संगठित प्रचार अभियान के बाद दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी अमेजॉन ने मज़दूरों के आगे घुटने टेके

अमेजॉन ने साढ़े तीन लाख अमरीकी वर्करों के लिए न्यूनतम वेतन 15 डॉलर यानी 1000 रुपये प्रति घंटा किया

बढ़ती राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं के आगे झुकते हुए दुनिया की सबसे बड़े कार्पोरेट अमेजॉन ने 3,50,000 अमरीकी वर्करों की न्यूनतम मज़दूरी (प्रतिघंटे) को बढ़ाकर 15 डॉलर (क़रीब 1000 रुपया) प्रति घंटा करने की घोषणा की।

ये जीत इसलिए भी पूरी दुनिया के मज़दूर वर्ग के लिए मायने रखती है क्योंकि अमेजॉन की कोई यूनियन नहीं है।

कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि ये फैसला आगामी एक नवंबर से लागू होगा और अमरीकी में मौजूद कंपनी के सभी गोदामों में सभी परमानेंट, टेंपरेरी और मौसमी कामगारों पर लागू होगा।

कंपनी अभी तक कितना न्यूनतम मज़दूरी देती थी, ये साफ नहीं है क्योंकि कंपनी में मज़दूरी का कोई फिक्स सिस्टम नहीं रहा है।

अमेजॉन के कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर अभियान चलाते हुए।

हालांकि अमेजॉन के पब्लिक पॉलिसी हेड जे कार्ने ने एक बयान में संकेत दिया था कि न्यूनतम मज़दूरी 7.25 डॉलर प्रति घंटे थी।

कार्ने के अनुसार, “वर्तमान 7.25 डॉल प्रति घंटे का वेतन एक दशक पहले तय हुआ था। हम न्यूनतम मज़दूरी के समर्थक हैं।”

कंपनी के फाउंडर और सीईओ जेफ़ बेज़ोस एक बयान में कहा, “हमने अपने आलोचकों की बातों पर गौर किया, बहुत सोचा कि इस बारे में क्या किया जाना चाहिए और फैसला किया कि हमें आगे बढ़कर इस ओर काम करना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि हम इस बदलाव से बहुत उत्साहित हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों और अन्य बड़े कार्पोरेट घरानों से भी चाहते हैं कि वो आगे बढ़कर इस कारवां में शामिल हों।

amazon workers

अमेजॉन ने कहा है कि जिन वर्करों को 15 डॉलर पहले से ही मिल रहे थे उनके वेतन में भी बढ़ोत्तरी होगी।

ये फैसला ऐसे समय आया है जब कंपनी के अमरीकी वेयरहाउस (गोदामों) में काम करने वाले वर्करों के वेतन को लेकर हो रही आलोचनाओं में अमरीका के वामपंथी सीनेटर बर्नी सैंडर्स भी शामिल हो गए।

सीईओ जेफ़ बेज़ोस दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपति हैं, जिनकी दौलत 165 अरब डॉलर (12,045 अरब रुपये) है और मुनाफा कमाने की उनकी गति यही रही तो वो जल्द ही ट्रिलिनेयर भी बन सकते हैं।

Amazon CEO Jeff Bezos
दुनिया का सबसे अमीर आदमी जेफ़ बेज़ोस।

पिछले कुछ महीनों से सैंडर्स अमेजॉन की कठोर अलोचना कर रहे थे। उन्होंने एक विधेयक भी प्रस्तावित किया था जिसके तहत कम वेतन देने के लिए कंपनी पर ज़ुर्माना लगाए जाना का प्रावधान था।

कंपनी अमरीका में अपना दूसरा हेडक्वार्टर बनाने की घोषणा की थी और आलोचकों का कहना था कि ये सब टैक्स बचाने के लिए किया जा रहा है। इसलिए कंपनी पर दबाव और बढ़ा।

मज़दूरों ने अमेजॉन में एक बड़ी लड़ाई जीती है लेकिन इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी टार्गेट ने कहा है कि वो न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाएगी लेकिन 2020 से पहले नहीं।

इस साल की शुरुआत में वॉलमार्ट ने घोषणा की थी कि वो अपने वर्करों की न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाकर 11 डॉलर प्रति घंटे करने जा रही है।

berny Sanders
अमरीका के प्रमुख विपक्षी नेताओं में से एक वामपंथी सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने न्यूनतम वेतन लागू करने के लिए एक बिल का प्रस्ताव किया था।

लेकिन अमेजॉन की घोषणा से इन जैसी कंपनियों पर दबाव बढ़ गया है क्योंकि दिसम्बर में शॉपिंग सीज़न शुरू होगा और उससे पहले वर्करों का कंपनियों पर काफी दबाव होगा।

इस जीत पर सीनेटर सैंडर्स ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में कहा कि एक लंबे प्रचार अभियान के बाद अमेजॉन ने अमरीकी वर्करों के लिए न्यूनतम मज़दूरी को 15 डॉलर प्रतिघंटे करने की घोषणा की है। इस कदम से साढ़े तीन लाख परमानेंट और टेंपरेरी वर्कर लाभान्वित होंगे। ये तब संभव हो पाया है जब हमने अपनी आवाज़ बुलंद की, अपने हक के लिए एक साथ खड़े हुए।

उन्होंने कहा कि अब अगली बारी वॉलमार्ट, मैकडॉनल्ड और अन् फॉस्ट फूड उद्योग, एयरलाइन इंडस्ट्री और रिटेल इंडस्ट्री है, जिन्हें अपने वर्करों को जीने लायक वेतन देना चाहिए, कम से कम 15 डॉलर प्रति घंटे।

अमेजॉन की यूरोपीय शाखाओं पर भी कम वेतन देने के आरोप हैं और इटली और जर्मनी में भी वर्कर इस विशाल कंपनी के ख़िलाफ़ काफी दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।

जर्मनी और पोलैंड के बीच बहुत कम दूरी है और जर्मनी की एमेजॉन अपने सारे काम पोलैंड में आउट सोर्स कर दिए हैं, जहां न्यूनतम वेतन जर्मनी से भी कम है।

अभी पिछले दिनों पोलैंड में अमेजॉान के  वेयरहाउस में हड़ताल हुई थी।

germany amazon worker
जर्मनी और इटली में ट्रेड यूनियनें अमेजॉन के ख़िलाफ़ सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रही हैं। वर्करों का कहना है कि कंपनी न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन दे रही है।

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