जनविरोधी नीतियों के खिलाफ 5 सितंबर को दिल्ली में इकट्ठा होंगे मजदूर और किसान

केंद्र सरकार की “जनविरोधी” नीतियों के खिलाफ किसानों, मज़दूरों को खेतिहर किसानों का एक संयुक्त राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया जा रहा है।

यह सम्मलेन दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में 5 सितंबर को भारतीय ट्रेड यूनियनों के केंद्र (सीटू), अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस), और अखिल भारतीय कृषि श्रमिक संघ (एआईएडब्ल्यूयू) के सदस्यों द्वारा किया जा रह है।

इस अधिवेशन को ‘मजदूर-किसान अधिकार महाधिवेशन’ का नाम दिया गया है जिसमें मज़दूरों, किसानों और कृषि मज़दूरों के बीच एकता को मजबूत करने के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।

बुधवार को सभी यूनियनों के सदस्यों ने एक ऑनलाइन बैठक के माध्यम से इसकी घोषणा की है। साथ ही देश भर के 500 जिलों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में शामिल होने की उम्मीद जताई है।

‘लेबर कोड को वापस ले सरकार’

सभी ट्रेड यूनियनों के सदस्यों की मांग है की मोदी सरकार तत्काल चार श्रम संहिताओं को वापस ले । उनका कहना है की कड़ी मेहनत से जीते गए मज़दूरों के अधिकारों को कम करने के लिए श्रम कानूनों के संहिताकरण की धज्जियां उड़ाते हुए, ट्रेड यूनियनों ने केंद्र को चेतावनी दी है कि अगर सरकार संहिताओं के कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ती है तो वे विरोध कार्रवाई का सहारा लेंगे। वे कृषि कानूनों को वापस लेने जैसे ही फैसले में लेबर कोड को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

नेताओं ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर आक्रामक रूप से ऐसी नीतियों को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया जो “राष्ट्र और उसके लाखों श्रमिकों और कृषि श्रमिकों के हितों के खिलाफ” हैं।

गौरतलब है कि आगामी 13 नवम्बर को राजधानी दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने के लिए मेहनतकश आवाम का आह्वान किया गया है। जिसमें देशभर से किसानों, मज़दूरों और खेतिहर मज़दूरों के आने की उम्मीद है। मासा की मांग है मज़दूर विरोधी नए लेबर कोड को तत्काल रद्द किया जाए।

साथ ही मज़दूरों के लिए वेतन का सही प्रारूप तैयार किया जाए। 28 अगस्त को दिल्ली के राजेंद्र भवन में आयोजित कन्वेंशन में देशभर के मज़दूरों और मज़दूर यूनियनों में हिस्सा लिया था। कन्वेंशन में फासीवादी और पूंजीवादी दमन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की बात पर जोर दिया गया था।

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