दिल्ली सरकार का लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों को 5-5 हजार रुपये की आर्थिक मदद करने का वादा

arvind kejriwal

कोरोना संक्रमण के मद्देनजर राजधानी में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान दिल्ली सरकार प्रवासी, दिहाड़ी और निर्माण कार्य लगे मजदूरों के रहने, खाने और उनके अन्य जरूरतों को पूरा करेगी।

इस बारे में मंगलवार को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। सरकार ने न्यायालय को बताया है कि इसके अलावा पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को 5-5 हजार रुपये की वित्तीय सहायता भी दी जाएगी।

जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की पीठ के समक्ष दाखिल हलफनामे में सरकार नहा है कि वह श्रमिकों की जरूरतों को पूरा करने और उनके कल्याण के जरूरी कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।

सरकार ने पीठ को बताया कि लॉकडाउन में श्रमिकों के रहने, खाने-पीने, कपड़े व दवा इत्यादि की व्यवस्था के लिए जरूरी कदम उठाए गए हैं।

सरकार ने न्यायालय को बताया है कि प्रधान सचिव (गृह) की अगुवाई में एक समिति का गठन किया है जो श्रमिकों के सभी जरूरतों के लिए काम करेंगे। हाईकोर्ट ने सोमवार को राजधानी में एक सप्ताह के लिए लॉकडाउन लगाए जाने के बाद प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सरकार से जवाब मांगा था।

सरकार ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा है कि रिपोर्ट में सरकार ने श्रमिकों की भलाई के लिए समुचित कदम उठाने का दावा किया है।

श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रधान सचिव(गृह) भूपिन्द्र सिंह भल्ला की अगुवाई में कमटी बनाई गई है जो राज्य के नोडल अधिकारी रहेगें। इसके साथ ही सरकार ने उनकी मदद के लिए पुलिस के विशेष आयुक्त राजेश खुराना को दिल्ली पुलिस की ओर से नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।

सरकार ने कहा है कि श्रमिकों को खाना-पीने, दवा, आश्रय, कपड़े जैसी मूलभूत जरूरतों के अलावा यह भी सुनिश्चित किया गया है कि निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों को कार्यस्थल पर ही ये सभी सुविधाएं मुहैया कराए जाएं।

सरकार ने कहा है कि पिछले सा पंजीकृत श्रमिकों की संख्या करीब 55 हजार थी और एक वर्ष में विशेष कैंप लगाकर पंजीकरण को आगे बढ़ाया गया है मौजूदा समय में एक लाख 71 हजार 861 पंजीकृत निर्माण श्रमिक हैं।

केजरीवाल सरकार का दावा है कि  पिछले साल सभी मजदूरों को लॉकडाउन में दो बार में पांच-पांच हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी गई थी।  और सरकार भी इस साल भी 20 अप्रैल-2021 से फिर से पांच हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी।

हालांकि सरकारें तमाम तरह के दावे और वादें कर लें लेकिन श्रमिकों की स्थिती पिछले लॉकडाउन से इस लॉकडाउन तक जस की तस बनी हुई है।

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