शिक्षकों को लगाया कोरोना मरीजों की लाशें गिनने में, भारी विरोध के बाद केजरीवाल ने आदेश वापस लिया

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दिल्ली सरकार ने बीते शुक्रवार को गुरु तेग बहादुर अस्पताल में कोविड मरीजों के शवों की निगरानी में छह टीचरों को लगाए जाने का फैसला लिया, जिस पर भारी विवाद के चलते ये फैसला तत्काल वापस लेना पड़ा।

उत्तर पूर्वी दिल्ली के एसडीएम के आदेश के मुताबिक, ‘ एमसीडी के टीचरों को तत्काल प्रभाव से षवों की निगरानी में लगाया जा रहा है, उन्हें जीटीबी अस्पताल प्रषासन के साथ समन्वय बनाकर काम करना होगा।’

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, इस आदेश में कहा गया कि टीचरोें को कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए शिफ्ट के मुताबिक काम करना होगा। इसके लिए वे जीटीबी के नोडल अधिकारी के संपर्क में रहेंगे।

गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग ने 15 अप्रैल को जिला प्रशासन से उसे कर्मचारी उपलब्ध कराने की मांग की थी।

नगर निगम शिक्षक संघ के महासचिव रामनिवास सोलंकी ने कहा, ‘यह डयूटी देश का निर्माण करने वाले शिक्षकों की गरिमा के अनुकूल नहीं है, हम इस फैसले को वापस लेने की मांग करते हैं। ’

संघ ने दिल्ली सरकार और एमसीडी से कोविड ड्यूटी में पहले लगाए गए टीचरों के वेतन के भुगतान की मांग भी की।

सोलंकी ने कहा कि कोरोना के दौरान टीचरों को चालान का पालन कराने और वैक्सीनेषन के दौरान स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात किया गया था।

उन्होंने कहा, ‘टीचर दिन में 12 घंटे तक काम कर रहे हैं और उनकी जगह काम करने वाला दूसरे किसी विभाग का कोई कर्मचारी भी नही है।’ जबकि डीडीएमए के निर्देषों के तहत ऐसा होना चाहिए था।

एसडीएमसी के 38 साल के टीचर नवीन भारदवाज ने बताया कि वह पिछले साल अक्टूबर से 14 घंटे की डयूटी कर रहे हैं। उनकी तैनाती द्वारका में है।

इंडियन एक्स्प्रेस से उन्होंने कहा कि, ‘मैं सुबह आठ बजे से दोपहर एक बजे तक स्कूल में काम करता हूं। उसे बाद दो बजे से मेरी ड्यूटी पोस्ट पर लगाई जाती है, जहां हम चार बजे से 12 बजे रात तक रहते हैं। मेडिकल के अलावा हमें और कोई छुट्टी नहीं मिलती।’

गौरतलब है कि जिस दिन लॉकडाउन लगाया गया था, उसी दिन 25,000 गेस्ट टीचर्स को दिल्ली शिक्षा निदेशालय ने डिसकांटीन्यू कर दिया। इसे लेकर केजरीवाल सरकार पर काफी गंभीर आरोप लगे हैं।

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