ओडिशा और राजस्थान के बाद अन्य राज्यों में बढ़ी ‘ठेका प्रणाली’ ख़त्म करने की मांग

Representational graphics of agitating workers

देशभर में ओल्ड पेंशन बहाली और ठेका प्रणाली को ख़त्म करने की मांग को लेकर ट्रेड यूनियनों का संघर्ष जारी है और इसके लिए आंदोलन लगातार किये जा रहे हैं। कुछ कांग्रेस शाषित राज्यों और  आम आदमी पार्टी शासित पंजाब  ने इसे लागू भी किया है। यह सही मायनों में यूनियनों की एक बड़ी जीत है।

दिलचस्प बात यह है कि ओडिशा और राजस्थान की पहल ने राजनीतिक नेताओं को अपनी राज्य सरकारों द्वारा इसी तरह की कार्रवाई की मांग करने के लिए प्रेरित किया है। हाल ही में तमिलनाडु की पट्टाली  मक्कल काची के अध्यक्ष अंबुमणि रामदास ने राज्य सरकार से सरकारी विभागों में ठेका नियुक्तियों को समाप्त करने और सामाजिक न्याय का एक उदाहरण स्थापित करने की मांग है।

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वहीं पश्चिम बंगाल में ठेका प्रणाली उन्मूलन के लिए राज्य सरकार पर ट्रेड यूनियनों द्वारा लगातार दबाव बनाया जा रहा है। ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि अब उन राज्यों में आंदोलन तेज किया जाना चाहिए जहां सरकारी नौकरियों में ठेका मज़दूरों की संख्या ज्यादा है।

‘न्यूज़क्लिक’ से मिली जानकारी के मुताबिक रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (यूनाइटेड ट्रेड्स यूनियन कांग्रेस) के अध्यक्ष अशोक घोष के अनुसार, इसका एक सबसे बड़ा उदहारण पश्चिम बंगाल है, जहां तृणमूल कांग्रेस के शासन में ठेका मज़दूरों की संख्या लगातरा बढ़ती जा रही है।

घोष ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा 18 अक्टूबर को जारी एक अधिसूचना का हवाला देते हुए  कहा  है  कि राज्य में पंप ऑपरेटरों और वाल्व ऑपरेटरों को पाइप जलापूर्ति योजनाओं के लिए ठेकेदारों के माध्यम से ठेका मज़दूरों को नियुक्त किया जा रहा है। इतना ही नहीं, ठेका मज़दूरों को ईएसआई और ईपीएफ के लाभ मिलने के झूठे दांवे भी किये जाते हैं।

ओडिशा में यूनियन की जीत

गौरतलब है कि हाल ही में ओडिशा और राजस्थान में ठेका प्रणाली को ख़त्म कर दिया गया है। ओडिशा सरकार के सामान्य प्रशासन और लोक शिकायत विभाग ने पिछले दिन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक द्वारा घोषणा के बाद 16 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की थी। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने 22 अक्टूबर को नियमितीकरण प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। जिसके बाद अन्य राज्यों में ट्रेड यूनियनों द्वारा सरकार पर इस बात का दबाव बनाया जा रहा है।

सीटू के ओडिशा राज्य सचिव बिष्णु मोहंती का कहना है कि 12 नवंबर, 2013 को सरकारी विभागों में अनुबंध की नौकरियों की शुरुआत करना राज्य सरकार की ओर से एक बुरा कदम था।

उनका कहना है कि “इस कदम के खिलाफ यूनियनों ने निरंतर संघर्ष जारी रखा था। इसी कड़ी में 11 सितंबर 2022 को सीटू ने भुवनेश्वर में एक विशाल प्रदर्शन किया था। जिसके बाद यह निर्णायक फैसला लिया गया।”

जानकारी के अनुसार BJD सरकार के इस फैसले से 57,000 मज़दूरों को लाभ हुआ है। जबकि राजस्थान में इस कदम से अनुमानित 1.1 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा, जिसमें अकेले शिक्षा विभाग के 40,000 से अधिक कर्मचारी शामिल हैं।

ओडिशा के ठेका मज़दूरों को मिली इस बड़ी जीत के पीछे ट्रेड यूनियनों का बहुत बड़ा योगदान है। लगातार संघर्ष के दौरान कई बार अदालती आदेश व टिप्पणियां भी दी गयी थीं, जिसके कारण पटनायक सरकार पर ठेका प्रणाली को समाप्त करने का दबाव बढ़ता जा रहा था।

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नवंबर 2021 में, न्यायाधीश बी. आर. सारंगी की एकल- पीठ ने कहा था कि मैनपॉवर की कमी के कारण ठेका मज़दूरों की भर्तियां करना, उनसे स्थाई कर्मचारियों के बराबर काम करवाना और कम वेतन देना  सही नहीं है।

उन्होंने कहा था कि-  “निःसंदेह, विकास में प्रौद्योगिकी का अपना स्थान है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि सरकार रोजगार का सृजन नहीं करेगी।”

न्यायमूर्ति सारंगी ने तब दलील दी थी कि वित्तीय संकट का हवाला देते हुए ठेका प्रणाली के तहत मज़दूरों को काम पर रखना  सही तरीका नहीं है।

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