जब मज़दूर वर्ग सड़क पर था, ये कथित ट्रेड यूनियन लीडर श्री श्री रविशंकर के चरणों में बैठे थे

gurudev and trade union leader

ट्रेड यूनियनों की ओर से नौ अगस्त को बुलाए गए देशव्यापी प्रदर्शन के दिन, जब पूरे देश में मेहनतकश विपरीत माहौल में भी हुंकार भर रहा था, कुछ ट्रेड यूनियन नेता मोदी सरकार के क़रीबी समझे जाने वाले विवादित धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर के साथ नतमस्तक थे।

ये सिफारिश लेकर पहुंचे कि रविशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहकर भारत के मज़दूर वर्ग को कुछ रियायत दिलवा दें। ट्रेड यूनियन नेताओं से रविशंकर की बातचीत लाइव प्रसारित हुई।

दिलचस्प ये है कि बातचीत का टाइम भी वही रखा गया था जो ट्रेड यूनियन के देशव्यापी प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन का समय नियत था।

इस बातचीत का वीडियो फिलहाल इंटरनेट से ग़ायब है, या हो सकता है यहां से हटा लिया गया हो, क्योंकि आर्ट ऑफ़ लिविंग यूट्यूब चैनल पर भी बातचीत का ये लाईव नदारद है।

लाईव विद गुरुदेव कार्यक्रम में रेलवे के सबसे बड़े और सबसे पुराने फ़ेडरेशन एआईआरएफ़ के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा, ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी) के महासचिव एसपी तिवारी, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के महामंत्री वृजेश उपाध्याय, एचएमएस महाराष्ट्र के नेता जेआर भोसले, इंटक के अशोक सिंह आदि शामिल हुए।

रविशंकर के प्रतिनिधि रोहन जैन ने सभी का परिचय कराके संचालन की कमान एआईआरएफ़ के महासचिव को सौंप दी। सबसे पहले व्यथा भी उन्होंने ही रखी।

ट्रेड यूनियन नेताओं के आने के बाद पहले दुनियाभर में रविशंकर के द्वारा किए गए काम और नाम का महत्व बताने को डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई।

कुछ मिनट बाद रविशंकर ने आसन ग्रहण किया, जिसके बाद सभी इन सभी ट्रेड यूनियन नेताओं ने हाथ जोडक़र चेला भाव से प्रणाम किया।

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श्री श्री से समाधान मांगते रहे

शिव गोपाल मिश्रा ने कहा, “गुरु जी, हम सबके आदरणीय हैं, आपके कार्य से सभी परिचित हैं, आप परिचय के मोहताज नहीं, प्रधानमंत्री भी आपकी बात को सुनते हैं।”

“गुरु जी, आज 14 करोड़ मजदूरों के हाथ से रोजगार चला गया है, वे तनाव में हैं, सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन संकटकाल में समर्पणभाव से लगे सरकारी कर्मियों का डीए भी समाप्त कर दिया, अब रेल की उत्पादन इकाइयों का निगमीकरण करने की योजना है।”

विनय भाव से मिश्रा ने पूछा, “इस तरह मजदूरों का मनोबल टूट रहा है, इस भीषण संकट का समाधान क्या है, आप ही सुझाइए, आप प्रधानमंत्री को भी समझा सकते हैं।”

शिव गोपाल मिश्रा ने अगले वक्ता के बतौर भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री वृजेश उपाध्याय का परिचय कराके बिरादराना रिश्ते भी बताए। ये भी बताया कि कभी खुद भी आरएसएस से संचालित स्वदेशी जागरण मंच के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि इस बातचीत में शामिल शिव गोपाल मिश्रा और वृजेश उपाध्याय सीधे उस आरएसएस से ताल्लुक रखते हैं, जिसके इशारे पर इस समय मोदी सरकार चल रही है।

टीयूसीसी के महासचिव एसपी तिवारी ने कहा कि ‘कोरोना महामारी में हमने 14 राज्यों में मजदूरों की सहायता के प्रयास किए। कई देशों में सरकारों ने लॉकडाउन के संकट को देखकर अपनी जनता की मदद की, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं हो सका।’

“सरकार के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन मजदूरों की समस्या बढ़ती जा रही है। आज कई राज्यों के नियोक्ता वाहन से ले जाने को तैयार हैं, वेतन डेढ़ गुना देने को कह रहे हैं, लेकिन मजदूर नहीं जाना चाहते, उनमें भय व्याप्त है। संकट के समय उनके साथ ठीक से बर्ताव नहीं हुआ, इसलिए ऐसा हो रहा है। इस समस्या का समाधान करें।”

महाराष्ट्र एचएमएस नेता भोसले ने कहा, “सरकार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। आप प्रधानमंत्री और सरकार से बात करें, जिससे मजदूरों की दुर्दशा न हो।”

सहयोग और शांति का पाठ

इन सारे नेताओं की बात सुनकर श्री श्री रविशंकर ने जो कुछ कहा, वो कुछ इस प्रकार है-

“श्रमिक किसी भी समाज के पैर हैं, उनके बिना कोई समाज नहीं चल सकता। इसीलिए सनातन धर्म में पाद पूजा होती है, मतलब पैरों की पूजा।”

“कोरोना महामारी को लेकर डब्ल्यूएचओ ने बहुत गलतबयानी की है और भय का वातावरण बनाया है। हमारी संस्थाएं इस मामले पर लगातार काम कर रही हैं। लॉकडाउन की घोषणा के समय खाने के पैकेट पैदल जाते श्रमिकों को बांटे गए, जिससे वे खाली पेट न रहें।”

“श्रमिक और कृषिक वर्ग के हित में सरकार भी तमाम प्रयास कर रही है। संकट के समय आत्मनिर्भर बनने का अवसर है, सहयोग की आवश्यकता है, जो तनावमुक्त होकर किया जा सकता है। तनाव से मुक्ति के लिए हमारी संस्था से आप सहयोग ले सकते हैं, जिससे श्रमिकों का जीवन आसान बने।”

इसके बाद रविशंकर ने इन ट्रेड यूनियन नेताओं को दस मिनट का संगीतमय मेडिटेशन कराया। सभी ने आंख बंद कर वे क्रियाएं कीं, जो बताई गईं।

उन्होंने कहा कि “इस तरह आप तनाव से मुक्त महसूस करें, समस्याओं की आहुति दे दें, कोई उलझन नहीं, कोई परेशानी नहीं, सब शांत है, शांति ही जीवन है।”

तकनीकी कारणों से इंटक नेता अशोक सिंह बातचीत समाप्त होने के बाद धन्यवाद ज्ञापित करने को ही बोल सके। हालांकि उन्होंने सरकार की नीतियों को श्रमिक विरोधी बताया।

ग़ौरतलब है कि श्री श्री रविशंकर एक विवादित शख़्सियत हैं और मोदी के साथ क़रीबी का लाभ लेकर दिल्ली में यमुना के किनारे विशाल अंतरराष्ट्रीय भजन संध्या करवाने का आरोप है, जिससे वहां के पर्यावरण को काफ़ी नुकसान पहुंचा है।

अपना प्रदर्शन छोड़ कर इन ट्रेड यूनियन नेताओं का मोदी के किसी करीबी बाबा के पास जाने को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

कुछ ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता ये सवाल कर रहे हैं कि क्या ये ट्रेड यूनियन नेता मज़दूर वर्ग को रविशंकर का चेला बनाने जा रहे हैं?


धर्म मज़दूरों को काबू में रखने का एक हथियार है!

इस ख़बर से जहां अधिकांश ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट हैरानी जता रहे हैं, नयन ज्योति का कहना है कि इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है।

कंपनियों का मैनेजमेंट मज़दूरों को नियंत्रित करने के लिए अध्यात्म को एक टूल की तरह इस्तेमाल कर रहा है।

प्रोडक्शन प्रक्रिया के दायरे के बाहर जो हमें सांप्रदायिकता दिखाई देती है वो अब उत्पादन प्रक्रिया और श्रमिक शक्ति के पुनरुत्पादन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।

और ऐसा लगता है कि ये भी काम आर्ट ऑफ़ लीविंग प्रोजेक्ट के द्वारा संगठित किया जा रहा है, न कि ट्रेड यूनियनें खुद ब खुद ये करती हैं, हालांकि वे इसमें हिस्सेदारी करती ज़रूर  हैं।

ये अलग बात है कि ट्रेड यूनियनें कोई एकीकृत निकाय नहीं हैं और अलग अलग यूनियनें अलग अलग राजनीतिक विचारधाराओं से जुड़ी हुई हैं।

दरअसल ट्रेड यूनियनें मज़दूरों को काबू करने के तंत्र का ही एक हिस्सा हैं न कि उनको मुक्ति दिलाने का और उनके वजूद में बने रहने का ये प्रमुख कारण है और यही वजह है कि मज़दूर वर्ग का आंदोलन पिछड़ा है।

 


 

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