कोरोना प्रसार का डेटा छिपाकर मोदी सरकार का हित साधता रहा आईसीएमआर: न्यूयॉर्क टाइम्स

Coronavirus disease (COVID-19) outbreak in Bengaluru

लोग मरते रहे और आईसीएमआर मोदी सरकार के इशारे पर चलता रहा , कोरना प्रसार का डेटा छिपाकर सरकारी एंजेडा को किया पूरा

मोदी ने फरवरी 2021 में कहा था कि कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई ने बाकी दुनिया को प्रेरित किया है लेकिन दो महीने बाद ही भारत में कोरोना के रिकॉर्ड मामले दर्ज हुए और कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोग मारे गए और कई गंभीर रूप से बीमार पड़े।

2020 में राजनीतिक प्रभाव शुरू
रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल की शुरुआत में ही राजनीति ने आईसीएमआर के रवैये को प्रभावित किया. सरकार ने पिछले साल की शुरुआत में ही देश में कोरोना के प्रसार के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार ठहराया था।

आईसीएमआर से जुड़े एक सूत्र ने कथित तौर पर बताया कि तबलीगी जमात के कार्यक्रम में जुटी इस भीड़ से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का कोई लाभ नहीं हुआ।

उस समय आईसीएमआर के मुख्य वैज्ञानिक रमन गंगाखेडकर ने बताया था कि उन्होंने मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए सरकार के बयान को लेकर नाराजगी जताई थी। हालांकि, भार्गव ने कथित तौर पर उनसे कहा था कि इस मामले को लेकर उन्हें चिंता नहीं करनी चाहिए।

रिपोर्ट में तीन उदाहरणों का भी उल्लेख है, जिसमें आईसीएमआर के शीर्ष नेतृत्व ने एजेंसी ने उन अध्ययनों को दरकिनार कर दिया था, जो सरकार के एजेंडा के विपरीत थे और जिसमें कोरोना की दूसरी लहर को लेकर चेतावनी दी गई थी।

उदाहरण के लिए, आईसीएमआर द्वारा वित्तपोषित जून 2020 के अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया था कि लॉकडाउन ने कोरोना के पीक से बचने में मदद नहीं की बल्कि इसमें देरी की। इसके अध्ययनकर्ताओं ने इस स्टडी के ऑनलाइन अपलोड होने के कुछ दिनों के भीतर ही इसे वापस ले लिया था।

आईसीएमआर ने ट्वीट कर कहा था कि इस अध्ययन की सहकर्मियों द्वारा समीक्षा नहीं की गई थी और यह आईसीएमआर की आधिकारिक स्थिति को नहीं दर्शाता है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन अध्ययनों में से एक के अध्ययनकर्ता का कहना है कि उन्होंने एजेंसी के अधिकारियों के दबाव के बीच इसे वापस ले लिया था।

बता दें कि इन अधिकारियों ने इस स्टडी के निष्कर्षों पर सवाल उठाए थे और शिकायत की थी कि इसकी समीक्षा से पहले ही इसे प्रकाशित कर दिया गया।

भार्गव ने जुलाई 2020 के आखिर में वैज्ञानिकों को देश के पहले सेरेप्रेवलेंस सर्वे का डेटा सार्वजनिक नहीं करने का निर्देश दिया था, जिससे पता चला था कि कई शहरों में कोरोना संक्रमण दर अधिक थी।

भार्गव ने कहा, ‘इस डेटा को प्रकाशित करने की मुझे मंजूरी नहीं थी। आप समस्याओं से घिरे हुए हो और इसकी संवेदनशीलता को नहीं समझ रहे हैं। मैं पूरी तरह से निराश हूं।’

यदि यह डेटा प्रकाशित हो जाता तो यह सरकार के उन दावों के विपरीत होता, जिसमें कहा गया कि भारत ने कोरोना से निपटने में अन्य विकसित और संपन्न देशों की तुलना में बेहतर काम किया।

जनवरी 2021 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कोरोना की दूसरी लहर का अनुमान जताया गया था। आईसीएमआर नेतृत्व ने इस अध्ययनकर्ताओं में से एक पर दबाव डालकर इस दावे को अध्ययन से हटवा दिया।

आईसीएमआर के मौजूदा और पूर्व वैज्ञानिकों ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि उन्होंने प्लाज्मा थेरेपी और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसे अप्रभावी कोविड-19 उपचार को लेकर आईसीएमआर की सिफारिशों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई क्योंकि इन तरीकों को राजनीतिक रूप से समर्थन प्राप्त था।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने जिन वैज्ञानिकों से बात की है, उन्होंने आईसीएमआर में चुप्पी साधने की संस्कृति का उल्लेख किया है।

उन्होंने बताया कि आईसीएमआर में शोधकर्ताओं को चिंता थी कि अगर वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सवाल करेंगे तो उनसे अवसर छीनकर दूसरों को दे दिए जाएंगे। अग्रवाल ने कहा, ‘लोगों के साथ अच्छे संबंध वहां काम करने के लिए जरूरी था। बस आपको हर चीज में टकराव से बचना होता है।’

(साभार- द वायर)

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