निसिन ब्रेक ने 40 ट्रेनी मज़दूरों को किया बाहर, कई मज़दूरों को निकालने की चल रही है तैयारी

By खुशबू सिंह

राजस्थान के नीमराना जापानी औद्योगिक क्षेत्र में स्थित जापान की जानी – मानी कंपनी निसिन ब्रेक ने ट्रेनी मज़दूरों को आर्थिक तंगी का हवाला देकर काम से निकाल दिया है। निकाले गए सभी मज़दूर पिछले दो साल से निसिन कंपनी में काम कर रहे थे।

कंपनी में 110 ट्रेनी मज़दूर काम करते हैं जिसमें से 40 मज़दूरों को 13 जून को काम से निकाल दिया गया है। बाकी के मज़दूरों को निकालने की तैयारी चल रही है।

एक मज़दूर ने हमें बताया कि, “ आर्थिक तंगी तो एक बहाना है दरअसल किसी भी ट्रेनी वर्कर को कंपनी में दो साल से अधिक काम करते हुए हो जाता है तो क़ानून कंपनी को उसे स्थाई तौर पर रखना पड़ेगा। इसीलिए दो साल के भीतर ही सभी ट्रेनी मज़दूरों को काम से निकाल दिया जाता है”।

अनुज नाम के मज़दूर बताते हैं, “निसिन ब्रेक कंपनी में साल के 365 दिन मज़दूरों की भर्तियां चलती हैं। क्योंकि यहां पर मज़दूरों को इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वे खुद ब खुद काम छोड़ कर चले जाएं कोई भी मज़दूर 10-15 दिन से अधिक नहीं टिक पाता है।”

मज़दूरों से जानवरों की तरह कराया जाता है काम

वे आगे कहते हैं, “प्रबंधन की चाल है। मज़दूरों को इसी तरह प्रताड़ित करते रहो और फ्री में काम कराते रहो। बात केवल यहीं नहीं खत्म होती है। जापानी कंपनी के अनुसार किसी भी मज़दूर को भारी सामान उठाने की इजाजत नहीं है। लेकिन भारत में स्थित जापानी कंपनियों में मज़दूरों से जानवरों की तरह काम कराया जाता है।”

काम पर वापस लेने की मांग करते हुए मज़दूर लगातार कंपनी के गेट के बाहर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। नीमराना श्रम अधिकारी को कई बार ज्ञापन भी दिया पर कोई हल नहीं निकला है।

मज़दूरों का कहना है कि जब वे अपनी समस्या को लेकर एसडीएम नीमराना राम सिंह राजावत के पास गए तो उनका कहना था कि, “तुम लोगों को राजनीति करनी है तो अपने गांव में जाकर करो। जिन्स का पैंट पहन कर घुम रहे हो और बोलते हो हमारे पास काम नहीं है। ”

आप को बता दे कि लॉकडाउन के कारण अधिकतर मज़दूर अपने गृह राज्य चले गए थे। 17 मई को लॉकडाउन में मिली ढील के बाद निसिन ब्रेक कंपनी ने सभी मज़दूरों को एक नोटिस भेज कर 31 मई तक काम पर वापस आने के लिए कहा।

काम पर लौटने के लिए 800 किलोमीटर का सफर बाइक से किया

साथ ही कंपनी के नोटिस में लिखा हुआ है यदि मज़दूर 31 मई तक काम पर नहीं लौटे तो उनका वतेन उन्हें नहीं दिया जाएगा। और जो मज़दूर 7 जून तक काम पर नहीं लौटेंगे तो उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा।

कंपनी के इस नोटिस के बाद मज़दूर लॉकडाउन होने के बावज़ूद भी हज़ारो मील का सफ़र तय कर के काम पर लौट गए। कई मज़दूरों ने तो 18-20 हज़ार रुपया भी घर खर्च कर दिया काम पर फौरन पहुंचने के लिए।

अनुराग नाम के एक मज़दूर बताते हैं, “कंपनी का ये नोटिस देखने के बाद मैं इलाहाबाद से 800 किलोमीटर का सफर तय कर के काम पर लौटा। पर महज़ 13 दिन काम करने के बाद कंपनी ने हमें काम से निकाल दिया है।”

अनुज आगे कहते हैं, “कंपनी में आए नए मज़दूरों को ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। धोखे से मज़दूरों से ट्रेनिंग पूरा होने का पेपर साइन करा लिया जाता है ताकि कोई मज़दूर दुर्घटना का शिकार होता है तो कंपनी पर कोई आंच न आए।”

मज़दूरों से धोखे से पेपर कराया जाता है साइन

उन्होंने ने आगे कहा, “कंपनी के इस रवैयै के कारण कई मज़दूर दुर्घटना का शिकार भी हो चुके हैं। कंपनी उन्हें काम से निकालने की धमकी देकर चुप करा देती है।”

शुभम नाम के एक मज़दूर अपने जख्मी हाथों को दिखाते हुए कहते हैं, “मेरा दाहिना हाथ अगस्त 2019 में कंपनी में काम करने के दौरान दुर्घटना का शिकार हो गया था। अब ये हाथ काम नहीं करता है।”

शुभम आगे कहते हैं, “जब मैंने अपने साथ हुई दुर्घटना को लेकर पुलिस कंप्लेंट करने की कोशिश कि तो कंपनी ने मुझे स्थाई काम पर रखने का लालच देकर कंप्लेट करने से मना कर दिया। लेकन एक साल के भीतर काम से निकाल दिया है। अब मैं कहीं काम करने के लायक ही नहीं हूं।”

एक अन्य मज़दूर ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि, “ कोरोना काल में हमें कोई सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी। श्रम क़ानून नाम के लिए है। हम कंपनी में 750 डिग्री की गर्मी में काम करते हैं कोई पूछने वाला नहीं है।”

750 डिग्री गर्मी में करते हैं काम

750 डिग्री में रोजाना ये मज़दूर काम करते हैं तब जाकर इन्हें एक माह में 10 हज़ार वेतन मिलता है। उसमें भी यदि ये लोग दो दिन छुट्टी कर देंगे तो वेतन से 500 रुपए कट जाता है।

750 डिग्री की तपती गर्मी में काम करने वाले सभी मज़दूरों ने आईटीआई किया हुआ है। आईटीआई करने में इन्होंने 30 हज़ार से अधिक रुपए खर्च किए हैं।

आप  को बता दे कि निसिन ब्रेक कंपनी में होड़ा जैसी कई नामी कंपनियों का ब्रेक बनाने का काम होता है।

ब्रेक इसलिए होता है ताकि लोगों की जिंदगी को खतरे में जाने से बचाया जा सके लेकिन इस कंपनी ने तो मज़दूरो की जिंदगी पर ही ब्रेक लगा दिया है।

मज़दूरों की तकलीफों का अंत यहीं नहीं होता है। इसी तरह की कहानियां मानेसर आईएमटी, गुड़गांव , भिवाड़ी और देश के हर हिस्से में हैं।

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