग़ुलाम हो जाएंगी।

ट्रेड यूनियनों ने 18 जून को सरकार को इस हड़ताल से संबंधित नोटिस भेज दिया है और इसका समर्थन सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने किया है।

सबसे पुरानी ट्रेड यूनियन एटक ने बयान जारी कर कहा है कि सभी ट्रेड यूनियनों ने कोयला खनन क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों और फ़ेडरेशनों के हड़ताल का समर्थन करती हैं।

समाचार वेबसाइट द वायर के अनुसार, ‘ऑल इंडिया कोल वर्कर्स फेडरेशन’ के महासचिव डीडी रामनंदन ने कहा, ‘हम दो जुलाई से प्रस्तावित हड़ताल पर आगे बढ़ रहे हैं। कोल इंडिया और एससीसीएल के सभी स्थायी और ठेका कर्मचारी हड़ताल में शमिल होंगे।’

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विरोध हुआ तो मोदी खुद सामने उतर आए

प्रस्तावित हड़ताल के जरिए सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट को कोल इंडिया से अलग करने का भी विरोध किया जाएगा। यह कोल इंडिया की अनुषंगी है और तकनीकी परामर्श से जुड़ी है।

आम तौर पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के बुलाई हड़ताल पर आगे पीछे करने वाली आरएसएस से जुड़ी यूनियन भारतीय मज़दूर संघ ने आश्चर्यजनक रूप से कहा है कि वो हड़ताल में शामिल रहेगी।

द वायर के अनुसार, एचएमएस से संबद्ध हिंद खदान मज़दूर फ़ेडरेशन के अध्यक्ष नाथूलाल पांडे ने कहा है कि कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों को सौंपने के ख़िलाफ़ लड़ाई में वो शामिल रहेंगे।

कोयला खनन क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों ने 10 और 11 जून को भी मोदी सरकार के फैसले का विरोध किया था लेकिन खुद मोदी सामने आए और 18 जून को नीलामी का उद्घाटन किया।

एटक ने बयान जारी कर कहा है कि सरकार को खदानों को निजी कंपनियों को बेचने के अपने फैसले पर विचार करना चाहिए और निजीकरण और सीएमपीडीआई को कोल इंडिया लिमिटेड से अलग करने के निर्णय को वापस लेना चाहिए।

एटक ने कहा है कि ऐसे समय में कोयला खदान को निजी कंपनियों को बेचने का फैसला करना बेतुका लगता है जब एलॉट किए गए खदानों में समय पर खनन न शुरू होने पर निविदाओं को रद्द करना पड़ा है।

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यूनियनों की मांगें

1-कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक खनन के फ़ैसले को वापस लिया जाए।

2-कोल इंडिया लिमिटेड और एससीसीएल को कमज़ोर और बेचने की कोशिशों को तत्काल रोका जाए।

3-कोल इंडिया लिमिटेड से सीएमपीडीआईएल को अलग करने के फैसले को वापस लिया जाए।

4-सीआईएल और एससीसीएल के ठेका मज़दूरों को समान काम का समान वेतन लागू किया जाए।

5-राष्ट्रीय कोयला मज़दूरी समझौते की धाराओं को लागू किया जाए।

6-जनवरी 2017 से 28 मार्च 2018 के बीच सेवानिवृत्त लोगों के लिए ग्रेच्युटी राशि को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रु. किया जाए।

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फ़ोटो क्रेडिटः सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता

100 प्रतिशत एफ़डीआई का विरोध

उल्लेखनीय है कि कोयला खनन यूनियनें और केंद्रीय ट्रेड यूनियनें कोयला क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी विनिवेश का पुरज़ोर विरोध कर रही हैं।

एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने कोयला क्षेत्र में राष्ट्रीय हित और आत्मनिर्भरता को चोट पहुंचाने वाले इस फैसले का पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।

समर्थन देने वाली केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एक्टू, एलपीएफ़ और यूटीयूसी आदि शामिल हैं।

उधर विरोध का कमर कसे छत्तीसगढ़ के सरपंचों ने कहा है कि एक तरफ मोदी आत्मनिर्भरता का राग अलापते हैं, दूसरी तरफ खनन को निजी कंपनियों के हवाले करके आदिवासियों और जंगल में रहने वाले लोगों की रिहाईश, आजीविका और उनकी संस्कृति को ख़त्म कर रहे हैं।

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