300 तक मज़दूरों वाली कंपनियों में छंटनी की खुली छूट देने वाला नया राज्य बना असम

labour protest gurgaon

हरियाणा और अन्य बीजेपी शासित राज्यों के साथ साथ अब असम में भी 300 से कम मज़दूर संख्या वाली कंपनियों में उद्योगपति को छंटनी की पूरी आज़ादी मिल गई है।

इससे संबंधित औद्योगिक विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017 पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर दिए हैं।

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार ने श्रम क़ानूनों में सुधार के नाम पर नए नियम पास किए। और पास होते ही लगभग सभी बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने इसे अपने यहां फुर्ती से लागू किया।

इनमें हरियाणा और राजस्थान की राज्य सरकारें सबसे आगे रहीं।

नए कानून  के तहत 300 मज़दूरों की संख्या वाले कंपनी मालिकों को छंटनी या तालाबंदी के लिए सरकार से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं रहेगी।

पढ़ेंः मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अबतक हुए श्रम क़ानूनों में बदलाव पर एक नज़र

परमानेंट वर्करों को निकालने वाला क़ानून

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की जगह ये नया कानून लेगा।

पहले के कानून के मुताबिक छंटनी और तालाबंदी में मनमानी की इजाज़त सिर्फ 100 मज़दूरों वाली कंपनियों, प्लांटों, फैक्ट्रियों पर ही लागू था।

समाचार वेबसाइट ‘द वायर हिंदी’ की एक ख़बर के मुताबिक, सरकार ने इसे ‘इजी ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा देने वाला बताया है।

गृह मंत्लाय के अधिकारियों के मुताबिक इससे राज्य में ‘बिजनेस के लायक’ माहौल बनाने में सकारात्मकता आएगी।

हालांकि नए क़ानून के मुताबिक छंटनी और तालाबंदी की हालत में मज़दूरों को 15 दिन की बजाय 60 दिन का वेतन देना होगा।

ये नए श्रम क़ानून 2014 में मोदी सरकार के आते ही अस्तित्व में आने शुरू हो गए थे। इन्हें मोदी सरकार ने श्रम क़ानूनों में ‘सुधार’ का नाम दिया।

लेकिन मज़दूर नेताओं का कहना है कि ‘ये मज़दूर हकों पर कुठाराघात है। इसी की वजह से कंपनियां 20-20 साल से काम कर रहे परमानेंट वर्करों की छंटनी कर रही हैं।’

 

84 प्रतिशत उद्योगों पर पड़ेगी मार

मारुति उद्योग कामगार यूनियन के महासचिव कुलदीप जांगू कहते हैं, “सरकार 44 श्रम क़ानूनों को हटाकर उनकी जगह चार कोड ऑफ़ कंडक्ट ला रही है। ये पूंजीपतियों को दोनों हाथों से लूटने की व्यवस्था को और मजबूत करेगी।”

वो कहते हैं, “300 से कम मज़दूर क्षमता वाली फैक्ट्रियों में पूंजीपतियों को खुली छूट देने का मतलब है 85 प्रतिशत उद्योगों में श्रमिकों के शोषण को हरी झंडी दे देना। क्योंकि गुड़गांव से धारूहेड़ा तक के औद्योगिक बेल्ट में 85 प्रतिशत उद्योग 300 से कम मज़दूर क्षमता वाले उद्योगों में आते हैं।”

मज़दूर कार्यकर्ता श्यामवीर ने बताया कि ‘श्रम कानूनों को उद्योगपतियों के हित में बदलने को लेकर कांग्रेस और भाजपा में कोई मतभेद नहीं है। कांग्रेस पहले ही इन कानूनों को बदलने के लिए तैयार बैठी थी। लेकिन भाजपा आई गई तो ये काम मोदी-खट्टर के नेतृत्व में हुआ।’

उनके अनुसार, ’44 श्रम कानूनों को चार कोड आफ कंडक्ट को संसद में मोदी सरकार ने बिल पेश कर दिया है, हालांकि इससे पहले की कांग्रेस सरकार ने इसकी योजना पहले से ही बना रखी थी।’

श्रम क़ानूनों में होने वाले अन्य बदलाव और ख़तरनाक़

सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी अधियनियम 1948, अप्रेंटिंस अधियनियम 1961, बाल श्रम उन्मूलन व नियमन अधिनियम, रजिस्टर रखने से छूट संबंधी अधिनियम आदि को मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही दो महीने के अंदर 30 जुलाई 2014 को पास कर दिया था।

अप्रेंटिस अधिनियम तो देश के 67वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर लोकसभा ने 14 अगस्त 2014 को ही पास कर दिया था।

यही नहीं मोदी सरकार ने बजट और कई अन्य मौकों पर इन सुधारों को लागू करने के संकेत दे दिए थे।

श्यामवीर का कहना है कि ‘जो चार कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू किए जाने हैं, अगर ये लागू होते हैं तो मज़दूरों के जो रहे सहे कानूनी अधिकार हैं, वो भी छिन जाएंगे।’

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