नुपूर शर्मा विरोध प्रदर्शन मामलाः इलाहाबाद का माहौल खुद पुलिस प्रशासन बिगाड़ रहा है

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2022/06/Afreen-house-in-Allahabad-which-police-want-to-demolish.jpg

By सीमा आज़ाद

कानपुर के बाद इलाहाबाद में कल जो प्रदर्शन और पथराव की घटना हुई उससे पुलिस जिस तरह से निपट रही है, उससे यह समझ में आ रहा है कि शुक्रवार की घटना के बहाने सरकार नागरिकता कानून विरोधी आंदोलनकारियों से निपट रही है, न कि उपद्रव के दोषियों से।

शुक्रवार की घटना का फायदा इलाहाबाद पुलिस जिस तरह से उठा रही है उससे तो लोगों को कल की पत्थरबाजी की घटना पर भी संदेह होने लगा है।

पुलिस का दंभ और अराजकता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि आज वकीलों के एक प्रतिनिधिमंडल, जिसमें मैं भी शामिल थी, के सामने से पुलिस की टीम ने एक व्यक्ति को गाड़ी में उठा लिया।

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

इलाहाबाद में कल जुमे की नमाज़ के बाद पथराव की जो घटना हुई, उसके “मास्टर माइंड” के तौर पर पुलिस ने कल रात 8.30 बजे वेलफेयर पार्टी से जुड़े जावेद मोहम्मद को उनके घर से उठा लिया।

12 बजे रात के आसपास वे फिर आए और उनकी पत्नी परवीन फातिमा और छोटी बेटी सुमैया फातिमा को उठा लिया। रात 3 बजे वे फिर आए और बड़ी बेटी आफरीन फातिमा को थाने चलने को कहने लगे।

आफरीन जेएनयू में स्टूडेंट यूनियन से जुड़ी हैं, उसने रात में ले जाने के खिलाफ बहस की तो वे चले गए, लेकिन घर में ताला मारने और बुलडोज करने की बात करने लगे।

https://www.facebook.com/Aysha.Renna24/videos/389459603149060

आफरीन को जेल भेजना चाहती है पुलिस?

आफरीन ने राष्ट्रीय महिला आयोग को इसकी शिकायत दर्ज कराई और सोशल मीडिया पर पिता मां और बहन को अनजान जगह पर ले जाने की जानकारी प्रसारित की।

सुबह से ही इलाहाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता सक्रिय हो गए। 11 बजे तक यह पता चल गया कि जावेद मोहम्मद की पत्नी और बेटी को महिला थाने पर बिठाया हुआ है, जावेद जी के बारे में कुछ नहीं पता।

पीयूसीएल और अधिवक्ता मंच से जुड़े प्रख्यात अधिवक्ता के के राय की अगुवाई में एक टीम (मोहम्मद सईद, राजवेंद्र, प्रबल प्रताप, स्मृति कार्तिकेय, धर्मेंद्र, पत्रकार पवन सत्यार्थी, शिल्पी, अनुराधा, मैं और अन्य) थाने पर उनसे मिलने गई, जहां पहले तो कह दिया गया यहां किसी को नही रखा है, काफी बहस के बाद माना लेकिन कहा गया कि मिलने नही देंगे।

काफी बहस के बाद जब हमने सुप्रीम कोर्ट के ‘डीके बसु जजमेंट’ का हवाला दिया और काफी दबाव बनाया तब केवल दो महिला अधिवक्ता को मिलने की इजाज़त दी गई। मैं और स्मृति कार्तिकेय अंदर जाकर दोनों से मिले।

परवीन फातिमा और सुमैया ठीक थे, उन्होंने बताया कि उन्हें यहां लाने का कोई कारण नहीं बताया गया, न ही कोई पूछताछ ही की गई, फिर भी वहां बिठाया हुआ है, और बार बार आफरीन को भी लाने की बात की जा रही है।

सुमैया ने बताया कि उनसे यही पूछा गया कि ‘घर पर क्या बात होती है।’ इससे पुलिस वालों का अल्पसंख्यकों के प्रति रुख का भी पता चलता है।

महिला कांस्टेबल जो यूनिफॉर्म में नहीं थी, ने हमसे कहा कि “अभी मैडम पूछताछ के लिए आएंगी, इसके बाद इन्हें वापस भेज दिया जायेगा।”

सामने से खींच ले गई पुलिस

जब 5 मिनट के बाद हम मुलाकात कर बाहर निकले तो कुछ लोग हमारे डेलिगेशन के सदस्यों से बहस कर रहे थे। पता चला कि वे हमारे साथ गए जावेद के भाई और कब्रिस्तान कमेटी से जुड़े एक मित्र से उनका नाम गांव पूछ रहे थे, उसी पर बहस हो रही है।

हम थाने के बाहर निकलकर अपनी-अपनी गाड़ी में बैठ रहे थे तभी एसओजी की गाड़ी जावेद के मित्र के सामने रुकी, उन्हें गाड़ी में खींचा और चल दी। हमने गाड़ी का वीडियो भी बनाया। लेकिन हम शॉक्ड थे।

पुलिस की हिम्मत और दंभ इतना ज्यादा बढ़ गई है, कि वे अधिवक्ताओं, मानवाधिकार कर्मियों की मौजूदगी में भी गैर कानूनी कार्यवाही करने लगे हैं। ऐसी ही है यूपी की कानून व्यवस्था।आम नागरिकों से यह पुलिस कैसे निपटती होगी इसकी कल्पना की जा सकती है।

चैंबर में लौट कर हम सबने इस घटना की खबर चीफ जस्टिस, इलाहाबाद हाई कोर्ट को देने के लिए पत्र लिखा। लेकिन आधे घंटे बाद ही जावेद के वह दोस्त आ गए।

उन्होंने बताया कि उन्हें इस बिना पर छोड़ा गया कि उनका संबंध एसपी सिटी और शहर के अन्य अधिकारियों से है। उन्होंने खुद एसपी सिटी को फोन लगाकर बात कराया, तब उन्हें छोड़ा गया।

उन्हें जिस अवैध तरीके के उठाया गया वह बेहद आपत्तिजनक तो था, लेकिन उन्हें जिस आधार पर छोड़ा गया इससे यह भी पता चलता है कि पुलिस ने कल से लेकर आज तक जिसे भी गिरफ्तार किया है, उसका संबंध कल की घटना से है या नहीं, पुलिस को इससे कोई मतलब नहीं है।

उसको सिर्फ इस बात से मतलब है कि किसका प्रशासन से अच्छा संबंध या बुरा संबंध है। यह पुलिसिया कार्यवाही का दूसरा नमूना था। जो हमें एक घंटे के अंदर ही फिर से मिला।

अब आप कल की पूरी घटना और उसके बाद चल रही पुलिसिया कार्यवाही से निष्कर्ष निकाल सकते हैं/सकती हैं।

एनआरसी प्रदर्शन का बदला ले रही पुलिस

टीवी पर खबर चल रही है कि उमर खालिद सारा अहमद, शाह आलम और जीशान भी “मास्टर माइंड” हैं। ये सभी नाम नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन रोशनबाग के नेतृत्वकारी नाम हैं।

कई और नाम भी इसमें जुड़ सकते हैं। वामपंथी दलों के शामिल होने की बात भी पुलिस अधिकारी ने मीडिया को दिए गए बयान में कही है।

उधर आशीष मित्तल के घर पर भी 9 जून को ही एक नोटिस पहुंची है, जिसमें उनके कानपुर दंगों में शामिल होने की बात कही गई है।

उनसे 10 लाख का निजी मुचलका भरने को कहा गया, जो उन्होंने 10 जून को ही भर दिया है। सूचना मिली कि मुचलका भरने के बाद भी पुलिस उनके घर पर दबिश दे रही है।

जब मैं यह सब लिख रही हूं तो सबसे खतरनाक खबर आ रही है कि जावेद मोहम्मद के घर बुलडोजर पहुंच गया है, बाहर बहुत सारे लोग जमा हो गए हैं।

पता नहीं यह कार्यवाही रुकेगी या नहीं। जावेद मोहम्मद की पत्नी और छोटी बेटी को अभी तक नहीं छोड़ा गया है, बड़ी बेटी आफरीन को गिरफ्तार करने की आशंका भी व्यक्त की जाने लगी है।

इलाहाबाद का माहौल कल संभल गया था, उसे दरअसल अब पुलिस प्रशासन द्वारा बिगड़ा जा रहा है।

(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता और उत्तर प्रदेश पीयूसीएल की कार्यकारिणी सदस्य हैं।)

(वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर सकते हैं। टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.