कांवड़ यात्रियों ने सेना के जवान कार्तिक की हत्या कर दी, चुप्पी क्यों है?

By रवीश कुमार

आज कल का माहौल ऐसा है कि इस ख़बर को देखते ही धक से कर गया। सेना का एक जवान कांवड़ लेकर आ रहा था, उसे कांवड़ियों ने ही पीट कर मार डाला है। लगा कि यह कितना संगीन मामला है, कहीं तनाव न फैल जाए। लेकिन ध्यान गया कि जागरण ने इस ख़बर को सामान्य ख़बर के रूप में छापा है। यह वही अख़बार है जिसमें एक दिन पहले कारगिल दिवस के मौके पर कई पन्नों में विस्तार से शहीदों और सैनिकों की कहानियाँ छापी गईं थीं। इस सवाल के साथ सैनिक की हत्या की ख़बर पढ़ने लगा कि जागरण ने एक सैनिक के मार दिए जाने की ख़बर को रूटीन के तौर पर क्यों छापा है?

जागरण की ख़बर के अनुसार दो दिन पहले मराठा लाइट इंफैंट्री के कार्तिक छुट्टी लेकर आए थे। भाई और दोस्तों के साथ बाइक से गंगाजल लेकर लौट रहे थे। हरियाणा के कांवड़ यात्रियों ने उनकी बाइक के आगे अपने वाहन खड़े कर दिए।कार्तिक ने विरोध किया तो हरियाणा के कांवड़ यात्रियों ने इतना मारा कि कार्तिक अधमरे हो गए और मारने वाले कार्तिक को छोड़ आगे बढ़ गए। कार्तिक के दोस्त अस्पताल ले गए जहां उनकी मौत हो गई।

यही नहीं इसके बाद भी मार-पीट नहीं रूकी। कार्तिक की मौत की खबर के बाद सिसौली के कांवड़ यात्रियों ने हरियाणा के कांवड़ यात्रियों का पीछा किया। कुछ दूर आगे जाकर वहां भी दोनों पक्षों के बीच खूब मारपीट हुई। धारदार हथियार तक चले हैं। पुलिस ने छह कांवड़ियों को हिरासत में लिया है।

कांवड़ यात्रा को लेकर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम की खबरें पढ़ता रहा। खूब ख़बरें छपी हैं कि सीसीटीवी कैमरे से निगरानी होगी। हर जगह पुलिस बल तैनात होंगे। इन पर पुष्प वर्षा होगी। फिर भी दो गुटों के बीच इतनी देर तक मार-पीट कैसे चलती रही और इतनी कैसे हो गई कि सैनिक को ही मार दिया गया।

इस खबरों को रूटीन की तरह छाप दिया गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। जागरण की ख़बर का डिटेल बताता है कि दो-दो बार मार-पीट हुई है। लाठी-डंडे और धारदार हथियार चले हैं। मगर इसे साधारण खबर के रूप में छापा गया। इस खबर की क्लिपंग के साथ 26 जुलाई की एक ख़बर की क्लिप लगा रहा हूं। यह खबर भी जागरण में छपी है। चूंकि इसमें किसी मुस्लिम युवक के कथित रूप से थूकने की अफवाह की खबर है इसलिए जागरण ने पूरे पन्ने पर बड़ा करके छापा है लेकिन एक सैनिक को कांवड़ यात्री ही जान से मार देते हैं और मारने के बाद भी मार-पीट करते हैं, इस खबर को किस तरह से छापा है, आप देख सकते हैं।

आज के अमर उजाला में भी इस ख़बर को रूटीन जैसा छाप दिया गया है। क्या ख़बर देर से पहुँची, क्या यह ख़बर पहले पन्ने के लायक़ नहीं थी?

अब ख़ुद से एक सवाल कीजिए। यह अख़बार धर्म के एंगल से ख़बरों को कैसे छापता है, आप जानते हैं। ख़ुद पढ़ सकते हैं। क्या धर्म की राजनीति और पत्रकारिता के संंसार में आम आदमी और सैनिक दोयम दर्जे का नागरिक है? इस अखबार के लिए कोई ख़बर बहुत बड़ी तब होगी जब कोई दूसरे धर्म का शामिल होगा, और कोई सैनिक मारा जाएगा, पुलिस छह लोगों को गिरफ्तार करेगी तो वह ख़बर मामूली तरीके से छपेगी?

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