ये स्पेशल ट्रेनें मजदूरों के लिए नहीं, हैं भी तो ‘ठगी का धंधा’

By आशीष सक्सेना

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और गृह मंत्रालय की सहमति से रेल मंत्रालय ने जिन 15 जोड़ी स्पेशल गाडिय़ों का चलाना शुरू किया है, वे मजदूरों के लिए नहीं हैं। ऐसा सीधे तौर पर कहा नहीं जा रहा, लेकिन उनमें सफर के कायदे से ये बात साफ हो रही है।

वहीं, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का हाल ये है कि उनमें वैसे ही ठगी हो रही है, जैसे जननायक और जनसेवा एक्सप्रेस में कथित रेल पुलिस ही करती रही है। पहले दिन चली ट्रेनों में जो भी मजदूर सफर कर सके, उनका हाल यही रहा। जेब से ज्यादा जिंदगी कर्ज में डूबी नजर आई।

रेल मंत्रालय की ओर से जारी स्पेशल ट्रेनों के नियम कायदे सभी रेल मंडल जारी कर चुके हैं। इसमें बताया गया है कि टिकटों की बुकिंग आईआरसीटीसी वेबसाइट या मोबाइल एप के जरिए ऑनलाइन ही हो रही है। आईआरसीटीसी एजेंट या रेलवे एजेंट को बुकिंग की अनुमति नहीं है।

अधिकतम सात दिन एडवांस रिजर्वेशन करा सकते हैं। कन्फर्म टिकट ही बुक हो रहे हैं। गाड़ी के छूटने के 24 घंटे पहले तक टिकट कैंसिल कराया जा सकता है, लेकिन 50 प्रतिशत चार्ज काट लिया जाएगा। इस दौरान सभी तरह के टिकट काउंटर बंद हैं।

आईआरसीटीसी सीमित मात्रा में खाने-और बोतल बंद पीने के पानी का पानी दाम वसूलकर देगी, बाकी कोई और खानपान नहीं मिलेगा, किसी भी तरह से। खानपान का जो भी मिलेगा, उसका पैसा भी टिकट बुक करने के समय भी वसूल लिया जाएगा। किसी के पास अपना खाना और ओढऩे-बिछाने का सामान है तो ले जाए, रेलवे कुछ नहीं देगा।

train migrants

रेलवे के जारी इन साधारण नियमों को देखने से ही पता चलता है कि इसमें मजदूरों की सहूलियत के लिहाज से कुछ भी नहीं है। ऑनलाइन बुकिंग के लिए स्मार्टफोन इंटरनेट समेत होना जरूरी है, जो कि बड़ी संख्या में किसी के पास नहीं हैं।

टिकट बुकिंग करने के लिए जो तकनीकी महारत चाहिए, वह अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों पर ही नहीं होती, तो साधारण मजदूरों के लिए तो ये मुसीबत ही है। खाना और पानी का बंदोबस्त होता तो लोग सैकड़ों मील पैदल, साइकिल, रिक्शा, ट्रक, मिक्सचर या ऐसे ही साधनों से जाने को मजबूर नहीं होते।

सूखे हलक और खिंची हुई अंतडिय़ों वाले मजदूरों को बोतल बंद पानी या खाना बेचने की जुगत ही बता रही है कि ट्रेनों के इस बेहिसाब महंगे सफर के लायक इस देश के मेहनतकश नहीं समझे गए हैं। लेकिन ये भी माना गया है कि उनके पास जो भी है, वह भी इस तरह छीनकर सरकारी खजाने का हिस्सा बना लिया जाए।

लुटे-पिटे मजदूरों को भी लूटने से बाज नहीं आए

गुजरात से बरेली श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सफर करने वाले मजदूरों को ठेकेदार ने धोखा देकर चूना लगा दिया। बरेली जंक्शन पर स्पेशल ट्रेन से आए मजदूरों ने बताया कि ठेकेदार ने टिकट के नाम एक-एक आदमी के 500 से 800 रुपये तक पहले रखवा लिए। बड़े परिवारों के साथ लौटे कई मजदूरों की महीनों की बचत इसी में चली गई।

गुजरात के जिस एनजीओ को सूची बनाकर ट्रेन में बैठाने की जिम्मेदारी सौंपी गई , उसके लोगों ने यह काम ठेकेदारों के सुपुर्द कर दिया। ठेकेदारों ने कहा कि एनजीओ ने उनसे पैसे मांगे हैं।

कुछ ठेकेदारों ने टिकट के पूरे 525 रुपये लिए तो कुछ ने वहां ट्रेन में सवाल होने से पहले हुई थर्मल स्क्रीनिंग को मेडिकल परीक्षण बताकर 800 रुपये तक झटक लिए। हालांकि, रेलवे के अधिकारी ऐसी किसी भी जानकारी के होने से इनकार कर रहे हैं।

workers go fleeing curfew

लॉकडाउन के बाद इस हाल में थे मजदूर

बरेली के बल्लिया गांव की रहने वाली मुन्नी ने बताया कि हम जिस ईंट भ_े पर काम करते थे, उसका मालिक लॉकडाउन के बाद लगातार हम लोगों पर यूपी वापस लौटने का दबाव बना रहा था। एक-एक दिन बहुत मुश्किल से कटा।

प्रयागराज के हरीश चंद्र ने बताया, मैं गुजरात में एक धागा बनाने वाली फैक्टरी में काम कर रहा था। कई दिन से पूरा परिवार भूखा था। आते वक्त भी मालिक ने भूखे पेट ही भेज दिया। कुछ पैसा भी मालिक पर बकाया था लेकिन उसने देने से साफ इनकार कर दिया।

बनारस के सूरज पटेल ने बताया कि गुजरात में काफी समय से मेहनत मजदूरी कर रहा था। लॉकडाउन हुआ तो ऐसी मुसीबतें झेलीं जो पूरी जिंदगी याद रहेंगी। परिवार को खाना खिलाने लायक तक पैसे पास में नहीं बचे।

प्रयागराज के विजयचंद्र ने कहा कि कई हफ्तों से प्रयागराज में अपने घर लौटने के लिए परेशान था। धागा मिल मालिक ने काम बंद करा दिया था और खाने तक को पैसा नहीं दे रहा था।

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