बिजली का झटका फिलहाल थमा है, टला नहीं है : बिजली संशोधन बिल-2020

    By एस. वी. सिंह

पूंजीवाद का साँस लेना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है और उसकी सेहत को लेकर बेचैन विशेषज्ञों के पास उसके सारे रोगों का एक ही ईलाज है; सरकारी प्रतिष्ठानों को सरमाएदारों को बेच डालो।

बेचे जाने की लाईन में सरकार ने अगला नम्बर बिजली विभाग का लगा दिया है;‘विद्युत संशोधन बिल, 2020 पर ‘लोगों की राय’ लेने के लिए 7 अप्रैल को ही प्रस्तुत किया जा चुका था।

ये रहस्य अब सारा देश जान ही चुका है कि मोदी सरकार जब भी सरकारी संपत्ति को बेचने से पहले ‘लोगों की राय के लिए प्रस्तुत करती है, उसका मतलब होता है कि माल बिकने का फैसला हो चुका है, खरीददारों को पता चल चुका है, बस एक दो महीने ‘प्रभावितों की प्रतिक्रिया की खाना पूर्ति करने में लगने वाले हैं।

अब तक तो ये बिल कानून का रूप ले, लागू भी हो चुका होता और काफ़ी बिक्री संपन्न भी हो चुकी होती, अगर देश के बहादुर किसानों ने अपनी जान कि बाज़ी लगाकर जो ज़बरदस्त आन्दोलन चलाया हुआ है, जिसमें रक्त ज़माने वाली सर्दी में 150 से अधिक किसान अब तक शहीद हो चुके हैं; ने इस अहंकारी,सत्ता के नशे में चूर सरकार को, आंशिक रूप से ही सही, घुटने टेकने पर मजबूर ना किया होता।

जब किसान आन्दोलन को बदनाम करने, उसमें फूट डालने और किसानों को डराने- धमकाने के सारे मंसूबे किसानों ने फेल कर दिए तब 30 दिसम्बर को हुई छठे दौर की वार्ता में सरकारी मंत्रियों-संत्रियों के दिलों में किसानों के प्रति सह्रदयताचमत्कारित रूप से प्रकट होने का दिखावा किया गया।

सरकारी भोज को त्याग, लंगर से लाया खाना,सिंपल दाल-रोटी-सब्जी किसानों के साथ ही खाई और भले कम महत्व वाली हों लेकिन 4 में से 2 मांगें मान लीं जिसमें एक है पराली जलाने से होने वाले प्रदुषण के लिए किसानों को ज़िम्मेदार मानते हुए उनपर एक करोड़ तक जुर्माना लगाने वाले और एक साल कि सज़ा कर देने वाले कानून को  फिलहाल लागू ना करना और दूसरा; प्रस्तावित ‘बिजली संशोधन बिल, 2020’ पर कार्यानवयन रोकते हुए किसानों को मिलने वाली सब्सिडी बरक़रार रखना।

हालाँकि, 4 जनवरी को सातवें दौर की वार्ता में स्पष्ट हो गया कि किसानों के प्रति वो प्रेम नहीं उमड़ा था बल्कि वो उन्हें पटाने का एक और हथकंडा था।

किसानों को दिली मुबारकबाद इस बात की भी बनती है कि सरकार के किसी झांसे में नहीं आ रहे, सारा खेल अच्छी तरह समझ रहे हैं और अपने आन्दोलन को निर्णायक स्तर तक ले जाने के लिए 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टरों की विशाल किसान परेड तक के अपने अजेंडे पर अटल रहे।

ये तथ्य अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि जिन दो मांगों को मान लिया गया है उनपर भी लिखकर कुछ नहीं दिया गया है।

गतिरोध इसी तरह बना रहा तो सरकार इन दो मांगों पर भी क़ायम रहेगी इसमें भी संदेह पैदा होने के कारण मौजूद हैं।

पराली वाले मुद्दे पर तो सुप्रीम कोर्ट सख्त हुक्म सुना ही चुकी है।

बिजली संशोधन वाले बिल को भी सम्पूर्ण रूप से रोका जाएगा या सिर्फ़  किसानों की ही सब्सिडी बहाल रखी जाएगी या कुछ भी नहीं बदला जाएगा, कुछ भी पता नहीं है।

प्रस्तावित बिजली बिल से सभी उपभोक्ताओं के बिजली के बिल बहुत तेज़ी से बढ़ने वाले हैं और पहले से ही अधमरी हालत में जी रहे करोड़ों लोगों को उजाले से अँधेरे में धकेला जाने वाला है।

इसी वजह से इस बिल के प्रावधानों को अच्छी तरह समझना, और उसके पूर्ण रूप से वापस लिए जाने तक पूर्ण चौकसी रखते हुए संघर्ष जारी रहना ज़रूरी है।

प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल लाने का तरीका भी वही था, जिसे अब सारा देश जान चुका है।

कोरोना महामारी का जितना दोहन किया जा सकता है उसमें कोई क़सर ना छोड़ी जाए।

24 मार्च को देशबंदी हुई और सारे जन मानस को प्रभावित करने वाले इस बिल को 7 अप्रैल को जारी किया गया।

बिजली विभाग सम्वर्ती सूचि में आता है, मतलब राज्य और केंद्र दोनों उसके लिए कानून बनाने के हक़दार हैं लेकिन उस ओर ध्यान देने की क्या ज़रूरत है जब राज्य सूचि वाले मुद्दों पर ध्यान ही नहीं दिया गया।

देश के सभी गैर भाजपा शासित राज्य इसके लिए अपना विरोध लिखकर जता चुके हैं।

संघीय परम्पराओं और जन भावनाओं का सम्मान करना ये सब बातें तो बहुत पीछे छूट चुकी वर्ना तो राज्यों कि भावनाओं का सम्मान करते हुए इस प्रस्तावित बिजली बिल को पहले ही रद्द कर दिया गया होता।

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