13 सितंबर राजनीतिक बंदी दिवस: क्रांतिकारी जितेन्द्र दास के संघर्षों की कहानी

क्रांतिकारी जितेन्द्र दास ऐसे वीर थे, जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत भी झुका नहीं सकी। हम उनको याद करते हुए क्रांतिकारी “लाल-सलाम” पेश करते हैं! उनकी अधूरी लड़ाई को जारी रखने का तमाम जनता से आह्वान करते हैं। वो सभी दलों और संगठनों को मिलाकर बनी “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” में शामिल हुए और दल ने जो भी काम दिए, वह जितेन्द्र दास ने इमानदारी से पूरे किए। जब असेंबली में बम फेंका गया, तो बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने गिरफ्तारी दे दी और उसके बाद जितेंद्र दास की भी गिरफ्तारी हो गई।

13 जुलाई 1929 को भगत सिंह के आह्वान पर भूख हड़ताल की गई, जो क्रांतिकारियों के साथ जेल में हो रहे दुर्व्यवहार को लेकर थी। एक बार अनशन शुरू होने के बाद वह पीछे नहीं हटे और अंग्रेजों ने उनकी भूख हड़ताल तुड़वाने के लिए बेहद कोशिश की।

लेकिन वह असफल रहे, जबरदस्ती दूध पिलाते हुए दूध उनके फेफड़ों में चला गया और सेहत बिगड़ती गई, उन्होंने दवा लेने और अनशन तोड़ने से साफ मना कर दिया और जमानत तक लेने से भी इंकार कर दिया।

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13 सितंबर 1929 को वह संघर्ष करते हुए और अनशन जारी रखते हुए हमेशा के लिए विदा हो गए। उनकी शव यात्रा में पांच लाख से भी अधिक लोगों का ‘जन-सैलाब’ उमड़ पड़ा था।

1929 से आज तक

इतने सालों के बाद आज के हालात उससे भी गंभीर होते जा रहे हैं। आज भी उसी तरह देश की जेलें इंसाफ पसंद लोगों से भरी हुई हैं और जेलों में उनके साथ दुर्व्यवहार भी हो रहा है।

जिनमें बुद्धिजीवी, छात्र, वकील, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रोफेसर और अन्य आदिवासी लोग शामिल हैं। राजनीतिक कैदियों की लिस्ट बहुत लंबी है, इसमें महेश रावत, रोना विल्सन, शोमा सेन, सुधीर धवले, सुरेंद्र गार्डलिंग, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, वरनन गोजालिवस, आनंद तेलतुंबडे, गौतम नवलखा, हेनी बाबू, रमेश गायचोर, सागर गोरखे, ज्योति जगताप और भी अन्य शामिल हैं ।

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फादर स्टैन स्वामी को भारत सरकार ने जेल में ही कत्ल कर दिया। पांडू नरोटे की भी संदिग्ध स्थिति में मौत हो जाती है, जिसकी गुत्थी आज तक नहीं सुलझती। जी. एन. साईबाबा 99 प्रतिशत शारीरिक तौर पर अपाहिज हैं, वह अंडा सेल में है। स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार जो आज जेल में है, जिनका जुर्म है वह बेबाक पत्रकार हैं और आदिवासी मेहनतकश जनता की बात करते हैं।

तानाशाह केंद्र सरकार लगातार बिना रुके राजनीतिक कैदियों को जेलों में कैद कर उनको मारने पर तुली हुई है। आज के हालात भी वैसे ही हैं, जैसे अंग्रेजो के समय पर थे। ये भी कह सकते हैं स्थिति ज्यादा चिंताजनक और खौफनाक होती जा रही है। जनविरोधी नीतियां लगातार बन रही हैं।

ऑपरेशन- समाधान- प्रहार लेकर आया गया, जो जल-जंगल-जमीन की लड़ाई को कुचलने के लिए ही है। इससे पहले इसका रूप सलवा जुडूम और ऑपरेशन ग्रीन हंट था। वैश्वीकरण- उदारीकरण – भूमंडलीकरण की नीति को बढ़ावा मिल रहा है, जो रुकने का नाम नहीं ले रहा।

अगर इसके खिलाफ कोई बोलता है, तो उसको यूएपीए, NSA, AFSPA जैसी अन्य खौफनाक और संगीन धाराएं लगाकर जेल में डाल दिया जाता है।

आज “राजनीतिक बंदी दिवस” पर जितने भी क्रांतिकारी भूख हड़ताल कर रहे हैं, हम उनका पूरी तरह से समर्थन करते हुए, उनके संघर्ष को “क्रांतिकारी सलाम” भेजते हैं। सभी क्रांतिकारी बंदियों को राजनीतिक बंदियों का दर्जा मिले, यह भी मांग करते हैं।

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