झारखंड: पारसनाथ हिल्स पर आदिवासियों और जैनी मंदिर प्रबंधन के बीच क्या है विवाद?

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/02/Digamber-teerh-Jharkgand-madhuban.jpg

By नित्यानंद गायेन

झारखंड के पारसनाथ पर्वत पर स्थित जैन समुदाय का पवित्र तीर्थ स्थान सम्मेद शिखर अब पर्यटन क्षेत्र नहीं होगा। मोदी सरकार ने 3 वर्ष पहले जारी किए गए अपने ही आदेश को वापस ले लिया है।

लेकिन अब वहां आदिवासियों  की शिकायत है कि जैन समुदाय के लोग उन्हें  वहां जाने से रोक रहे हैं और जैन धर्म के लोगों का कहना है कि पूरा क्षेत्र  उन्हीं का है इसलिए वे वहां नहीं आ सकते। जबकि झारखंड के आदिवासी  समुदाय के लोग वहां वर्षों से अपना टुसू  उत्सव पारसनाथ पर मनाते हैं।

टुसू पर्व झारखंड के कुड़मी और आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह जाड़ों में फसल कटने के बाद पौष के महीने में मनाया जाता है।

साल 2019 में केंद्र द्वारा सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया था। जिसके बाद झारखंड सरकार द्वारा एक संकल्प जारी करके जिला प्रशासन की अनुशंसा पर इसे पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था।

इस विवाद में जैन समुदाय के देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आज एक नोटिफिकेशन भी जारी किया गया है। नए नोटिफिकेशन के मुताबिक सभी पर्यटन और इको टूरिज्म एक्टिविटी पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं। जैन समाज इसे अपनी बड़ी जीत मान रहा है और इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए जैन समाज के धार्मिक नेताओं ने आंदोलन खत्म करने की अपील की है।

साथ ही  जैन समाज सम्मेद शिखरजी का पर्यटन क्षेत्र घोषित करने से जुड़ी राज्य सरकार की 2019 की अधिसूचना निरस्त करने की मांग कर रहा है।

इस बीच केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन के बाद  पारसनाथ शिखर के पूरे क्षेत्र पर जैनी समाज अपना अधिकार बता रहे हैं, जबकि इस क्षेत्र में वहां के आदिवासी लोग सदियों से अपना टुसू पर्व मनाते आ रहे हैं। जैनियों का कहना है कि वह पूरा क्षेत्र उनका धार्मिक स्थल है। इसी बात को लेकर वहां इन दोनों समुदायों के बीच नया विवाद उठ खड़े होने की खबर आ रही है।

झारखंड के पारसनाथ हिल्स पर जैन धर्मगुरुओं के कब्जे के ख़िलाफ़ आदिवासी एकजुट हो रहे हैं और जैनियों के प्रदर्शन के बाद आदिवासी इकट्ठआ होकर पारसनाथ पर जैनियों से इसे मुक्त कराने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें-

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/02/Sammet-Shikharji.jpg

जैन मुनियों के विरोध के बाद केन्द्र सरकार ने पत्र जारी कर विवाद को टाल दिया लेकिन उसके बाद आदिवासी-मूलवासी समाज के लोग नाराज हो गए हैं। आदिवासी-मूलवासी समाज के लोगों का कहना है कि सरकार उनकी धार्मिक भावना के साथ खिलवाड़ कर रही है।

दरअसल केंद्र सरकार के नोटिफ़िकेशन के बाद क्षेत्र में मांस- शराब, बलि प्रथा पर रोक लग गयी है लेकिन यह आदिवासियों और वहां के मूल निवासियों की प्रथा का प्रमुख हिस्सा है। जबकि आदिवासियों  को लग रहा है कि  जैनी धन्नासेठ धर्म गुरुओं का इरादा पूरे क्षेत्र पर कब्जे का है  और  केंद्र सरकार की नोटिफिकेशन से  वे और  शक्ति से  ऐसा करने में लग गये हैं  इसलिए आदिवासी-मूलनिवासी समाज इसका विरोध कर रहा है।

इस मुद्दे झारखंड के मज़दूर संगठन समिति (एमएसएस) के मज़दूर नेता बच्चा सिंह ने वर्कर्स यूनिटी से  कहा कि, ‘”हम चाहते हैं  कि जैसा पहले चल रहा है  वैसा ही कायम रखना चाहिए,   अभी  बिना मतलब  एक नये विवाद को खड़ा कराया जा रहा है। आस-पास के लोगों का, खासकर आदिवासियों का उन सब से कुछ लेना-देना भी नहीं था,  लेकिन जैनी धार्मिक गुरु जिस तरह से अब कर रहे हैं,  इससे यह मामला और विवादित बनते चला जायेगा।”

वे आगे कहते हैं कि, पारसनाथ पर शिखरजी जैन लोगों का है , लेकिन उसी पारसनाथ पर आदिवासियों का अपना  देवी-देवता जो भी वे मानते हैं , वहां है। वे लोग साल में एक बार वहां  अपना पर्व मनाते हैं और यह सब कुछ वर्षों से वहां होता आ रहा है।

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/02/Jain-in-Madhuban.jpg

विवाद कैसे खड़ा हुआ?

इस बारे में बच्चा सिंह कहते हैं- ‘हुआ यह था कि, महाराष्ट्र से कुछ लोग शिखरजी मंदिर में आये हुए थे,  उन्होंने कुछ लोगों को मंदिर में घूमते देखा तो उन्हें रोक कर कहा कि, ‘ आप लोग जैन नहीं हैं इसलिए यहां से निकल जाइये।’ मने यह विवाद यहां के लोगों द्वारा खड़ा नहीं किया गया है , महाराष्ट्र से आये उन लोगों द्वारा खड़ा किया गया है। और यह विवाद इस कदर बढ़ा कि कुछ जैनी उन लोगों के विरोध के बाद  हाथापाई करने पर उतर आये  जिससे यह विवाद और गंभीर हो गया।’

‘यह घटना करीब एक सप्ताह पहले कि है, कोडरमा में कुछ लड़कियां घुमने आई थीं, उसी वक्त यह घटना घटी, महाराष्ट्र से आये उन जैनियों ने यह विवाद शुरू किया और फिर ऐसी हरकतें कीं  कि स्थानीय आदिवासियों को आक्रोशित किया। लेकिन हमें समझ नहीं  आ रहा है कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? यह बिलकुल गलत है कि कोई गैर जैन उस मंदिर में नहीं जा सकता।’

ये भी पढ़ें-

बच्चा  सिंह आगे कहते  हैं कि,  जब इस घटना की खबर गांवों में पहुंची तो  सब गाँव वाले और वहां के स्थानीय दुकानदार भी इकठ्ठा हो गये, और वे भारी संख्या में थाने में पहुँच गये,  लेकिन पुलिस वाले भांप लिए थे कि गाँव के लोग उन लोगों को पकड़ लेंगे पूछताछ के लिए, इसलिए  पुलिस वालों ने  महाराष्ट्र से आये और विवाद खड़ा किये उन पांच -छह लोगों को थाने में उठा लिया था सुरक्षा की दृष्टि से,  लेकिन गाँव वालों ने थाने के पुलिस वालों से कहा कि उन्हें बाहर कीजिये हम उनसे पूछना चाहते हैं कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?

बच्चा सिंह का कहना है कि, ऐसा लग रहा है कि  यह सब कुछ प्लानिंग के साथ हो रहा है, क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। हमें लग रहा है कि इन लोगों को यहाँ भेज कर ऐसा करवाया गया है!

नेताओं का आश्वासन 

बच्चा सिंह ने बताया कि, थाने में गाँव वालों के पहुंचने पर पुलिस वालों ने  सम्वाद के लिए गिरिडीह से  झामुमो के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू को बुलवाया गया। बातचीत में उन्होंने गांववालों को आश्वासन दिया कि  आगे ऐसा कुछ भी नहीं होगा, इस पहाड़ पर सब लोगों का अधिकार है।

बच्चा सिंह कहते हैं कि, पहाड़ पर और पहाड़ के आसपास और उससे सठे हुए  सभी आदिवासी गाँव हैं, दूसरी जातियां भी हैं , लेकिन आदिवासी गाँव ज्यादा हैं।

जैनियों का कहना है कि पूरा पारसनाथ उनका है , लेकिन उनका यह दावा झूठा है। पारसनाथ को वहां के लोग यानि मूल आदिवासी लोग बचाए रखे हुए हैं वर्षों से,  वहां  देशी विदेशी जो सैलानी आते हैं उनकी सुरक्षा का भी पूरा ध्यान वहीँ के स्थानीय लोग रखते हैं और आज तक वहां किसी विदेशी यात्री के साथ कोई ऐसी अप्रिय घटना इसलिए नहीं घटी है क्योंकि वहां के स्थानीय आदिवासी ही उनका ख्याल रखते हैं।

कैसे शुरू हुआ था यह सब मामला?

इस सवाल के जवाब में  बच्चा सिंह बताते हैं कि, ‘असल में जब यहाँ रघुवर दास की सरकार थी , तब उन्होंने कुछ क्षेत्रों को इको सेंसेटिव ज़ोन के तहत चिंहित किया था, और उसी पर केंद्र की मोदी सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया था। लेकिन अब यहाँ झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और वो भांप गयी थी कि यह विवादित है , इसलिए वह इसे पर्यटन क्षेत्र घोषित करना चाहती है, इससे होगा यह कि वहां के जो गैर जैन लोग हैं यानि  आदिवासियों और स्थानीय लोगों को रोजगार का एक अवसर मिलेगा।

लेकिन जैनियों की दिक्कत यह है कि अगर यह पर्यटन क्षेत्र घोषित होगा तो सब कुछ सरकार के अधीन आ जायेगा, उनका मंदिर भी।  मंदिर का देख-रेख आदि सारा काम सरकार के अधीन आ जायेगा। ऐसे में जैनी धर्म गुरुओं का वर्चस्व खतरे में पड़ जायेगा। वहां मंदिर में अरबों का चढ़ावा चढ़ाया जाता है हर साल। यह सब कुछ उनके हाथों से चला जायेगा।

sammet shikharji temple

सबसे अहम बात 

बच्चा सिंह कहते हैं कि, सबसे अहम बात यह है कि वहां जो सरकारी वन भूमि है उस पर कब्जा करके बैठे हैं, ऐसे यह उनके हाथों से निकल जायेगा और जो लाखों करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है उससे भी जैनी धर्म गुरु पुजारी हाथ धो बैठेंगे। यह उन्हें बर्दास्त नहीं हो पा रहा है। जो मंदिर आदि बने हैं , वो वहां के स्थानीय लोगों की जमीन पर बने हैं  और वे उन्हें ही वहां से खाली करने को कह रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि जिनकी जमीन पर आपका मंदिर बना है और जो सदियों से वहां  अपनी परम्परा के अनुसार पूजा पाठ करते आ रहे हैं आप उन्हें ही वहां से बाहर करना चाह रहे हैं!  मने उन्हीं की जमीन पर बैठ कर आप उन्हें ही 105 किलोमीटर के दायरे से बाहर करना चाहते हैं और उन्हें उनकी संस्कृति से वंचित और बेदखल कर देना चाहते हैं, यह तो नहीं होने देंगे वे लोग।

जैनी चाहते हैं कि उस क्षेत्र में 105 किलोमीटर क्षेत्र को स्पेशल इकनोमिक जोन जैसा एक धार्मिक सेंसेटिव जोन घोषित करो जहाँ मांस मदिरा कुछ नहीं चलेगा! ऐसे में विवाद का बढ़ना तो तय है न ?

जिसकी जमीन पर आप अपना धार्मिक स्थल निर्मित किये हैं, उनकी अपनी भी परम्परा और संस्कृति है जिसमें बलि प्रथा शामिल है , वे क्यों छोड़ेंगे अपनी प्रथा और संस्कृति?

वहां समता सुसार नामक एक संगठन है , यह आदिवासियों का अपना संगठन है, अभी वहां कोई विरोध प्रदर्शन तो नहीं हुआ है लेकिन आगामी 10 जनवरी को वहां एक प्रोटेस्ट इस संगठन की तरफ से प्रस्तावित है। इस संगठन की तरफ से एक नोटिस हमें मिला है जो उन्होंने प्रशासन को भी भेजा है कि दस तारीख को वे इस मामले को लेकर एक प्रदर्शन करेंगे।

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2022/02/Mazdoor-Sangathan-samiti-MSS.jpg

मजदूर संगठन समिति की भूमिका क्या है? 

बच्चा सिंह कहते हैं,- हमारे संगठन में उस क्षेत्र के करीब 18 हजार सदस्य हैं और उनके परिवार वालोग को जोड़ेंगे तो यह संख्या एक लाख के पार है। हमारा कहना है कि जो जैन धर्म को मानने वाले हैं वे अपना धर्म को माने हमें कोई आपत्ति नहीं है इसमें। लेकिन जो वहां के मूल आदिवासी निवासी हैं, आप उन्हें उनकी संस्कृति और त्योहारों से अलग नहीं कर सकते हैं। जैनियों के इस तरह की दावेदारी कि वे उस पहाड़ पर वहां के आदिवासी और स्थानीय गैर जैनियों को चढ़ने नहीं देंगे इसका हम विरोध करते हैं क्योंकि आपकी दावेदारी गलत है, यह पहाड़ यहाँ के लोगों का है।

मज़दूर संगठन समिति पारसनाथ पहाड़ पर काम करने वाले डोली मज़दूरों के संगठन का काम करती है। यहां काम करने वाले क़रीब 10 डोली मज़दूर यूनियन के सदस्य हैं। डोली मज़दूरों के चंदे से यहां एक अस्पताल भी बनाया गया है। बच्चा सिंह इस संगठन के नेता हैं।

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.