‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब की विमोचन रिपोर्टः किसान आंदोलन का एक जीवंत दस्तावेज

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बीते 18 सितम्बर को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में ऐतिहासिक किसान आंदोलन पर आधारित ‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब का विमोचन किया गया।

करीब 500 पृष्ठों में शामिल 21 साक्षात्कारों के संकलन की यह किताब वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड ज़ीरो और नोट्स ऑन द एकेडमी के संयुक्त प्रयास का परिणाम है।

विमोचन में संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक डॉ. दर्शनपाल, कीरती किसान यूनियन के नेता रजिंदर सिंह दीपसिंह वाला, ज़मीन प्राप्ति संघर्ष कमेटी (जेडपीएससी) की नेता परमजीत, मजदूर अधिकार संगठन (एमएएस) की नेता नौदीप कौर, ग्राउंड ज़ीरो से जुड़ीं नंदिनी धर, वरिष्ठ पत्रकार और वरिष्ठ लेखक अरुण त्रिपाठी और द वायर की वरिष्ठ पत्रकार आरफा खानम शेरवानी वक्ता के तौर पर मौजूद थे।

इस कार्यक्रम का रिकार्डेड लाईव सुनने के लिए यहां दिए गए दो लिंक को क्लिक करें-पार्ट -1      पार्ट -2

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कार्यक्रम का संचालन करते हुए वर्कर्स यूनिटी के संतोष कुमार ने किताब और इसकी रचना प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी।

किताब को चार भागों में विभाजित किया गया है। पहले भाग में किसान यूनियन के नेताओं की बातचीत शामिल किया गया है। दूसरे हिस्से में खेतिहर मजदूर यूनियनों के नेताओं से बातचीत है। तीसरे हिस्से में ज़मीन प्राप्ति संघर्ष समिति के नेताओं से दलित और खेतिहर मजदूरों के मुद्दे पर बातचीत है।

आखिरी और चौथे हिस्से में पत्रकार, अर्थशास्त्री और राजनीतिक एवं सांस्कृति कर्मियों से बातचीत शामिल है।

यह किताब, दिल्ली बॉर्डर्स पर करीब 13 महीने तक चले किसान आंदोलन के दौरान उसमें प्रत्यक्ष भागादारी करने वाले लोगों से बातचीत और उस दौरान के हालात पर आधारित है।

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किताब के बारे में लगभग हर वक्ता ने इसे ऐतिहासिक किसान आंदोलन का एक अहम दस्तावेज बताया, जिसमें न केवल किसान आंदोलन के नेताओं के साक्षात्कार हैं बल्कि मजदूर यूनियनों के नेताओं, किसान आंदोलन पर बारीक नज़र रखने वाले पत्रकारों, कृषि अर्थशास्त्रियों, महिला नेताओं, खेतिहर मजदूर यूनियन के नेताओं के बहुत ही सारगर्भित और विस्तृत साक्षात्कार शामिल किए गए हैं।

इसमें पंजाब और पूरे देश में कृषि संकट के पीछे की वजहें, किसान आंदोलन के अंदरूनी द्वंद्व, दलित और भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के मुद्दे, आधी आबादी की भागीदारी, जनता की पहलकदमी, पंजाब में किसान आंदोलन और सिखी परम्परा की ऐतिहासिकता को शामिल किया गया है।

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आने वाली पीढ़ियों के लिए दस्तावेजः आरफ़ा ख़ानम शेरवानी

आरफा ख़ानम शेरवानी ने कहा कि ‘द जर्नी ऑफ द फार्मर्स रेबेलियन’ किताब आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अहम् दस्तावेज है।

जो विद्यार्थी अभी कॉलेजों में हैं या जो छात्र अभी स्कूलों में पढ़ रहे हैं उनको किसान आन्दोलनों के संघर्षों से रूबरू करवाएगी।

ये कहना था द वायर की सीनियर जर्नलिस्ट आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का।

वो उन पत्रकारों में से हैं जिन्होेंने किसान आंदोलन को बहुत करीब से कवर किया और ज़मीनी सच्चाई सबके सामने लाने में अहम भूमिका निभाई।

आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का भाषण यहां पढ़ और सुन सकते हैं।

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किसान एक बार फिर दिल्ली कूच करेंगेः डॉ. दर्शनपाल

संयुक्त किसान मोर्चा के कोआर्डिनेटर और क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता डॉ. दर्शनपाल ने कहा कि किसान आंदोलन स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं हुआ है। किसान एक बार फिर दिल्ली आएंगे, अभी उनकी सभी मांगें पूरी नहीं हुई हैं।

उन्होंने कहा कि पंजाब से चला ऐतिहासिक किसान आंदोलन आज हरियाणा और देश के अन्य भागों में फैल चुका है। संयुक्त किसान मोर्चा अपने डिमांड चार्टर को लेकर तीन अक्टूबर से पूरे देश में अभियान चलाने का फैसला ले चुका है।

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उन्होंने कहा कि ‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब ऐतिहासिक किसान आंदोलन का जीता जागता दस्तावेज है क्योंकि ये उन लोगों के इंटरव्यू का संकलन है जो उस आंदोलन में सीधे तौर पर हिस्सा ले रहे थे, उसे जी रहे थे और उसको महसूस कर रहे थे।

“यह एक बड़ा डाक्यूमेंट ऐतिहासिक किसान आंदोलन के अंदर की सच्चाई को लोगों के सामने लेकर आया है इसके लिए मैं इस किताब को तैयार करने वाली टीम को बधाई देता हूं।”

डॉ. दर्शनपाल का पूरा भाषण यहां पढ़ और सुन सकते हैं।

वैकल्पिक कृषि मॉडल की जरूरतः रजिंदर सिंह दीप सिंह वाला

किरती किसान यूनियन के नेता रजिंदर सिंह दीपसिंह वाला ने कहा कि किसान आंदोलन पर 500 ज्यादा पृष्ठों की ये किताब लाना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कोशिश है।

उन्होंने इसके लिए पूरी टीम को बधाई दी और सुझाव भी दिया कि किताब में आंदोलन की तस्वीरें भी होनी चाहिए थीं, क्योंकि इस आंदोलन को बहुत सारे लोग इसकी प्रतिनिधिक तस्वीरों से पहचानते हैं।

उन्होंने सुझाव दिया कि अगले एडिशन में आंदोलन की कुछ तस्वीरें इस किताब में जरूर शामिल की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि टीकरी बॉर्डर का आंदोलन करीब 22-23 किलोमीटर में जबकि सिंघु बार्डर पर यह 11-12 किलोमीटर तक फैला था। धरना स्थल के एक एक कैंप पर एक एक किताब लिखी जा सकती है, ये आंदोलन इतना कुछ अपने आप में समेटे हुए था।

रजिंदर सिंह ने  पंजाब के कृषि संकट को ग्रीन रिवोल्यूशन की देन बताया जिसने वहां के न केवल हवा पानी, मिट्टी में ज़हर घोल दिया बल्कि लोगों की ज़िंदगियां तबाह कर दीं। उन्होंने एक नए कृषि मॉडल पर विचार करने पर जोर दिया जो ग्रीन रिवोल्यूशन की गलतियों को सुधार सके। फसलों को बदलने, बागवानी, फल और सब्जी उगाने, दालें और तिलहन की खेती पर जोर देने की बात कही।

रजिंदर सिंह का पूरा भाषण यहां पढ़ा और देखा जा सकता है।

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यह किताब एक नई बहस पैदा करेगीः पावेल कुस्सा

सुर्ख लीह के संपादक पावेल कुस्सा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ‘द जर्नी ऑफ़ फ़ार्मर्स रिबेलियन’ किताब की सबसे बड़ी खासियत है कि किसान आंदोलन में अलग से कोई नज़रिया पेश नहीं किया गया है।

बल्कि उस संघर्ष जो लोग अलग अलग तरह से शामिल थे, चाहे वो अगुवा नेता रहे हों या आंदोलन पर बारीक नज़र रखने वाले थे, वो चीजों को कैसे देख रहे हैं, उसका यह एक दस्तावेजीकरण है।

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उन्होंने कहा कि किताब के इंट्रोडक्शन में आंदोलन की सकारात्मक उपलब्धियों की चर्चा करते हुए आगे की चुनौतियों की ओर भी इशारा किया गया है। और एक मुकम्मल तस्वीर पेश करने की कोशिश की गई है। उन्होंने किताब को निकालने वाली टीम को बधाई दी।

द जर्नी ऑफ़ फ़ार्मर्स रिबेलियन ने इन नज़रिए को रेखांकित किया है और अगर ये बहस लोगों में जाती है तो बहुत अच्छी बात होगी।

पावेल कुस्सा का पूरा भाषण यहां पढ़ा और सुना जा सकता है।

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दलितों, महिलाओं, मजदूरों के बिना आंदोलन अधूराः परमजीत

ज़मीन प्राप्ति संघर्ष समिति की नेता परमजीत ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान उसकी उपलब्धियों और उसके द्वंद्वात्मक पक्ष को लाने वाली इस किताब से बहुत सारे लोगों, छात्रों, नौजवानों, अध्ययनकर्ता, शोधकर्तांओं को आगे के काम के लिए एक रिफरेंस मैटीरियल साबित होगी, जो जमीन पर काम करना चाहते हैं।

किसान आंदोलन चला और इससे प्रभावित होकर समाज का हर तबका इसमें शामिल हुआ। बहुत सारे लोग इस आंदोलन में भागीदार रहे, धरना स्थल पर रहे, उसे समझा और महसूस किया। वर्कर्स यूनिटी की टीम भी पूरे साल साथ रही। इस किताब को देख कर पता लगता है कि इन्होंने कितनी मेहनत की है।

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उन्होंने कहा कि मजदूरों की जहां तक बात है, उनके मुद्दे अभी तक हाशिये पर हैं और उन पर बात करना भी कोई जरूरी नहीं समझता। किसान आंदोलन में भी ये देखने को मिला।

उन्होंने कहा कि दलितों, भूमिहीन किसानों, खेतिहर मजदूरों, दलित महिलाओं के मुद्दे के बिना किसान मजदूर एकता का नारा असल ज़मीन पर नहीं उतर पाएगा।

परमजीत का पूरा भाषण यहां पढ़ और सुन सकते हैं।

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प्रमाणिक जानकारियों से लैस किताबः अरुण त्रिपाठी

वरिष्ठ लेखक और पत्रकार अरुण त्रिपाठी ने कहा कि जितने दिन भी किसान आंदोलन चला, ये द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब उसका महत्वपूर्ण और जीवंत दस्तावेज है। जो भी शोधार्थी हैं, पत्रकार हैं, जो गंभीर लोग हैं, उनके लिए ये प्राइमरी डाटा उपलब्ध कराने वाली किताब है। इसे हिंदी में भी लाया जाना बहुत जरूरी है।

यह किताब द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’, जोकि खत्म नहीं होनी है जारी रहनी है। और जबतक ये भारत नया भारत न बन जाए, जबतक इस पर तानाशाही के खतरे नहीं खत्म हो जाते, जबतक सच्चा लोकतंत्र न आ जाए ये जर्नी जारी रहनी है।

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इस किताब में 21 इंटरव्यूज शामिल किए गए हैं, हालांकि हज़ारों इंटरव्यूज होने चाहिए, इससे बहुत सारी प्रमाणिक जानकारियां मिलेंगी। लेकिन इस किताब में जो सूत्र पकड़ाया गया है उससे स्पष्ट होता है कि हरित क्रांति से पंजाब के लोग ऊप चुके हैं और उसने न केवल पंजाब को बीमार किया है बल्कि पूरे देश की खेती को बीमार किया है।

इस किताब के सभी इंटरव्यू में वैश्विकरण से लड़ने के सूत्र हैं। अगर हम वैश्विकरण से लड़ेंगे तभी हिंदुत्व के खतरे से भी लड़ पाएंगे और बहुसंख्यकवाद से भी लड़ सकेंगे।

अरुण त्रिपाठी का पूरा भाषण यहां पढ़ और सुन सकते हैं।

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मजदूर मुद्दे पर हिचकिचाहट थीः नौदीप कौर

मजदूर अधिकार संगठन की नौदीप कौर ने किसान आंदोलन में मजदूरों की भागीदारी, किसान यूनियनों के साथ अंतरविरोध और मजदूरों के हालात पर अपनी बात रखी।

नौदीप कौर सिंघु बॉर्डर पर मजदूरों के अधिकार के लिए संघर्ष करते हुए किसान आंदोलन के दौरान ही गिरफ्तार हुई थीं और पुलिस पर आरोप है कि पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें बहुत गंभीर रूप से टार्चर किया गया था।

उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी के बाद किसान यूनियनें सामने नहीं आईं बल्कि किसानों के समर्थन में लगे मजदूर अधिकार संगठन (एमएएस) के कैंप को हटाने का दबाव बनाने लगे। ये हालात 26 जनवरी के बाद बदले और सार्वजनिक कार्यक्रमों में मजदूरों को अधिक जगह दी जाने लगी।

नौदीप कौर के भाषण को यहां सुन सकते हैं।

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प्रेस क्लब में हुए इस विमोचन कार्यक्रम में दिल्ली एनसीआर और अन्य जगहों से लोग भी आए हुए थे।

कार्यक्रम में गुड़गांव के मजदूर संगठनों, इंकलाबी मजदूर केंद्र, बेलसोनिका यूनियन,सोनीपत से मजदूर अधिकार संगठन, दिल्ली से एक्टू से जुड़े नेता और सदस्य शामिल हुए।

इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली से किसान संगठन के नेता सुबोध, पंजाब से क्रांतिकारी किसान यूनियन के सदस्य भी पहुंचे थे।

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दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू ,, जामिया , सोनीपत की जिंदल यूनिवर्सिटी, मोदी नगर के एसआरएम इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र, शिक्षक की भी इसमें खासी भागीदारी रही। कार्यक्रम में पत्रकार, एडवोकेट, सामाजिक कर्मी, मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल रहे।

इसके अलावा जानी मानी महिला अधिकारों के लिए मुखर नवशरण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव और महेंद्र मिश्रा, आईएमके से जुड़े श्यामबीर भी उपस्थित रहे।

अंत में वर्कर्स यूनिटी के फाउंडिंग एडिटर संदीप राउज़ी ने वक्ताओं और श्रोताओं का धन्यवाद किया।

इस किताब को यहां से मंगाया जा सकता है। मेल करें- [email protected]  या फोन करें  7503227235

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