लेबर कोड आखिर क्यों कृषि बिलों से भी ज़्यादा खतरनाक हैं?

workers protest general strike

By अमित कुमार

जिस दिन तीन कृषि क़ानून संसद में पास कराए गए उसके दूसरे दिन ही तीन लेबर कोड भी पास कराए गए थे, जिसके तहत 44 श्रम क़ानूनों का वजूद अब नहीं रहेगा। लेबर कोड मज़दूरों  की गुलामी का दस्तावेज है और कृषि क़ानूनों से भी ख़तरनाक है।

लेकिन क्या कारण है कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जिस तरह किसानों ने एक महासंघर्ष छेड़ा है, मज़दूर समुदाय में ‘लेबर कोड’  को लेकर किसी तरह का कोई हलचल नहीं दिख रही है।

किसानों से पूछ लीजिए कि कृषि बिलों के प्रावधान क्या हैं और इसके क्या खतरे हैं, वो आपको बता देगा। लेबर कोड को लेकर मज़दूर वर्ग में कोई चेतना नहीं दिखती वो नहीं जानता कि इसके प्रावधान कृषि बिलों से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं।

एक लेबर कोड 2019 के अंत  में ही पास करा लिया गया था। बाकी तीन लेबर कोड एक अप्रैल से लागू हो जाएंगे और राज्यों ने भी इसकी तैयारी पूरी कर ली है। लेकिन ये कानून कैसे मज़दूरों को गुलाम बना देंगे, इसपर चर्चा कम ही हुई है।

कानूनों के आने से परमानेंट नौकरियां लगभग पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगी। साथ ही जिन मज़दूरों के पास फिलहाल स्थाई जॉब है उनको भी टेंपरेरी  करने का मौका कंपनी को मिल जाएगा।

मज़दूरों के यूनियन बनाने का अधिकार पूरी तरह से छीन लिया जाएगा, क्योंकि इस कानून के तहत  कंपनी के लिए ये बाध्यता खत्म हो जाएगी कि वो यूनियन से कोई समझौता करे।

उसे किसी भी तरह के समझौते के लिए यूनियन के पास जाने की ज़रूरत नहीं होगी और उसे ये अधिकार मिल जाएगा कि वो मज़दूरों से निजी तौर पर कोई समझौता कर सके। ऐसे में यूनियन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

इस क़ानून की तीसरी सबसे बड़ी बात ये है कि मज़दूर और कंपनी के बीच किसी भी तरह के विवाद के निपटारे के लिए के बने श्रम विभाग और मज़दूरों के हित के कानूनों को यह तर्क देकर समाप्त कर दिया गया है कि ये विवाद दो पक्षों का हैं, इसमें तीसरे पक्ष की कोई ज़रुरत नहीं।

मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन (मानेसर) ने एक वक्त गुड़गांव से लेकर बावल तक के पूरे ऑटो बेल्ट के मज़दूरों के लिए मिसाल कायम किया था। आज उससे भी बड़ी लड़ाई हमारे सामने खड़ी है। मज़दूरों को अपने अधिकारों के लिए सजग होना होगा नहीं तो बहुत देर हो जायेगी।

मारुति का संघर्ष गुड़गांव के औद्योगिक बेल्ट की पहली घटना थी जब शोषण के खिलाफ किसी फैक्ट्री के अंदर मज़दूरों ने मशीनों को रोक दिया और कंपनी को झुकने पर मजबूर कर दिया।

(अमित मज़दूर अधिकार कार्यकर्ता हैं और मज़दूर सहयोग केंद्र से जुड़े हुए हैं। मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन के स्थापना दिवस एक मार्च को दिए भाषण से रूपांतरित। रूपांतरणः अभिनव कुमार। )

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.