यूपी में बिजली निजीकरण और बिजली कर्मचारियों की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ आक्रोश

बिजली संशोधन बिल-2020 और बिजली के निजीकरण की जारी प्रक्रिया के विरुद्ध आंदोलन कर रहे बिजली कर्मचारियों और संयुक्त संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों की लखनऊ में हुई गिरफ्तारी के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों और यूनियनों में भारी गुस्सा है।

प्रदर्शनकारियों की गिरफ़्तारी की एटक और वर्कर्स फ्रंट ने बयान जारी कर निंदा  की है और योगी सरकार से बिजली निजीकरण को तत्काल रद्द करने का अनुरोध किया है।

भगत सिंह के जन्मदिन 28 सितम्बर को बिजली वितरण को निजी हाथों दिए जाने के ख़िलाफ़ प्रदेश भर में मशाल जुलूस निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया गया।

विरोध दबाने के लिए योगी सरकार की पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन विरोध को दबा नहीं पाए।

बरेली में मशाल जुलूस निकालते हुए बिजली विभाग के कर्मचारी गिरफ्तारी देने पहुंचे लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया।

एटक ने यूपी सरकार से बिजली वितरण के निजीकरण को तत्काल रोकने की मांग ही और बिजली विभाग के कर्मचारियों को निशाना बनाने की निंदा की है।

वर्कर्स फ्रंट ने भी बयान जारी कर कहा है कि सरकार कर्मचारी नेताओं को गिरफ़्तार कर दमन नहीं कर पाएगी और निजीकरण के विरोध का आंदोलन और तेज़ होगा।

फ़्रंट के प्रदेश उपाध्यक्ष दुर्गा प्रसाद ने कहा कि बिजली के निजीकरण की प्रक्रिया से न सिर्फ कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी बल्कि कारपोरेट कंपनियों का एकाधिकार होने से बिजली की दरें 10 रुपये प्रति यूनिट से ऊपर चली जाएंगी जोकि किसान हित व आम जनता के हितों के विरुद्ध है। बावजूद इसके सरकार निजीकरण के अपने निर्णय को वापस लेने बजाय राष्ट्रहित में आंदोलन कर रहे बिजली कर्मियों का दमन कर रही है।

विगत दशकों में हुए बिजली के निजीकरण के प्रयोग विफल साबित हुए हैं। सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियों व उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ही सभी राज्यों में बिजली बोर्ड भारी घाटे में चले गए हैं।

उन्होंने कहा कि बिजली के निजीकरण और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल-2020 के दुष्प्रभावों को किसानों और आम जनता के बीच ले जाने की जरूरत है।

उल्लेखनीय है कि 20 सितम्बर को बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण का आदेश केंद्र की मोदी सरकार ने सभी राज्यों को भेज दिए हैं जिसके बाद कर्मचारियों का प्रदर्शन और उग्र हो गया है।

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