पिछले साल 32,559 दिहाड़ी मज़दूरोें ने खुदकुशी की, राहुल गांधी ने कहा- मोदी की बुलाई आपदा है ये

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पिछले साल देश में कुल आत्महत्या करने वालों में सबसे बड़ी संख्या दिहाड़ी मज़दूरों की रही है। ये चौंकाने वाले आंकड़े खुद सरकारी संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हैं।

एनसीआरबी की ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में 10,281 किसानों और खेतिहर मज़दूरों ने जबकि 32,559 दिहाड़ी मजूदरों ने खुदकुशी की।

दिहाड़ी मज़दूरों में 29,092 मर्द और 3,467 औरतें थीं, जिन्होंने खुदकुशी की।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा कि गिरती जीडीपी, बढ़ती बेरोज़गारी, कोरोना के रोज़ाना बढ़ते मामले और पड़ोसी देशों से तनाव मोदी द्वारा लाई गईं आपदाएं (मोदी मेड डिज़ास्टर्स) हैं।

अभी कुछ दिन पहले देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गिरती अर्थव्यवस्था के लिए एक्ट ऑफ़ गॉड कहा था यानी भगवान की करतूत बताया था।

इस साल मार्च में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान मज़दूर वर्ग में आत्महत्या के मामले सामने आएंगे तो निश्चित ही वो दिल दहलाने होंगे।

जिसके लिए ट्रेड यूनियनें लगातार मोदी सरकार की अफरा तफरी वाली नीति और मज़दूरों को जानबूझ कर दबाने की नीति को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं और लॉकडाउन को एक मूर्खतापूर्ण कदम बता रहे हैं।

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दिहाड़ी मज़दूरों का प्रतिशत सर्वाधिक

साल 2018 के मुकाबले 2019 में दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या के मामले में 8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। बीते साल
देश में आत्महत्या के कुल 139,123 मामले दर्ज हुए हैं।

सर्वाधिक मामले महाराष्ट्र से हैं जहां 18,916 लोगों ने खुदकुशी की। इसके बाद तमिलनाड़ु में 13,493, पश्चिम बंगाल में 12,665, मध्य प्रदेश में 12,457 और उत्तर प्रदेश में 5,464 लोगों ने अपने ही हाथों अपनी जान ले ली।

दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या कुल आत्महत्याओं की 23.4 प्रतिशत है, जो बाकी वर्गों की अपेक्षा सर्वाधिक है।

अगर खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या को दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या में शामिल कर लिया जाए तो ये प्रतिशत 26.5 प्रतिशत हो जाएगी।

आत्महत्या करने वाले 10,281 किसानों में 4,324 खेतिहर मजदूर हैं। खुदकुशी के कुल मामलों में खेती किसाने से जुड़े लोगों का प्रतिशत 7.4 है। इनमें 394 महिला किसान शामिल हैं और 574 महिला खेतिहर मजदूर हैं।

हालांकि एनसीआरबी आंकड़े बताते हैं कि 2016 से 2019 के बीच किसान आत्महत्याओं में 10 प्रतिश की कमी आई है। साल 2016 में जहां 11,379 किसानों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2019 में 10,281 किसानों ने आत्महत्या की।

लेकिन मोदी सरकार ने किसानों और खेतिहर मज़दूरों के आंकड़ों को अलग करना शुरू किया और हिसाब से अगर देखा जाए तो किसान आत्महत्याओं में गिरावट और अधिक देखी जा सकती है।

किसान और खेतिहर मज़दूर

लेकिन किसानों का आत्महत्या को कम करके दिखाने की मोदी सरकार की इस चतुराई से भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों की दुर्दशा का प्रमाण सामने आ गया है जिनकी मौत पर किसी मुआवज़े की आवाज़ भी नहीं उठती है।

जबकि किसानों और खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्याओं में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं रहा है।

ध्यान देने की बात है कि एनसीआरबी ने 2017, 2018, 2019 के आंकड़े एकसाथ जारी किये हैं और बीते साल से पहले के दो सालों के आंकड़े जारी करने में काफ़ी देरी की गई।

पिछला 2016 का एनसीआरबी आंकड़ा 9 नवंबर 2019 को जारी किया गया था।

ताज़ा एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2018 के मुकाबले 2019 में आत्महत्या के मामलो में बिहार में 44.7%, पंजाब में 3705%, दमन दीव में 31.4%, झारखंड में 25%, उत्तराखंड में 22.6% और आंध्र प्रदेश में 21.5% की बढ़ोत्तरी हुई है।

एक और चौंकाने वाला नतीजा ये है कि कुल आत्महत्या करने वालों में 23.3 प्रतिशत दसवीं तक पास थे, जबकि स्नातक या इससे अधिक पढ़ने वाले 3.7% ही हैं।

 मोदी की बुलाई आपदाः राहुल गांधी

ताज़ा आंकड़ों पर विपक्ष केंद्र की मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है और हो सकता है कि आगामी संसदीय सत्र में ये मुद्दा बने लेकिन वहां भी इसकी संभावना धूमिल है क्योंकि मोदी सरकार ने पहले ही साफ़ कर दिया है कि प्रश्न काल बहुत सीमित होगा और उसके मौखिक जवाब नहीं दिए जाएंगे।

राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा, “भारत मोदी मेड डिज़ास्टर को झेलने पर मज़बूर हैः जीडीपी -23.9% चली गई है, 45 सालों में सबसे सर्वाधिक बेरोज़गारी है, 12 करोड़ नौकरियां चली गई हैं, केंद्र राज्यों को जीएसटी की हिस्सेदारी नहीं दे रहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक कोरोना केस आ रहे हैं और हमारी सीमाओं पर तनाव जारी है।”

कांग्रेस ने मोदी के मिस मैनेजमेंट को इन सबके लिए ज़िम्मेदार ठहराया है।

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