भारत की भी लंका लगने वाली है?

Manrega Bihar rohtas 4

By गिरीश मालवीय

देश की लंका लगने वाली है, लगातार बढ़ती मंहगाई श्रीलंका जैसे हालात पैदा कर देगी। 18 जुलाई से अनब्रांडेड प्री-पैकेज्ड व प्री लेबल आटा, मैदा और सूजी, दाल, दही, गुड समेत अनेक खाद्य उत्पादों पर 5 फीसदी जीएसटी लगने जा रहा है।

23 मार्च 2017 को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि जिन खाने-पीने की वस्तुओं पर अभी तक कोई टैक्स नहीं लगता है, उन्हें जीएसटी से अलग रखा जाएगा। लेकिन आज 2022 मे इस निर्णय को पुरी तरह से पलट दिया गया है।

सरकारें जब भी कोई कर या कर सुधारों से जुड़ी व्यवस्थाएं लेकर आती हैं, तो उसे ‘ग्लासनोस्त’ और ‘पेरेस्त्रोइका’ के रूप में ही पेश करने की कोशिश करती हैं, लेकिन हकीकत कुछ सालो बाद नजर आती है जैसा आज हमे जीएसटी के मामले में देखने को मिल रहा है।

अनब्रांडेड प्री- पैकेज्ड व प्री लेबल खाद्यान पदार्थो पर जीएसटी लगाने के इस निर्णय का प्रभाव क्या होगा इसे समझने का प्रयास करते हैं।

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दरअसल मल्टीनेशनल कंपनी अपना उत्पाद ऊंचे दाम पर रजिस्ट्रड ब्रांड से बेचती है। जबकि छोटे छोटे एमएसएमई या छोटी-छोटी आटा चक्की, अपना उत्पादन कम दाम व कम लाभ पर बेचती है। बड़े उद्योगपतियों की गुलाम मोदी सरकार को शायद यही बात अखर रही है।

पांच प्रतिशत जीएसटी लगाने से कुटीर उद्योग बुरी तरह से प्रभावित होगा। वह अब बड़े ब्रांड से मुकाबला नहीं कर पाएंगे।

महंगाई तो बढ़ना तय है कि क्योंकि जीएसटी लगने से रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली खाद्य वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे ही बढ़ेंगे, कई एमएसएमई 5 प्रतिशत जीएसटी की वजह से बंद हो जाएंगे, जीएसटी की ऊंची टैक्स दरों के बाद बन्द होने का फायदा बड़ी कंपनियों को मिलगा और यही मोदी सरकार चाहती हैं।

साफ़ दिख रहा है कि असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ने जा रही है।

कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ (कैट) और अन्य खाद्यान्न संगठनों का मानना है कि देश के सभी बड़े ब्रांड की कंपनियां देश की आबादी का 15 प्रतिशत उच्चतम वर्ग, उच्च वर्ग एवं उच्च मध्य वर्ग के लोगों की ही जरूरतों की पूर्ति करता है जबकि सभी राज्यों में छोटे निर्माता जिनका अपना लोकल लेबल का नेटवर्क होता है वे देश की 85 प्रतिशत आबादी की मांग को पूरा करते हैं।

ऐसे में इन वस्तुओं के जीएसटी कर दायरे में आने से छोटे निर्माताओं व व्यापारियों पर टैक्स अनुपालन का बोझ बढ़ेगा। साथ ही दैनिक जरूरतों के सामान भी महंगे हो जाएंगे।

कैट का कहना है क‍ि यह भी खेद की बात है क‍ि देश में किसी भी व्यापारी संगठन से इस बारे में कोई परामर्श नहीं किया गया है।

सरकार के द्वारा इस प्री- पैकेज्ड व प्री लेबल शब्द के इस्तेमाल से लग रहा हैं कि किसान भी इस निर्णय से प्रभावित हो सकता है क्योंकि किसान भी अपनी फसल बोरे में पैक करके लाता है तो क्या उस पर भी जीएसटी लगेगा ?

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