कश्मीर में सिर्फ पंडित ही नहीं रहते, किन हालात से गुजर रहे हैं कश्मीर के सफ़ाई कर्मचारी?

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जम्मू में दलित समुदाय के क़रीब तीन हज़ार कर्मचारी पिछले 15 दिनों से इस चिलचिलाती धूप में प्रदर्शन कर रहे हैं। एससी कैटेगरी में चुने गए तीन हज़ार के क़रीब कर्मचारी पिछले कई सालों से कश्मीर घाटी के विभिन्न ज़िलों में तैनात हैं और दलित कर्मचारियों की तबादला नीति की मांग कर रहे हैं।

मंगलवार को जम्मू स्थित रिज़र्व कैटेगरी एम्प्लाइज़ एसोसिएशन, कश्मीर के सदस्यों ने डिविज़नल कमिश्नर रमेश कुमार से मुलाक़ात कर उन्हें अपनी मांगों से अवगत करवाया। लेकिन उन्हें कोई ख़ास सफलता नहीं मिली।

जम्मू स्थित ऑल-इंडिया फ़ेडरेशन ऑफ़ एससी, एसटी एंड ओबीसी के जम्मू-कश्मीर प्रदेश अध्यक्ष आरके कलसोत्रा कहते हैं कि तबादला नीति की मांग तो दलित संगठन 2007 से कर रहे हैं लेकिन हाल की टार्गेटेड किलिंग के बाद इस मांग ने तूल पकड़ लिया है।

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पिछले साल (2021) अक्टूबर के पहले हफ़्ते में कश्मीर घाटी में एक बार फिर टार्गेटेड किलिंग का सिलसिला शुरू हुआ था।

उस समय श्रीनगर के ईदगाह इलाक़े में सरकारी स्कूल के अंदर घुस कर चरमपंथियों ने प्रधानाचार्य सुपिंदर कौर और एक शिक्षक दीपक चंद की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

जम्मू संभाग के रहने वाले और घाटी में तैनात इन कर्मचारियों ने उस समय अपने वरिष्ठ अधिकारियों से गुहार लगाई थी कि उनका तबादला कर उन्हें सुरक्षित जगहों पर तैनात कर दिया जाए। लेकिन उनकी गुहार पर कोई ख़ास कार्रवाई नहीं हुई।

इस बीच 31 मई 2022 को जम्मू में साम्बा ज़िले की रहने वाली रजनी बाला की चरमपंथियों ने दक्षिण कश्मीर के कुलगाम ज़िले में एक हाई स्कूल के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी।

उसके बाद से घाटी में तैनात इन सरकारी कर्मचारियों में एक बार फिर असुरक्षा की भावना पनपने लगी और एक अनुमान के मुताबिक़ 90 प्रतिशत से ज़्यादा दलित कर्मचारी अपनी जान बचा कर घाटी से जम्मू लौट चुके हैं।

यही कर्मचारी पिछले 15 दिनों से जम्मू में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं।

कलसोत्रा कहते हैं कि कश्मीर में जब भी अल्पसंख्यकों की बात होती है तो कश्मीरी पंडितों का ज़िक्र होता है और दलितों और दूसरे आरक्षित वर्गों की समस्या दबकर रह जाती है, उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

इन कर्मचारियों में इस बात को भी लेकर रोष व्याप्त है कि हर कोई प्रधानमंत्री के पैकेज के अंतर्गत नौकरी कर रहे कर्मचारियों की सुरक्षा और उनकी प्रमोशन की बात कर रहा लेकिन जम्मू संभाग के आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को उनके हाल पर छोड़ दिया है।

हालत ये है कि जब कर्मचारियों ने जम्मू के अंबेडकर चौक में धरना पर बैठने के लिए स्थानीय प्रशासन से इस बात की इजाज़त मांगी तो उन्हें वहां टेंट लगाने की भी इजाज़त नहीं दी गई।

कर्मचारियों के समर्थन में खड़े हुए दलित चेतना मंच के प्रधान और स्थानीय कॉर्पोरेटर शाम लाल ने बीबीसी हिंदी को बताया, “हम कर्मचारियों के लिए कॉम्प्रेहैन्सिव ट्रांसफ़र पॉलिसी की माँग कर रहे हैं।”

उन्होंने बताया जो दलित कर्मचारी 15 सालों से घाटी में तैनात हैं उन्हें न तो रहने के लिए सुरक्षित आवास मिले हुए हैं और न ही उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं।

(बीबीसी हिंदी में प्रकाशित मोहित कंधारी की रिपोर्ट। साभार प्रकाशन।)

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