ग्राउंड रिपोर्टः धुएँ और राख के बीच घुटती लाखों जिंदगियां

By रूपेश कुमार सिंह

“जब मेरे इलाके में फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुई थीं, तो मेरी उम्र लगभग 40 साल थी। मेरे गांव वाले बहुत खुश थे कि अब हमें रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। हमारे इलाके में नये-नये अस्पताल व विद्यालय भी खुलेंगे, चमचमाती सड़कें बनेंगी।”

“लेकिन आज 30 साल बाद जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो महसूस होता है कि विकास के नाम पर हमारे इलाके का विनाश कर दिया गया है। हमारे खेत बंजर हो रहे हैं।”

“हमारे ग्रामीण कई प्रकार की बीमारियों से त्रस्त हैं। हमारे बच्चों को अब भी रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। हमारे इलाके को इन फैक्ट्रियों से धुंआ और राख के सिवाय कुछ भी नहीं मिला है।” – यह बोलते वक्त कल्हामांझो गांव के 70 वर्षीय भिखारी राय रोते-रोते रह गये।

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 290 किलोमीटर दूर गिरिडीह जिले का गिरिडीह शहर है। रांची से रामगढ़, हजारीबाग, विष्णुगढ़, बगोदर, डुमरी, पीरटांड़ होते हुए अगर आप गिरिडीह जाएंगे, तो रास्ते में पड़ने वाले पहाड़ व जंगल आपको मोहित कर लेंगे।

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लेकिन जैसे ही आप गिरिडीह शहर से टुंडी की ओर 5-6 किलोमीटर आगे जाएंगे, धूल और राख से आपकी गाड़ी काली होनी शुरू हो जाएगी। अगर आप मोटरसाइकिल से जा रहे हैं और हेलमेट नहीं पहने हैं, तो फिर इस रास्ते में चलना मुश्किलों भरा है और अगर हेलमेट पहने भी हैं, तो आपके पूरे कपड़े पर धूल और राख की परत जम जाएगी। अब सोचिए इस इलाके में लोग कैसे रहते होंगे?

धूल और राख से दम घुटते लोगों के बीच में मैं 11 जुलाई, 2022 को पहुंचा। इस दिन मौसम सुहावना था और सुबह ही बारिश हुई थी। इसलिए कुछ कम धूल उड़ रही थी। गिरिडीह टुंडी रोड में 5-6 किलोमीटर चलने के बाद ही धूल उड़ाते ट्रकों का काफिला व सड़क के दोनों ओर धुआं उगलती फैक्ट्रियां दिखने लगीं।

मैं गिरिडीह शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर चतरो नामक जगह पर पहुंचा, जहां बालमुकुंद स्पांज एण्ड आयरन प्राइवेट लिमिटेड नामक कम्पनी है। यहां पर सड़क के दोनों किनारे दर्जनों ट्रक खड़े थे। सड़क के किनारे मौजूद दुकानें धूल और राख से पटी हुई थीं।

मैं सर्वप्रथम बालमुंकुंद स्पांज एण्ड आयरन प्राइवेट लिमिटेड की चारदीवारी से लगभग 250 मीटर दूर महुआटांड़ नामक गांव में गया। इस गांव में संथाल आदिवासी एवं कोल आदिवासी के लगभग 50-60 परिवार रहते हैं। इस गांव के प्रारंभ में ही एक मकान के आगे लाल झंडा लहरा रहा था, दरअसल यह ‘मजदूर संगठन समिति’ का कार्यालय था। उस समय कार्यालय में मजदूर संगठन समिति के गिरिडीह शाखा अध्यक्ष कामरेड हूबलाल राय, विनोद मरीक, नवीन पांडे, लखन कोल, रंजीत राय, कन्हाई पांडे आदि मौजूद थे।

कामरेड हूबलाल राय ने बताया कि यह पहले ‘मेहनतकश महिला संघर्ष समिति’ का कार्यालय था। लेकिन 22 दिसंबर, 2017 को झारखंड सरकार ने मजदूर संगठन समिति पर भाकपा (माओवादी) का अग्र संगठन का आरोप लगाते हुए प्रतिबंध लगा दिया था और हमारा शाखा कार्यालय भी सील का दिया था। अभी 11 फरवरी 2022 को रांची हाईकोर्ट ने हमारे संगठन से प्रतिबंध वापस ले लिया है, लेकिन अभी तक हमारा कार्यालय नहीं खोला है। इसलिए मजबूरी में हम भी अभी इसी कार्यालय से अपना काम संचालित कर रहे हैं।

महुआटांड़ के ग्रामीण लखन कोल बताते हैं कि 1990 के बाद से इस इलाके में पूंजीपतियों का आना प्रारंभ हुआ। उस समय 10 हजार रूपये एकड़ की दर से हमारी जमीन ली गयी। हमें आश्वासन दिया गया कि यहां फैक्ट्री लगने से आपको कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि आपको फायदा ही होगा। यहां हम लोग स्कूल एवं अस्पताल भी खोलेंगे। हम लोग पूंजीपतियों के झांसे में आ गये और हमने अपनी बेकार पड़ी जमीनों के अलावा खेतिहर जमीनें भी उन्हें दे दी।

पूंजीपतियों ने हमारी रैयती जमीनें हमसे खरीदी और वन विभाग, गैर-मजरुआ एवं सरकारी जमीनों पर भी सरकार व प्रशासन से मिली-भगत करके कब्जा कर लिया। फैक्ट्री खुलने के बाद उसके कचरे से हमारे खेत की पैदावार घटने लगी। मेरे गांव के अगल-बगल के तमाम जल स्रोत सूख गये। चापाकल भी गर्मी में सूखने लगे। कई साल तो ऐसा हुआ है कि मेरे गांव के कुंआ में टैंकर से पानी लाकर डालना पड़ा है। मेरे गांव वालों ने बहुत आंदोलन भी किया, आंदोलन के बाद कुछ दिन तक प्रदूषण पर नियंत्रण रहता है, लेकिन बाद में फिर जैसे का तैसा ही हो जाता है।’’

मैंने कम्पनी से निकलने वाले गंदे पानी को देखने की इच्छा जताई, तो वो मुझे बालमुकुंद स्पांज एंड आयरन प्राइवेट लिमिटेड की चारदीवारी के पास ले गये। यहां चारदीवारी में दर्जनों बड़े-बड़े छेद थे। जिससे दुर्गंधयुक्त कचरा पानी निकल रहा था। वहां मौजूद एक आदिवासी किसान ने बताया कि अभी तो इस पानी के निकासी के लिए बाहर में नाला भी बना दिया गया है, ताकि यह विभिन्न रास्ते से होते हुए उसरी नदी में चला जाए।

पहले तो यह पानी इन खेतों में होकर ही गुजरता था, जिस कारण हमारे खेत बंजर हो गये। इस पानी को पीने के कारण कई मवेशी मर गये, लेकिन फिर भी कम्पनी इस पानी की निकासी के लिए कोई सुरक्षित तरीका इस्तेमाल नहीं कर रही है।

बंजर खेत।

पहले तो कम्पनियां अपने कचरे को कहीं भी फेंक देती थीं, लेकिन इस इलाके के ग्रामीणों के आंदोलन के कारण उन्हें कचरा डम्प करने के लिए अब जमीनें खरीदनी पड़ रही हैं।

लेकिन अभी भी कई कम्पनियां अपने कचरे को प्रशासन से मिली-भगत होने के कारण यत्र-तत्र ही फेंक देती हैं। ऐसा ही हजारों टन कचरा मैंने गिरिडीह से टुंडी जाने के रास्ते में उसरी नदी के पहले बायीं तरफ सरकारी जमीन पर फेंका हुआ देखा।

कचरे का पहाड़।

दरअसल 1990 के बाद उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण नीति बनने के बाद गिरिडीह जिला के इस इलाके में स्पांज आयरन, स्टील, केबल, सीमेंट आदि की कई निजी फैक्ट्रियां खुलीं।

वैसे 1980 में ही मोंगिया स्पांज एंड आयरन प्राइवेट लिमिटेड नामक फैक्ट्री इलाके में खुल चुकी थी। लेकिन 1990 के बाद फैक्ट्रियों ने रफ्तार पकड़ी और 2006 आते-आते इस इलाके में लगभग 60 फैक्ट्री खुल चुकी थीं। आज इस इलाके में लगभग 100 छोटी-बड़ी कम्पनी हैं। जिसमें न्यूनतम 20 से लेकर अधिकतम 5000 मजदूर काम करते हैं।

बालमुकुंद स्पांज एण्ड आयरन प्राइवेट लिमिटेड, मोंगिया स्पांज एंड आयरन प्राइवेट लिमिटेड, बेंकटेश्वर स्पांज एंड आयरन प्राइवेट लिमिटेड, अतिबीर स्पांज आयरन हाइटेक पावर प्लांट, शिवम रोलिंग मिल, लंगटा बाबा स्टील प्लांट, कस्तूरी राईस मील, बालाजी रिंग प्लांट, शैलपुत्री रोलिंग मिल, गणपति तार मिल, मोंगिया रोलिंग मिल, एल्युमिनियम प्लांट, भारद्वाज रोलिंग मिल, चैना पावर प्लांट, सलूजा स्पांज एण्ड आयरन प्राइवेट लिमिटेड, सुंदरम फैैक्टरी, मुद्रा राईस मिल, अलकतरा विप प्लांट, लाल स्टील रोलिंग मिल, अतिबीर वर फैक्ट्री, सर्वमंगला कूट फैक्ट्री, जय स्टील तार फैक्ट्री, अतिबीर रोलिंग मिल, स्वाती पिक अभरन फैक्ट्री, मोंगिया पावर प्लांट, बालाजी हार्ड कोक प्लांट, निरंजन हाईटेक पावर प्लांट, सीमेंट प्लांट, आदिशक्ति रोलिंग मिल, कोहिनूर रोलिंग मिल, लाल फेरो रोलिंग मिल, शिव शक्ति हार्डकोक भट्ठा, अंजनी हार्डकोक भट्ठा , बिर सिखा इंडस्ट्री, लक्ष्मी राइस मिल, रेणु इंटरप्राइजेज, नारायणी वरदे इंटरप्राइजेज, रूबी माइका आदि इस इलाके की प्रमुख कम्पनियां है।

इन कम्पनियों में मुख्यतः स्पांज एंड आयरन, सिलकाॅन मैगनीज, सेंटर, अलकतरा, सिमेंट, टायर को गला के तेल निकालने वाली कम्पनी आदि से निकलने वाले प्रदूषण से ग्रामीण त्रस्त होते हैं। ये कम्पनियां मुख्यतः गिरिडीह प्रखंड के 5 पंचायतों मोहनपुर, पूरनानगर, गादी श्रीरामपुर, मंगरूडीह एवं उदनाबाद में स्थित है।

टिकोडीह के पास शिवशक्ति हार्डकोक भट्ठा नामक फैक्ट्री है, जिसमें टायर को गला के तेल निकाला जाता है। इस फैक्ट्री से निकलने वाले धुंए से ग्रामीणों के नाक में कचरे का ढक्कन जैसा बन जाता है।

लक्ष्मी राईस मिल से अनवरत निकलने वाला कचरा पानी से जमीन बंजर हो गयी है और दुर्गंध इतना कि वहां पर खड़ा रहना भी मुश्किल है। और यही पानी उसरी नदी में गिराया जाता है।

इस इलाके में मौजूद कई कम्पनियों का कचरा पानी उसरी नदी में जाता है, जबकि इस नदी में लोग नहाते हैं और यहां का पानी पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

कचरे वाली नाली

जब मैं गादी श्रीरामपुर पंचायत के कल्हामांझो गांव जा रहा था, तो रास्ते में छोटे-छोटे पहाड़ दिखे, जो बालमुकुंद एवं अतिबीर स्पांज एण्ड आयरन फैक्ट्री से निकले हुए कचरे का पहाड़ था।

वहां मौजूद लोगों ने बताया कि पहले तो यहां से गुजरना मुश्किल था क्योंकि यह कचरा हमेशा उड़ता रहता था। गर्मी के दिनों में तो आप इस रास्ते से जा ही नहीं सकते थे। बाद में ‘मजदूर संगठन समिति’ के नेतृत्व में हुए आंदोलन के कारण इस कचरे को मिट्टी से ढकना पड़ा था।

लेकिन कई बारिश के बाद अब फिर पहले जैसी स्थिति बनती जा रही है। जब मैं कल्हामांझो पहुंचा, तो वहां चबूतरे पर ग्रामीण भिखारी राय, साधु यादव, काशीनाथ हजारी, वासुदेव यादव, प्रभुदयाल महतो, रामू कोल आदि बैठे मिले।

ग्रामीण भिखारी राय के विचार को आप प्रारंभ में ही पढ़ चुके हैं। 60 वर्षीय साधु यादव कहते हैं कि मुझे 2 बीघा खेत है, लेकिन मैंने 2 साल से खेती छोड़ दी है क्योंकि अब खेती से लागत भी नहीं निकल पाता है।

यही स्थिति गांव के लगभग सभी किसानों की है। बगल में कचरा रखने के कारण बारिश में उसका पानी हमारे खेतों में आता था, जिसने हमारी खेतों को बंजर बना दिया है।

वहीं मौजूद आदिवासी रामू कोल कहते हैं कि 16 साल पहले हमारी जमीन कम्पनी खोलने के उद्देश्य से 15 हजार रूपये एकड़ की दर से लिया गया था। उस समय यह नहीं बताया गया था कि यहां पर कचरा डंपिंग यार्ड बनने वाला है। अगर हमें यह पता रहता तो हम कभी जमीन नहीं देते।

काशीनाथ हजारी कहते हैं कि जितनी जमीन कचरा डंपिंग यार्ड के लिए खरीदी गयी है, उससे दो गुना जमीन पर कचरा गिराया गया है, यह अतिरिक्त जमीन सरकारी, वन भूमि और गैर-मजरूआ है।

जब हम लोग अतिरिक्त भूमि पर कचरा गिराने से रोकने जाते हैं, तो प्रशासन कहता है कि आप रोकने वाले कौन होते हैं और हमें डरा-धमका कर भगा दिया जाता है।

इसी फैक्ट्री में तीन मजदूरों की मौत हो गयी थी।

वहां हम बात कर ही रहे थे कि साधु यादव ने बताया कि इस कचरा डंपिंग यार्ड से मेरे गांव के कई लोग बीमार हो रहे हैं। अभी 6 महीने पहले जो बच्ची हंसती-खेलती थी, उसे देखकर आप डर जाएंगे। यह सुनकर मैंने उस बच्ची से मिलने की इच्छा जताई। वहां पर मौजूद सभी लोगों के साथ मैं उसी गांव के एक घर में पहुंचा।

11 वर्षीय खुशबू को जब उसकी मां साथ में लेकर आंगन में आयी, तो उसके वीभत्स व डरावने चेहरे को देखकर मैं सिहर-सा गया। खुशबू के मुंह का पता ही नहीं चल रहा था। खुशबू की मां ने बताया कि पहले बहुत अच्छी थी। पढ़ती थी, गाय चराती थी और कचरा डंपिंग यार्ड होकर ही दूसरे गांव में दूध पहुंचाने जाती थी।

6 महीना पहले एक दिन बतायी कि सर में दर्द हो रहा है और फिर अचानक से अगले दिन से चेहरा बिगड़ने लगा। मैंने रांची, बोकारो, गिरिडीह में भी डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है। 2 महीने से बस जूस और दूध पर ही जिंदा है। मेरी बेटी को प्रदूषण तिल-तिल कर मार रहा है।

खुशबू के पापा 35 वर्षीय चैआ महतो भी अज्ञात बीमारी की चपेट में है और अभी ही 60 वर्ष के दिखने लगे हैं। खुशबू के दादा 75 वर्षीय लक्ष्मण महतो खांस-खांस कर परेशान हैं।

ग्रामीणों का कहना था कि प्रदूषण के कारण एक हंसता-खेलता परिवार घुट-घुट कर मर रहा है। यह सिर्फ एक परिवार की स्थिति नहीं है , बल्कि इस इलाके के अधिकांश परिवारों की यही स्थिति है।

कल्हामांझो से निकलकर मैं बगल के गांव हेठ पहरी पहुंचा। वहां मंदिर के सामने भोलानाथ पांडे, गोवर्धन पंडित, नारायण राय, झगड़़ू राय, चमरू राय आदि बैठे हुए थे। भोलानाथ पांडे बताते हैं कि जिस खेत में पहले 10 मन धान होता था, वहां अब 2 मन धान हो रहा है।

चावल भी काला ही निकलता है। इसका कारण है कि जब धान फूटने लगता है तो राख उसमें घुस जाता है, जिसके कारण अधिकांश पौधे में धान आता ही नहीं है, और जिसमें आता है तो काला ही आता है।

हमारे इलाके का जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है। बगल में रूबी माइका फैक्ट्री में कई हजार फीट नीचे की डीप बोरिंग करायी गयी है, जिससे प्रतिदिन सैकड़ों टैंकर पानी निकाला जाता है। इस कारण जल स्तर नीचे गया है।

मैं महुआटांड़, गंगापुर, मंझलाडीह, गादी श्रीरामपुर, तुरूकडीहा, चतरो, कोलहरिया, कल्हामांझो, हेठ पहरी, पुरनी पंटरिया आदि गांव के सैकड़ों ग्रामीणों से मिला और लगभग सभी ग्रामीणों ने भिखारी राय की बात से अपनी सहमति जताई। इन ग्रामीणों से बात करते हुए एक बात और भी स्पष्ट रूप से सामने आयी कि इन कम्पनियों में स्थानीय लोगों की संख्या मात्र 20 प्रतिशत ही है।

ये कम्पनियां बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा आदि से मजदूर लाते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को नहीं रखते हैं। इन कम्पनियों में तमाम काम के लिए अलग-अलग ठेकेदार हैं, यानी कि सारा काम ठेकेदारों द्वारा ही कराया जाता है। न्यूनतम मजदूरी शायद ही किसी मजदूर को मिलती हो।

अधिकांश ठेकेदार भी दूसरे राज्यों के हैं, इसलिए वे वहीं से मजदूरों को लाते हैं और उनके ठहरने व खाने का इंतजाम भी कम्पनी गेट के अंदर ही होता है। ये मजदूर शायद ही बाहर निकलते हों। ट्रांसपोर्ट, ढुलाई, चढ़ाई, कचरा छंटाई आदि का काम ही स्थानीय ठेकेदारों व मजदूरों को मिलता है। ठेकेदार ज्यादातर उच्च जाति के ही स्थानीय लोग हैं।

इन कम्पनियों में काम भी 12 घंटा कराया जाता है। किसी भी मजदूर के पास परिचय पत्र तक नहीं होता है। सभी गांव से एक बात स्पष्ट रूप से सामने आयी कि हमलोगों को इन कम्पनियों में काम इसलिए नहीं मिलता है कि हम लोग कम्पनी में भी मजदूरों के हक अधिकार की बात करेंगे। इन गांवों में घूमने के दौरान मैंने सड़क की भी खस्ताहाल स्थिति ही देखी।

मैंने ग्रामीणों के द्वारा कंपनी प्रबंधन पर लगाये गये आरोपों पर स्पष्टीकरण के लिए कुछ कम्पनी के प्रबंधन से भी मिलना चाहा, लेकिन गेट पर मौजूद गार्ड ने यह कहकर लौटा दिया कि साहब आज नहीं आये हैं, कल आइयेगा। समय की कमी के कारण दूसरे दिन मैं वहां जा नहीं सका। प्रदूषण बोर्ड का कार्यालय तो गिरिडीह में है ही नहीं, उसका कार्यालय हजारीबाग में है।

मजदूर संगठन समिति के गिरिडीह शाखा के अध्यक्ष, जो कि इसी इलाके के पुरनी पेटरिया गांव के रहने वाले हैं, कामरेड हूबलाल राय बताते हैं कि ऐसा भी नहीं है कि प्रदूषण के खिलाफ यहां के लोगों ने लड़ाई नहीं लड़ी है। हमने काफी लड़ाई लड़ी। 2006 में चतरो में 10 दिवसीय धरना दिया गया, जिसमें प्रतिदिन हजारों लोग शामिल होते थे।

2007 में प्रदूषण के खिलाफ में इलाके के 30-40 स्कूलों के बच्चों ने अपने शिक्षकों के साथ रैली निकाली और सभी लोग मोहनपुर के दुर्गा शिशु निकेतन में जमा हुए और सभा के माध्यम से प्रदूषण के खिलाफ आवाज बुलंद की।

2008 में गिरिडीह सदर अस्पताल में हजारों लोगों ने प्रदूषण से उत्पन्न हुई बीमारियों के उचित इलाज के लिए प्रदर्शन किया। 2010 में गिरिडीह प्रखंड कार्यालय पर लगभग 10 हजार ग्रामीण प्रदूषण के खिलाफ एकजुट हुए।

हमलोगों ने बुद्धिजीवियों को भी गोलबंद किया था। हमारे आंदोलन से कई बार जांच टीम आयी। प्रदूषण पर कुछ नियंत्रण भी हुआ, लेकिन हमारे संगठन पर प्रतिबंध लगने के बाद कंपनियों की मनमानी प्रारंभ हो गयी है।

अब हमारे संगठन से प्रतिबंध हट गया हैं और हम फिर से लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। हम सर्वप्रथम डीसी, सहायक श्रमायुक्त, एसडीओ एवं तमाम कम्पनियों में मांगपत्र सौंप रहे हैं और मजदूरों व ग्रामीण इलाकों में पर्चा वितरण कर रहे हैं। अगर 15 दिन के अंदर हमारी मांगों पर विचार नहीं किया गया, तो हम लोग सड़क पर उतरेंगे।

गिरिडीह के इन 5 पंचायतों में प्रदूषण के कारण लोगों का दम घुट रहा है। इन इलाकों में अस्थमा, टीबी, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया, स्क्लेरोसिस, कंजेक्टिवाइरस, कैंसर जैसी घातक बीमारियां बहुतायत है। ऐसी बात नहीं है कि इस इलाके में मौजूद कंपनियों की कारगुजारी की जानकारी राज्य सरकार को नहीं है।

28-29 नवंबर, 2020 को झारखंड विधानसभा की निवेदन समिति ने इस इलाके में दो दिवसीय दौरा किया था। इस समिति में निवेदन समिति के सभापति विधायक उमाशंकर यादव अकेला, विधायक पूर्णिमा सिंह, विधायक इंद्रजीत महतो एवं गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू शामिल थे।

इस समिति ने कहा था कि कम्पनियां मानकों व नियमों का पालन नहीं कर रही हैं। समिति ने अधिकारियों को भी फटकारा था कि मानकों व नियमों का कम्पनियों से पालन कराया जाए, अन्यथा राज्य सरकार कार्रवाई करेगी।

फिर, 01 फरवरी 2021 को भी गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू के नेतृत्व में एक राज्य स्तरीय अधिकारियों की टीम ने इस इलाके का दौरा किया था, जिसमें राज्य उद्योग विभाग रांची के निदेशक, प्रदूषण विभाग हजारीबाग के रीजनल अफसर, डीएफओ, एडिशनल कलेक्टर व संबंधित विभाग के अफसर शामिल थे।

इस टीम ने कहा था कि एक विस्तृत रिपोर्ट राज्य सरकार और केंद्र सरकार के संबंधित विभाग को भेजकर प्रदूषण की रोकथाम के लिए एक गाइडलाइन और सभी नियमों के कंप्लायंस के लिए कड़ी कानूनी कार्रवाई करने पर बल दिया जाएगा।

दो साल में दो बार राज्य स्तरीय टीम आने के बाद भी यहां की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। एक ग्रामीण नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि दीपावली, दुर्गा पूजा या होली के समय सभी कंपनियों में नेताओं, अधिकारियों व पत्रकारों की भीड़ लगी रहती है।

इन सभी की गाड़ियां आपको गेट पर मिल जाएंगी। ये कम्पनियां सभी जगह पर्याप्त चढ़ावा चढ़ाती हैं, इसलिए इनका कुछ भी नहीं बिगड़ता।

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि इन इलाकों में कंपनियों ने दलालों की टोली बना ली है। हालांकि 2017 तक कंपनी के मजदूरों को ‘मजदूर संगठन समिति’ के आंदोलन के कारण न्यूनतम मजदूरी, 8 घंटे काम का समय, प्रति माह 3 किलो चूड़ा व 2 किलो गुड़, जूता, दस्ताना, हेलमेट, कार्य अवधि में मरने पर उचित मुआवजा व आश्रितों को नौकरी आदि मिलने लगा था, लेकिन मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगने के बाद 5 सालों से मजदूरों व ग्रामीणों का जमकर शोषण हो रहा है।

मजदूर नेता कन्हाई पांडे बताते हैं कि पहले तो ड्यूटी टाइम में मजदूरों की मौत होने पर बाहर सड़क पर फेंक दिया जाता था। हम लोगों के आंदोलन के कारण ही बाद में 10-15 लाख मुआवजा व आश्रितों को नौकरी मिलने लगी।

वे बताते हैं कि 15 मार्च 2022 को जब हम लोग मजदूर संगठन समिति पर से प्रतिबंध वापस हटने की खुशी में विजय जुलूस निकाल रहे थे, तभी पता चला कि सर्वमंगला कूट फैक्ट्री में दीवार गिरने से 3 मजदूरों की मौत हो गयी है। तुरंत हम लोग वहां पहुंचे और सभी मजदूरों के आश्रित को 13 लाख रूपये मुआवजा एवं एक आश्रित को नौकरी भी दिलवाया गया।

2 मई 2022 को विश्व अस्थमा दिवस की पूर्व संध्या पर रांची में आयोजित एक सेमिनार में एशियन मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन एवं साउथ एशिया मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन के सहयोग से ‘स्विच ऑन फाउंडेशन’ द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी थी।

यह रिपोर्ट रांची व गिरिडीह जिला में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले 1200 लोगों पर किये गये शोध पर आधारित था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि गिरिडीह जिला में 57 प्रतिशत बुजुर्ग श्वसन संबंधित बीमारी से ग्रसित हैं। 46 प्रतिशत बच्चों में खांसी और 43 प्रतिशत बच्चों के गले में खराश के लक्षण हैं।

वहीं गिरिडीह जिला में ही 61 प्रतिशत लोग छींकने से ग्रसित हैं। 70 प्रतिशत बुजुर्ग आराम करते समय सांस फूलने से पीड़ित हैं। 61 वर्ष से अधिक आयु के 78 प्रतिशत लोग सोने में तकलीफ का सामना करते हैं। वायु प्रदूषण से इन इलाकों में अस्थमा एवं सीओपीडी बीमारी तेजी से फैल रही है।

गिरिडीह जिले की उपरोक्त 5 पंचायतों में मौजूद लगभग 100 कम्पनियों ने जिस तरह से लाखों लोगों को धुंआ और राख के बीच घुट-घुटकर जीने को विवश किया है। लगभग यही हालात झारखंड के कई औद्योगिक क्षेत्रों का है। कम्पनियां अपने निजी फायदे के लिए आस-पास के ग्रामीणों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करती हैं।

विकास का सब्जबाग दिखाकर विनाश की प्रक्रिया शुरू करती है। विकास के इस जनविरोधी मॉडल के खिलाफ गिरिडीह की जनता का आक्रोश वर्तमान में तूफान के आने के पहले की शांति जैसी है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि यह सन्नाटा क्या रुख अख्तियार करता है!

(साभार जनचौक)

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