कश्मीर के सेबों को बाजार में आने से क्यों रोक रही मोदी सरकार?

By मुकेश असीम

कश्मीर में सेब की फसल अच्छी हुई है, पर सरकार वहां के सेब को बाजार में आने से रोक रही है।

कश्मीर घाटी से निकलकर जम्मू पहुंचने से पहले ट्रकों को काजीगुंड में ही हफ्ता भर तक रोका जा रहा है। जम्मू मंडी तक पहुंचने में ही इतना वक्त गुजर जा रहा है कि इस सेब को पूरे देश में आपूर्ति करने का वक्त बाकी नहीं रहता।

बताया जा रहा है कि इस तरह सरकार दबाव बना रही है कि कश्मीरी सेब को तुरंत बाजार में न लाकर कोल्ड स्टोर में रखा जाए। मगर छोटे मंझले उत्पादकों को तो वक्त पर रकम चाहिए होती है।

मुनाफा कमाने की तैयारी

कोल्ड स्टोरेज में रखने का मतलब किसी कॉर्पोरेट को उसके तय दामों में बेचना होगा, जो उसे ‘सही वक्त’ पर बाजार में निकाल ऊंचा मुनाफा कमा सके।

सारा सेब एक साथ बाजार में आने से दाम गिर सकते हैं। उससे हिमाचल का सेब खरीद रहे अडानी और इस वक्त महानगरों में सबसे बडे सेब विक्रेता अंबानी दोनों को नुकसान हो सकता है।

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अतः इस वक्त हिमाचल का सेब बाजार में आ रहा है, कश्मीर का रोका जा रहा है। मुंबई में रिलायंस इस सेब को 100-120 रु प्रति किलो बेच रहा है, मध्य वर्ग वाले खरीद रहे हैं, अमीर तो आयातित महंगा वाला खरीदते हैं। निम्न मध्य वर्ग या मजदूरों को सेब खाने की जरूरत ही क्या है?

इससे क्या समझा जा सकता है?

कृषि में बढ़ा कॉर्पोरेट का दखल

एक, मोनोपोली या इजारेदार पूंजीपति इस तरह बाजार में आपूर्ति को नियंत्रित कर उत्पादकों (कम दाम पर खरीदी) व उपभोक्ताओं (अधिक दाम पर बिक्री) दोनों को निचोडकर मुनाफा कमाते हैं।

दो, कृषि कानून रहें या नहीं, कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट पूंजी का दखल व नियंत्रण बढता ही रहेगा, जब तक कि मजदूर वर्ग व मेहनतकश किसान मिलकर पूंजीवादी व्यवस्था को ही नहीं उखाड़ फेंकते।

पूंजीवाद की आर्थिक गति के साथ ही साथ सत्ता के पास ऐसा करने के कई गैर-आर्थिक तरीके भी हैं जिनमें से एक कश्मीरी सेव का ताजा उदाहरण है।

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