उत्तराखंड में कुंभ का कोरोना बम फूटा, 40 दिनों में 2000 लोगों की मौत, खेतों में जलाई जा रहीं लाशें

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उत्तराखंड पहाड़ के सीढीनुमा खेतों में जलती चिताओं की वायरल तस्वीरों की हकीक़त राज्य में हो रही कोरोना मौतों के आंकड़ों में दिखता है।

जो तस्वीर वायरल हुई है वो अल्मोड़ा से 15 किमी. दूर भांसवाड़ा की है। 9 मई को राज्य में कोरोना से 180 मौतें हुई हैं। लेकिन त्रासदी कहीं ज़्यादा बड़ी है। कोरोना सुदूरवर्ती गांवों तक मार कर रहा है

राज्य में कोरोना से अब तक 3,896 मौतें हुई हैं, जिनमें आधी मौतें सिर्फ बीते सवा महीने में हुई हैं। अगर और बारीक कहें तो इनमें से एक तिहाई इसी महीने यानी मई के शुरुआती दिनों में जबकि एक चौथाई बीते अप्रैल में दर्ज की गईं।

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य के कुल 2.49 लाख कोरोना केसों में एक चौथाई से ज्यादा दो मई से 10 मई के बीच और एक तिहाई अप्रैल में दर्ज हुए।

यह दिखाता है कि राज्य के 57 फीसद केस और 53 फीसद मौतें केवल पिछले 40 दिनों में हुईं। यानी कुंभ के दौरान और उसके बाद कोरोना के केस काफ़ी तेज़ी से बढ़े हैं।

एक अप्रैल को यहां एक्टिव केसों की तादाद केवल 2,236 थी, जो 30 अप्रैल को 49,492 और 10 मई को 74,480 हो गई।

इन 40 दिनों के दौरान यहां पाॅजिटिवटी रेट भी बढ़ा है। एक अप्रैल को यह 3.66 फीसद था, जो दस मई को 6.12 दर्ज किया गया।

इसी अवधि के दौरान रिकवरी रेट में कमी दर्ज की गई। यह एक अप्रैल को 94.59 फीसद थी, जो 10 मई को घटकर 66.66 फीसद रह गई है।

बीते सोमवार को राज्य में 5,541 नए केस पाए गए जबकि 168 लोगों की मौत हुई।

राज्य के मुख्य सचिव ओम प्रकाश के मुताबिक, ‘मरने वालों में 76 फीसद से ज्यादा लोगों की जान उन्हें अस्पताल में एडमिट कराने के 48 घंटों के अंदर गई। यानी देर से एडमिट कराना लोगों की जान जाने का बड़ा कारण है।’

कम गंभीर मरीेजों को आईसीयू बेड दिए जाने के सवाल पर मुख्य सचिव ने कहा कि इसकी जांच के लिए एक समिति बना दी गई है। इस तरह की ज्यादातर शिकायतें निजी अस्पतालों से आ रही हैं।

राज्य सरकार ने मंगलवार से यहां एक सप्ताह के लिए लॉकडाउन का एलान किया है। पहाड़ी राज्य में एक्टिव केसों और मौतों की संख्या बढ़ना चिंता की बात है क्योंकि इससे निपटने के लिए राज्य में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।

राज्य में बीजेपी की सरकार ने सरकारी अस्पतालों को भी ठेके पर देने का चलन शुरू कर दिया था और कई अस्तपतालों को दे भी दिया है, जिसका विरोध भी हुआ।

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