दुनिया के आधे श्रमिकों के पास अपनी शिक्षा के अनुरूप नौकरियां नहीं: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट

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अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया-भर में मात्र आधे श्रमिकों के पास ही उनकी शिक्षा के स्तर के अनुरूप नौकरियों की उपलब्धता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी संख्या में लोग ऐसी नौकरियों में कार्यरत हैं जो उनके शिक्षा के स्तर से मेल नहीं खाती हैं। वहीं इसके उलट कई नियोक्ताओं द्वारा इस बात का दावा किया जाता है कि उन्हें अपने व्यवसाय का विस्तार करने और सफलतापूर्वक नवाचार करने के लिए आवश्यक कौशल वाले श्रमिकों को खोजने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

रिपोर्ट के लेखक का कहना है कि यह परिघटना शिक्षा की दुनिया और काम की दुनिया के बीच एक महत्वपूर्ण पृथक्कण की और इशारा करती है।

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रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कई वर्षों से दुनियाभर में लोगों के शैक्षणिक स्तर में सुधार लाने के लिए काफी कुछ प्रयास किये गए हैं। विशेष कर मिलेनियम विकास लक्ष्यों और सतत विकास लक्ष्यों के हिस्से के तौर पर काफी कुछ किया गया है।

“हालाँकि” इसका कहना है कि, “विशेषकर महिलाओं और लड़कियों के सन्दर्भ में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में की गई भारी प्रगति के बावजूद श्रम बाजार में इसका परिणाम उसी अनुपात में तब्दील नहीं हो सका है।”

इस रिपोर्ट को 130 से अधिक देशों में कार्यरत सभी श्रमिकों की शिक्षा और व्यवसायों के स्तर पर श्रम बल सर्वेक्षण डेटा की मदद से संकलित किया गया है।

आईएलओ के अनुमान के मुताबिक इनमें से केवल आधे कर्मियों के पास ही अपनी शिक्षा के स्तर के अनुरूप नौकरियां हासिल हैं। बाकी के बचे श्रमिक या तो जरूरत से ज्यादा शिक्षित हैं या अल्प-शिक्षित हैं।

आईएलओ के अनुसार, उच्च-आय वाले देशों के कामगारों के पास अपनी शिक्षा के स्तर से मेल खाने वाली नौकरियां पाने की संभावना अधिक रहती है।

उच्च-आय वाले देशों में कार्यरत करीब 60% लोगों के मामले में यह स्थिति है। उच्च-मध्यम एवं निम्न-मध्यम आय वाले देशों के विश्लेषण में यह हिस्सेदारी क्रमश: 52% और 43% है।

वहीं निम्न आय वाले देशों में चार में से केवल एक कामगार के पास ही अपनी शिक्षा के स्तर के अनुरूप नौकरी उपलब्ध है। इन टिप्पणियों से पता चलता है कि जैसे-जैसे विभिन्न देशों में विकास का स्तर बढ़ता है, उसके साथ-साथ मिलान की दर भी बढ़ती जाती है।

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रिपोर्ट के मुताबिक योग्यता और कौशल के बीच का यह असुंतलन विकसित और विकासशील दोनों ही देशों के नीति-निर्माताओं के लिए विशेष चिंता का विषय बना हुआ है।

इसके साथ ही साथ श्रम बाजारों में तेजी से होते बदलाव, वैश्वीकरण, श्रमिकों का पलायन, तकनीकी बदलाव और जनसांख्यिकीय परिवर्तन भी महत्वपूर्ण कारक हैं।

इसका कहना है कि “श्रमिकों के लिए बेहतर रोजगार परिणामों और रोजगार क्षमता एवं अपने-अपने देशों के लिए बेहतर उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मक स्वरूप को उन्नत बनाये रखने के लिए योग्यता और व्यावसायिक कौशल को सुव्यवस्थित रखना अब वैश्विक प्राथमिकता बन चुकी है।”

आईएलओ ने पाया है कि यद्यपि सभी देशों में अति-शिक्षा और अल्प शिक्षा ये दोनों ही चीजें पाई जाती हैं, इस बात की परवाह किये बिना कि उनकी आय का स्तर अलग-अलग हो सकता है, इसके बावजूद विभिन्न देशों के आय समूहों के लिए अलग-अलग स्वरूप देखने को मिलते हैं।

अल्प-शिक्षा की समस्या कम आय के देशों में ज्यादा प्रचलित है, जबकि अति-शिक्षित होने की समस्या उच्च आय वाले देशों में अधिक देखने को मिलती है।

उच्च एवं उच्च-मध्यम आय वाले देशों में सभी रोजगारशुदा लोगों में से तकरीबन 20% लोग अति-शिक्षित हैं, यानी कि, उनके पास अपनी नौकरियों के लिए आवश्यकता से अधिक शिक्षा-दीक्षा हासिल है।

वहीं निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए यह हिस्सेदारी लगभग 12.5% है जबकि निम्न-आय वाले देशों यह 10% से भी कम है।

रिपोर्ट के अनुसार, उच्च-आय वाले देशों में अति-शिक्षित लोगों के आधिक्य की दर के पीछे की वजह वहां की श्रम शक्ति की संरचना में छिपी है, जो कि अपेक्षाकृत उच्च स्तरीय शिक्षा का विशिष्ट गुण है।

लेखक ने इस बारे में स्पष्ट किया है कि अति-शिक्षा एक निश्चित मात्रा में यहाँ पर हमेशा मौजूद रहने वाली है क्योंकि कुछ लोग अपनी शिक्षा के स्तर से नीचे की नौकरियों को स्वीकार कर लेते हैं।

इसकी एक वजह यह हो सकती है कि या तो इस प्रकार की नौकरियां उनके लिए कम चुनौतीपूर्ण और तनावपूर्ण होती हैं, काम और जीवन में बेहतर संतुलन रखने में मदद करती हैं, बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं, काम के लिए आने-जाने में कम समय और सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए ज्यादा वक्त मुहैय्या कराने में मददगार साबित होती हैं, या फिर इसलिए क्योंकि उनके पास आवश्यक अनुभव की कमी होती है।

इनमें से कुछ कामगारों के लिए अति-शिक्षा की स्थिति कम समय के लिए हो सकती है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “हालाँकि, जब श्रम बाजार की विकृतियों के कारण अति-शिक्षा होती है तो वहां पर उच्च स्तरीय शिक्षा से लैस कामगारों की आपूर्ति मांग से अधिक हो जाती है। ऐसी स्थिति में इसके लंबे समय तक बने रहने की संभावना रहती है और आमतौर पर इसके लिए नीतिगत हस्तक्षेप किये जाने की आवश्यकता होती है।”

अल्प-शिक्षा की समस्या भी निम्न एवं उच्च आय वाले दोनों ही प्रकार के देशों में देखने को मिलती है। निम्न-आय वाले देशों में कम पढ़े-लिखे श्रमिकों का अनुपात सर्वाधिक पाया गया है: रिपोर्ट के मुताबिक, तकरीबन 70% रोजगारशुदा लोगों के पास उनकी नौकरियों के लिए आवश्यक शिक्षा से कम शिक्षा-दीक्षा देखने को मिली है। निम्न-मध्यम-आय के देशों के हिस्से में सदृश हिस्सेदारी करीब 46% है, जबकि मध्यम-आय और उच्च-आय वाले देशों में यह करीब 20% है।

लेखक के अनुसार, अल्प शिक्षित होने की मुख्य वजह मौजूदा कार्यबल के पास शिक्षण प्राप्ति का अपेक्षाकृत निम्न स्तर और/या औपचारिक योग्यता का अभाव है, विशेषकर निम्न-आय वाले देशों में यह देखने को मिलता है।

रिपोर्ट में कहा गया है “इनमें से कुछ अल्प-शिक्षित श्रमिक इसके बावजूद अपने काम को सही ढंग से करने में सक्षम हो सकते हैं, क्योंकि काम के दौरान मिलने वाले प्रशिक्षण के जरिये उन्हें आवश्यक कौशल प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा अनुभव, स्वाध्याय सीखने की ललक, सामाजिक गतिविधियों एवं स्वयंसेवा के जरिये इसे हासिल किया जा सकता है।”

आईएलओ के मुताबिक, उच्च आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कहीं अधिक शिक्षित होने की संभावना रहती है, जबकि कम-आय वाले देशों में महिलाओं के अल्प-शिक्षित बने रहने की संभावना अधिक है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब आंकड़ों को लैंगिक आधार पर अलग-अलग किया गया तो यह देखने को मिला कि महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही अपनी शिक्षा के मुताबिक नौकरी ढूँढने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हालाँकि, उच्च-आय वाले देशों में मिलान के स्तर के सन्दर्भ में जहाँ दोनों लिंगों के बीच में कोई ख़ास अंतर नहीं है, वहीँ निम्न-आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अपनी शिक्षा के स्तर के मुताबिक काम मिलने की संभावना कम पाई जाती है।

उच्च-आय वाले देशों में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच में अति-शिक्षा की दर कहीं अधिक है। उच्च-मध्यम-आय वाले देशों में कोई महत्वपूर्ण अंतर देखने को नहीं मिलता है, जबकि निम्न-आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं जिन नौकरियों में कार्यरत हैं, उसमें उनके जरूरत से कम-शिक्षित होने की संभावना अधिक है।

रिपोर्ट के अनुसार “महिलाओं और पुरुषों के बीच और निम्न एवं उच्च-आय वाले देशों के बीच के शैक्षिक बेमेल के पैटर्न में यह अंतर बताता है कि जैसे-जैसे कोई देश ज्यादा विकसित होता जाता है, तो वहां पर उच्च-शिक्षित महिलाओं के लिए अपनी शिक्षा के स्तर से निम्न स्तर की नौकरियों को स्वीकार करने की बाध्यता बढ़ती जाती है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “दुनियाभर के लोगों के लिए शिक्षा तक पहुँच को बेहतर बनाने और शैक्षिक प्राप्ति में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद कई कामगार अभी भी जिन कार्यों में कार्यरत हैं, उसके लिए अभी भी वे अल्प-शिक्षित हैं, विशेषकर निम्न-आय वाले देशों में इसका आधिक्य है। वहीँ दूसरी तरफ उच्च-आय वाले देशों में कई लोग ऐसे कार्यों में संलग्न हैं जिनके लिए निम्न स्तर के शिक्षण की दरकार रहती है।”

(साभार- न्यूजक्लिक)

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