तारीख़ नहीं रोज़गार चाहिए, बेरोज़गार युवाओं ने मोदी के ताली थाली से ही कराया ताक़त का अहसास

unemployed youth beat utensils

By लखमीचंद प्रियदर्शी

5 सितम्बर को शाम 5 बजकर 5 मिनट पर बेरोजगार नौजवानों ने अपनी ताक़त दिखाते हुए मोदीजी के हथियार ताली और थाली पीटने से ही उनको भारत की युवा शक्ति का अहसास कराया।

पूरे भारत में युवा शक्ति ने अपने घरों पर, कालेजों विश्वविद्यालयों और केंद्र और राज्य सरकार के भर्ती कार्यालयों पर थाली पीटने के साथ साथ ताली बजायी।

इसके कुछ देर बाद ही रेलमंत्री पीयूष गोयल के नाम से ट्वीट आया कि 1 लाख 40,000 एनटीपीसी पदों के लिए परीक्षा 15 दिसम्बर 2020 में आयोजित की जाएगी।

ये वही नाकाम मंत्री है जो भारत की जीडीपी को 10 प्रतिशत ले जाने की बात करते थे और पिछले वर्ष कहा था कि रोजगारों का खत्म होना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होता है।

क्या बेरोजगार युवाओं को इनके आश्वाशन पर विश्वास करना चाहिए? जबकि इनका ही अभी हाल का फरमान है कि रेलवे के 13 लाख कर्मचारियों में से 50% की कटौती की जायेगी।

साढ़े छः लाख खत्म करके केवल एक लाख लोगों को रोजगार देने का आश्वासन क्या चल कपट नहीं है?कार्यरत कर्मचारियों को निकालने के लिए 30 वर्ष या 50 वर्ष जो पहले हो जाए का फार्मूला लागू कर दिया गया है। क्या केंद्र सरकार की जनविरोधी चरित्र उजागर नहीं हो रहा है?

ताली थाली और तबाही

22 मार्च 2020 को शाम पांच बजे थाली पीटने के प्रधानमंत्री मोदी जी के आह्वान पर देश में मोदी भक्तों ने थाली और ताली बजायी थी और दिये जलाए थे ‘कोरोना योद्धाओं’ के सम्मान में,जब भारत में कोरोना के केवल 282 केस थे और तालाबंदी एक दिन के लिए की गयी थी।

लोगों को आने वाले बदतर समय का अंदाज़ा नहीं था क्योंकि मोदीजी उन्हें फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी का सपना बेच रहे थे, जबकि मोदीजी की सफलता के रिकॉर्ड का आलम था कि वे भारत की वर्ष 2014 लगभग 8% की जीडीपी को 2019-20 के वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 3.1 से भी नीचे ले आए थे।

पूर्व के उनके नोटबंदी और जीएसटी से धवस्त हुई अर्थव्यवस्था अपनी दुर्दशा पर अभी भी कराह रही थी।

चीन के वुहान शहर पर कोरोना की मार और यूरोप का हाहाकारी रुप सबके सामने था, पर मोदीजी उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की अगवानी में कोरोना अगवानी का जश्न नमस्ते ट्रंम में गलबहियां कर रहे थे।

पहली तालाबंदी के प्रथम सप्ताह में ही मोदीजी के अचानक घोषणा कर निर्णय थोपने ने तबाही के मंजर के आगाज से वाक़िफ़ करा दिया था, जब भारत की सड़कों पर करोड़ों बेबस मेहनतकश मजदूर और कामगार पैदल चल कर घर पहुंचने पर मजबूर हो गए।

एक झटके में उनको अपने देश में ही बेगाना कर दिया गया था, उनका रोजगार छीन लिया गया था। एक अदूरदर्शी नीतियों को लागू करने वाले प्रधानमंत्री मोदीजी के आदेश ने।

तब तक कोरोना की समस्या कुछेक क्षेत्रों तक सीमित थी, पर पूरे देश को तालाबंदी में झोंकने के परिणामस्वरूप बड़े उद्योगपतियों से लेकर मेहनतकश मजदूरों तक जल्द ही आने वाली बेरोज़गारी और ध्वस्त अर्थव्यवस्था की सुनामी से सामना होने लगा।

20 करोड़ रोज़गार छिन गए

पिछले पांच महीनों से ज्यादा के समय के बाद भी कोरोना महामारी काबू होने के बजाय लगातार बेकाबू होती जा रही है और अब प्रतिदिन लगभग 85 हजार केस सामने आ रहे और 40 लाख की संख्या को पार कर ब्राजील को पछाड़कर अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच गई है।

अदूरदर्शी नीतियों के कारण तालाबंदी खोलने के आधे अधूरे प्रयासों ने सबसे बड़ा संकट खड़ा किया रोजगार की समस्या।

केंद्र सरकार की सरकार की नवरत्न और लाभ देने वाले उपक्रमों को निजीकरण करने और अपने मित्रमंडली अंबानी और अडानी को हवाले करने ने रोजगार की भयावह स्थिति को उजागर कर दिया।

तालाबंदी से पहले जो लोग रोजगार में लगे थे उनके भी लगभग 20 करोड़ से ज्यादा के लोगों के लिए रोज़गार समाप्त हो गया। उसपर केंद्र सरकार ने अपने विभागों में पचास प्रतिशत की कटौती का आदेश निर्गत कर दिया। राज्य सरकारों के भी ये ही हालात हैं।

रोज़गार की तलाश में करोड़ों नये युवक बेरोजगारी की लाइन में खड़े ही हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार ही हैं जो कोरोना काल में बेरोज़गारों को सरकारी रोजगारों को जनता को उपलब्ध करा कर भारतीय अर्थव्यवस्था को गर्त से उबारने में मददगार हो सकते हैं, रोज़गार छीन कर नहीं।

बीजेपी से पीछे नहीं बाकी पार्टियां

राज्यों में भी बीजेपी शासित राज्यों को छोड़कर गैर -बीजेपी शासित राज्यों चाहे कांग्रेस शासित हों या अन्य पार्टियों की सरकारें भी रोज़गार देने में बहानेबाजी करती रही हैं।

माननीय सांसद और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जी कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारों को रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।

यदि वे इस दिशा में काम करते तो निश्चित ही बीजेपी शासित केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर भी रोज़गार देने का दबाव पड़ता, किन्तु ऐसा लगता है कि सभी एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।

केवल तारीख़ पर तारीख़ तो देंगे , पर वह तारीख़ नहीं आती जब ससम्मान रोज़गार उपलब्ध होने पर किसी बेरोज़गार के घरों में खुशियों का दीपक जले। रोज़गार पाए लोगों से उनकी क्रय-विक्रय शक्ति में वृद्धि होने से भारत की बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं में रौनक लौट आएगी।

रोज़गारों को छीनकर कोई देश आबाद नहीं हो सका है। चाहे चीन हो या अमेरिका या जर्मनी या अन्य देश सभी कोरोनावायरस महामारी से पीड़ित हुए हैं किन्तु उन्होंने रोज़गार नहीं छीने है, वरन् बरकरार रखें हैं। ससम्मान रोज़गार उपलब्ध कराना सरकारों का उत्तरदायित्व है।

देश के युवाओं से आह्वान है कि उनका ये आंदोलन तो तानाशाही सरकार के लिए युवाओं की अंगड़ाई है, रोजगार प्राप्ति हेतु बड़े पैमाने पर आंदोलनों की ज़रूरतता है, जो निरंतर जारी रहना चाहिए। और ये सिलसिला 9 सितम्बर को रात नौ बजकर 9 मिनट पर भी जारी रहने की संभावना है।

सरकारें केवल आश्वासन न दें ,रोज़गार दें।

यदि रोज़गार उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं तो सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। जो जनहित में काम करेगा, वही भारत की सत्ता को वरेगा।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.