ये कैसी कटौती, पहले छंटनी, ले ऑफ़ अब एसी-एयर ब्लोअर तक बंद, भीषण गर्मी में बीमार पड़ रहे मज़दूर

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By वर्कर्स यूनिटी डेस्क

कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में मिली छूट के बाद अब जब कंपनियों में दोबारा उत्पादन शुरू हुआ है, छंटनी और तालाबंदी का जैसे तांता लग गया है। इन सबका सबसे अधिक असर ठेका मज़दूरों पर पड़ा है।

बेलसोनिका मज़दूर यूनियन की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, ‘लॉकडाउन के बाद कंपनी खुलते ही बेलसोनिका के मालिक हिरोआकी सुजुकी ने भी अपने मुनाफे को कायम रखने के लिए 17 मई  2020 को 290 ठेका मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया।’

लेकिन कंपनी में छंटनी यहीं नहीं रुकी। एक जून 2020 को 165 मज़दूरों को बिना किसी पूर्व सूचना के नो वर्क नो पे के तहत घर बैठा दिया गया। कंपनी की ओर से कहा गया कि काम आने पर बुला लिया जाएगा।

यूनियन नेताओं का कहना है कि ‘यह मज़दूरों के साथ बहुत बड़ा धोखा है और मज़दूरों को काम से निकालने की मालिकों की साज़िश है। सबको पता है जिस मज़दूर को वेतन नहीं मिलेगा उसका काम कैसे चलेगा?’

आईएमटी मानेसर औद्यगिक क्षेत्र में लाखों की संख्या में अस्थाई मज़दूरों को बेरोज़गार होना पड़ा है। मारुति सुजुकी के लिए ऑटो पार्ट्स बनाने वाली जापानी कंपनी बेलसोनिका मारुति की सबसे बड़ी और सबसे विश्वसनीय कंपनी है। इसमें 70 प्रतिशत बेलसोनिका और 30 प्रतिशत मारुति सुजुकी के शेयर हैं।

मज़दूरों से जानवरों जैसा बर्ताव का आरोप

यूनियन की विज्ञप्ति में कहा गया है कि कंपनी की इस साज़िश के खिलाफ यूनियनों ने समय-समय पर श्रम विभाग गुड़गांव, श्रम विभाग चंडीगड़, उपायुक्त गुड़गांव से लिखित शिकायतें की हैं, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

इसी प्रकार कंपनी मालिकों ने 241 परमानेंट मज़दूरों की मई माह की दो से 10 दिन की सैलरी काट ली।

कंपनी का कहना है कि मज़दूर प्लान के तहत कंपनी नहीं आए। जबकि यूनियन का कहना है कि कंपनी की ओर से मज़दूरों को कोई प्लान नहीं दिया गया था ताकि कंपनी वेतन कटौती का बहाना मिल सके।

लेबर डिपार्टमेंट को ज्ञापन के ज़रिए शिकायतें किए जाने के बावजूद प्रंबधन की ओर से इस बारे में कोई जवाब नहीं आया।

मज़दूरों की शिकायत है कि कंपनी में मज़दूरों की हालत यहीं नहीं रुकी। उनका आरोप है कि ‘प्रबंधन ने मज़दूरों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया है।’

यूनियन के एक मज़दूर ने वर्कर्स यूनिटी को चिट्ठी लिख कर कहा है कि, ‘मज़दूरों की सेहत से खिलवाड़ करके प्रबंधन मज़दूरों की जान लेने पर उतारु है। कंपनी मालिक ने कंपनी में लगे तापमान नियंत्रण सिस्टम एयर ब्लोअर को बंद कर दिया है। कैंटीन में सभी चलने वाले एसी को बंद कर दिया है।’

एसी बंद, एयर फ़्लोअर बंद

मज़दूर के अनुसार, ‘अब कंपनी में केवल उत्पादन कार्यस्थल पर पंखे चलते हैं। भीषण गर्मी में पंखे भी गर्म हवा फेंकते हैं। अब हालात ये है कि काम करते समय अधिक गर्मी के कारण मज़दूर बेहोश हो रहे हैं।’

“एसी ना चलने के कारण कैंटीन में खाना खाते समय पसीना मज़दूरों के खाने में गिरने की नौबत आ जाती है। इस बारे में जब मज़दूरों ने यूनियन ने शिकायत की तो प्रबंधन ने लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंगी का हवाला दिया है।”

इन परेशानियों से जूझते मज़दूरों का कहना है कि ‘क्या मुनाफे के लिए किसी मालिक द्वारा कंपनी में काम करने वाले मज़दूरों के प्रति इस तरह की सोच होगी? क्या कोई मालिक अपने मज़दूरों के खिलाफ इस तरह की कटौती कर सकता है? क्या वो अपने मज़दूरों को इस तरह से मरने पर मज़बूर कर सकता है?’

उनका कहना है कि ‘मालिकों की इस तरह की सोच देखकर मज़दूर भी समझ गए कि मालिक के लिए उनके मुनाफे से बढ़कर कुछ भी नहीं है। मज़दूर मर जाए मालिकों को उससे कुछ लेना-देना नहीं है।’

चिट्ठी में कहा गया है कि, ‘इस कंपनी में काम करने वाले कई मज़दूरों को इस संस्था में काम करते हुए 8 से 10 साल हो गए हैं। मज़दूरों ने पूरी मेहनत से संस्था को आगे बढ़ाया है। प्रबंधन ने यहां की कमाई से एक प्लांट इंडोनेशिया में लगाया है। जबकि मुसीबत के समय मज़दूरों का साथ देने की बजाय कंपनी जानबूझकर मज़दूरों को मरने पर विवश कर रही है।’

बीमार पड़ रहे मज़दूर

चिट्ठी में दावा किया गया है कि ‘भीषण गर्मी में काम करने वाले मज़दूरों में 15-20 प्रतिशत मज़दूर बीमार पड़ गए हैं। ये मज़दूर काम पर नहीं आ रहे हैं और काम कम होने के नाते प्रबंधन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।’

यूनियन ने कहा है कि जब मज़दूर प्रतिनिधियों ने इसकी जांच पड़ताल की तो पता चला कि जहां जापानियों के कंपनी मालिक व अन्य अधिकारियों की बैठक होती है वहां एसी चलता है और भारितय अधिकारी गर्मी में काम करते हैं।

यूनियन के अनुसार, ‘सवाल ये उठता है ये विदेशी पूंजीपति भारतीयों को नीची नज़र से देखते हैं। मज़दूरों को गुलामों की तरह देखते हैं और गुलामों की तरह व्यवहार करते हैं।’

यूनियन ने इसके ख़िलाफ़ लिखित शिकायत स्वास्थ्य और सुरक्षा विभाग गुड़गांव, उपायुक्त और अन्य लोगों को की है।

यूनियन का कहना है कि ‘मज़दूरों का मालिकों द्ववारा इस तरीके से किए जा रहे शोषण के खि़लाफ सरकार शिकायत मिलने पर भी क्यों कार्रवाई नहीं करती है? क्या सरकार भी पूंजीपतियों के इशारे पर काम कर रही है?’

आंदोलन की चेतावनी

बेलसोनिका यूनियन ने चेतावनी दी है कि अगर मज़दूरों का शोषण नहीं रुकता है तो इसके ख़िलाफ़ जोरदार आंदोलन किया जाएगा।

कोरोना की वजह से मज़दूर डर में जी रहे हैं ऊपर से नौकरी खोने का डर और काम धंधा बंद होने से भुखमरी की नौबत आऩे का डर है।

मज़दूर इसलिए घबरा रहे हैं कि भीषण गर्मी और बारिश के मौसम में बीमारियां अधिक फैलती हैं लेकिन कोरोना के डर से सभी निजी अस्पताल बंद हैं।

अगर बीमारी फैलती है तो जनता कहां जाएगी, कहां इलाज़ कराएगी।

मज़दूर और गऱीब जनता के सामने और भी समस्यांए हैं। महामारी के समय अपनी तमाम स्मस्यांओं के कारण जनता तनाव ग्रस्त हो चुकी है। और इस तनाव के कारण सरकार द्वारा जनता पर थोपे लॉकडाउन के समय बहुत सी आत्महत्याएं हुई हैं।

यूनियन ने कहा है कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि अपने हक के लिए पूरी ताकत से लड़ना होगा और अपना हक हासिल करना होगा।

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