52% मजदूरों को पीने का पानी भी नहीं दिया जाता, 79% को नहीं मिलती खाने के जगह: WPC सर्वे

मजदूर कार्यस्थलों पर अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को बाध्य होते हैं।

बाकी सुविधाएं तो दूर, पानी जैसी जरूरी चीज, जिसके बिना इंसान का जीना मुश्किल हो जाता है, वह भी ज्यादातर मजदूरों को नसीब नहीं होता है।

Working People’s Coalition द्वारा किए गए सर्वे में पता चला कि 52 फीसदी, यानी आधे से ज्यादा मजदूरों को कार्यस्थल पर पीने के पानी की सुविधा नहीं है।

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सर्वे की रिपोर्ट Accessing minimum wages: Evidence from Delhi दर्शाती है कि 79 फीसदी मजदूरों को कार्यस्थल पर खाने की कोई जगह नहीं मिलती।

सिर्फ 6 फीसदी मजदूरों ने कहा कि उन्हें कार्यस्थल पर भोजन उपलब्ध कराया जाता है।

यह मजदूरों के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के माध्यम से जीवन के अधिकार और श्रम अधिकारों का हनन माना जाएगा।

इसके अलावा, 55 फीसदी मजदूर ऐसे वातावरण में काम करते हैं जहां कोई उचित वेंटीलेशन उआ हवा आने जाने की जगह नहीं है।

साथ ही 68 फीसदी मजदूरों को कार्यस्थल पर शौचालय की सुविधा नहीं है।

सिर्फ 13 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए अलग शौचालय की सुविधा है।

कुल मिलाकर, यह दर्शाता है कि दो-तिहाई से अधिक मजदूर अमानवीय माहौल में बिना पर्याप्त साधनों या किसी सुरक्षा के काम करते हैं, जिससे कि औद्योगिक संबंध खराब हो सकते हैं और साथ ही यह मजदूरों के बेहतरी के लिए भी नुकसानदेह है।

सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 98 प्रतिशत महिला मजदूरों और 95 प्रतिशत पुरुष मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन मिलता है, और लगभग 74 प्रतिशत प्रति माह 500 रुपये भी नहीं बचा पाते हैं।

90 प्रतिशत से अधिक मजदूरों के पास कोई सामाजिक सुरक्षा या पेंशन जैसी कोई सुविधा नहीं थी।

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