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मट्टो की साइकिलः यह फिल्म हर मज़दूर को क्यों देखनी चाहिए?

By आशुतोष कुमार साइकिल मेरी प्रिय सवारी है। अलीगढ़ के शुरुआती सालों में साइकिल के सहारे ही सारा शहर धांगता फिरता था। यह कोई दो दशक पहले की बात है। …

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‘गायब होता देश’ और ‘एक्सटरमिनेट आल द ब्रूटस’ : एक ज़रूरी उपन्यास और डाक्युमेंट्री

By मनीष आज़ाद कुछ किताबें और फिल्में ऐसी होती हैं, जहाँ समय सांस लेता है। यहां सांस के उतार-चढ़ाव और गर्माहट को आप महसूस कर सकते हैं। रणेन्द्र का ‘गायब …

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मराठी के जनकवि लोकशाहीर अन्ना भाऊ साठे जिन्हें महाराष्ट्र का गोर्की कहा गया

By  सुबोध मोरे (दो साल पहले क्रांतिकारी लोकशाहीर अन्नाभाऊ साठे की जन्मशताब्दी पर उनके जीवन और योगदानों को याद करते हुए वरिष्ठ सांस्कृतिक कार्यकर्ता सुबोध मोरे द्वारा लिखी गयी एक …

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फिल्मकारों का फिल्मकार गोदार, जो फिल्मों को दुनिया बदलने का माध्यम मानते थे

By मनीष आजाद गोदार (Jean-Luc Godard) की मृत्यु पर उनकी पार्टनर ने कहा कि वे बीमार नहीं थे, बस थक चुके थे। इसलिए उन्होंने इच्छा मृत्यु चुन ली। गौरतलब है …

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भावी पीढ़ियों के नाम- बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता

सचमुच कितना अन्धेरा समय है जिसमें जी रहा हूं मैं! निष्कपटता अब एक अर्थहीन शब्द भर है। एक सौम्य माथा परिचायक है हृदय की कठोरता का। वह जो हंस पा …

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किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है?

बाबा नागार्जुन की कविता- किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियाँ भी सुनता है, भारी …

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‘मृत्यु-कथा’- बस्तर, दांतेवाड़ा, अबूझमाड़ में आदिवादी संघर्ष की सच्चाई बयां करती किताब

By आशुतोष कुमार पांडे दिल्ली के पत्रकार और चमकीले संपादक- कस्बों और ग्रामीण पत्रकारों/लोगों/दोस्तों को ‘सोर्स’ का नाम देते हैं। उनके बनाये वीडियो और सूचनाओं के आधार पर खबर लिखकर …

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शिन की तिपहिया साइकिलः हिरोशिमा पर परमाणु बम हमले में खाक हुए बच्चे की मार्मिक कहानी

By तातसुहारू कोडामा /अनुवाद- अरविन्द गुप्ता हर साल जब अगस्त आती है तो मुझे फिर वही पुरानी यादें सताती हैं। मुझे बार-बार अपने पुत्र शिन का चेहरा याद आता है। …

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