एक्सपोर्ट गारमेंट फ़ैक्ट्रियों के मज़दूरों के बहादुराना संघर्ष के सबक

वेतन वृद्धि की मांग को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाले बांग्लादेश के मज़दूरों के लिए शायद ये वाक्य सही है कि मज़दूरों के पास खोने के लिए सिवाय बेड़ियों के कुछ नहीं है.

कुछ साल पहले असंगठित क्षेत्र के सारे मज़दूरों ने लड़ाई की एक मिसाल कायम की. महीनों तक चली हड़ताल और कई दिनों तक ढाका के औद्योगिक इलाके में फैक्ट्रियों पर सन्नाटा पसरा रहा. लेकिन आखिरकार इस आंदोलन और हड़ताल से वेतन सुधरे और मैनेजमेंट की मनमानी में कमी आई.

बांग्लादेश में कपड़ा बनाने की फैक्ट्रियां 30 लाख लोगों को रोजगार देती हैं. मजदूर संघ वेतन को लेकर पिछले कई महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं और ये प्रदर्शन अब हिंसक हो गए हैं. आख़िरी बार मजदूरों की तनख़्वाह 2006 में बढ़ाई गई थी. भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है लेकिन यहां वैसा माहौल नहीं दिखता है. मजदूरों को कंपनियां लूट रही हैं और भारत सरकार भी मालिकों की भाषा बोल रही है. कम से कम इस मामले में भारतीय मजदूर वर्ग को बांग्लादेशी मजदूरों के बहादुराना संघर्ष से सीखना चाहिए.
ढाका की फ़ैक्ट्रियों के हज़ारों मजदूरों ने मुख्य राजमार्ग को बंद कर दिया. फ़ैक्ट्री मजदूरों और पुलिस के बीच लगातार झड़पों हुईं लेकिन वे टिके रहे.
ये मज़दूरों का ही दबाव था कि अधिकतर मजदूर संघों ने सरकार की ओर से घोषित नई न्यूनतम मजदूरी (3000 टका) को अस्वीकार कर दिया. वे 5000 टका न्यूनतम वेतन की मांग पर अड़े हुए थे. कपड़ा निर्माताओं का कहना था कि ऐसा पहली बार है जब विरोध प्रदर्शन की वजह से कपड़ा बनाने वाली सैकड़ों फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा.

बांग्लादेश में भी कंपनियां नुकसान सहने को तैयार थीं लेकिन मजदूरों को उनका देने के लिए तैयार नहीं थीं.

कर्मचारी संघों ने चेतावनी दी थी कि जब तक न्यूनतम मजदूरी को 70 डॉलर महीना (लगभग 5000 टका) नहीं कर दिया जाता, वे प्रदर्शन जारी रखेंगे.
सरकार ने मजदूरों के वेतन में 80 फ़ीसदी की बढ़ोतरी करके 43 डॉलर (लगभग 3000 टका) कर दिया था. अभी पहले उन्हें 1600 टका पर 12-12 घंटे काम करना पड़ रहा था. इस मामले में सरकारें और पूंजीपति वर्ग एक ही भाषा बोलते हैं. उस समय बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चेतावनी दी थी कि मजदूरों की ओर से किए जा रहे तोड़-फोड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.

बड़े ब्रांड बांग्लादेशी मजदूरों की मजदूरी चुरा रहे हैं

कई विदेशी ब्रैंड जैसे वॉलमार्ट, टेस्को, एच एंड एम, मार्क्स एंड स्पेंसर और ज़ारा बांग्लादेश से बनकर आए कपड़े बेचते हैं.
कपड़ा उद्योग को बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. देश के कुल निर्यात से होने वाली 80 फ़ीसदी कमाई इसी उद्योग से आती है. बांग्लादेश में कपड़ा बनाने की चार हज़ार फैक्ट्रियां हैं जिसमें 30 लाख लोगों को रोजगार मिलता है. इनमें अधिकतर महिलाएं हैं. बांग्लादेशी कपड़ा उद्योग पर ये आरोप लगाए गए थे कि फ़ैक्ट्रियों में मजदूरों का शोषण होता है. इसके बाद कई विदेशी कंपनियों ने बांग्लादेश सरकार से कहा था कि वो मजदूरों का न्यूनतम वेतन बढ़ाए.

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