तूतीकोरिनः प्रदर्शन में शामिल होने वाले इस शख़्स पर 133 मुकदमे लाद दिए

By मुकेश असीम

इस फोटो में पत्नी और दो बेटियों के साथ दिखाई दे रहे एक निजी अस्पताल में सहायक 32 साल के राजकुमार हैं।

इनके खिलाफ थुथूकुडी पुलिस ने 133 मुकदमे दर्ज किए हैं क्योंकि उन्होंने मई में तूतीकोरिन में  स्टरलाइट द्वारा अपने क्षेत्र के पर्यावरण के विनाश के खिलाफ हुए विरोध में भाग लिया था।

45 दिन जेल में रहने के बाद उन्हें 63 मामलों में जमानत के बाद रिहाई मिली थी पर पुलिस ने उन पर 70 और मामले दर्ज कर लिए।

पुलिस के अनुसार, ठीक एक ही समय राजकुमार कितनी ही जगहों पर तोड़फोड़ और आगजनी में लिप्त थे।

देखें वीडियो, जब पुलिस के निशानेबाज़ प्रदर्शनकारियों पर निशाना साध कर सीधे गोली मार रहे हैं।

 गुंडा एक्ट और एनएसए जैसे केस दर्ज हुए

उनके ही 30 साला भाई महेश कुमार पर 93 मामले दर्ज किए गए हैं।

32 साल के ही अरुण पर 72 मामले दर्ज किए गए हैं।

65 साल की फातिमा को अब तक खुद पर 6 मामलों का पता चला है।

करीब 200 लोगों के ख़िलाफ़ मामले हैं जिनमें से 20 के खिलाफ इस तरह कई-कई रिपोर्ट दर्ज की गईं हैं।

सात के खिलाफ एनएसए और 3 पर गुंडा कानून जैसे काले कानूनों में कार्रवाई की गई है।

जिन वकीलों ने मुकदमें लड़े, उन्हें भी जेल में डाल दिया गया

स्थानीय और तमिलनाडु के जिन वकीलों ने इन लोगों की रिहाई के लिए मुकदमे लड़े, उन्हें भी पुलिस ने गंभीर अपराधों में बंद करना शुरू कर दिया।

आंदोलनकारी संगठनों के कानूनी सलाहकर मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के वकील वंचिनाथन को 16 दिन जेल में रहना पड़ा।

उनकी पत्नी द्वारा हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डालने से वे एनएसए से बच गए तो उन पर राजद्रोह का आरोप दर्ज कर लिया गया।

जमानत मिली पर इस शर्त के साथ की मदुरै से बाहर नहीं जाएंगे।

थुथूकुडी में पुलिस गोलीबारी में हुई हत्याओं पर मानव अधिकार परिषद में वक्तव्य रख जेनेवा से लौटते ही थिरुमुरुगन गांधी भी 9 अगस्त को बेंगलुरु हवाई अड्डे पर ही गिरफ्तार कर लिया गया।

आम प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं के विरुद्ध इस तरह की आतंकित करने वाली दमन की योजनाबद्ध कार्रवाई निश्चित ही मात्र स्थानीय पुलिस का काम नहीं है।

यह हर प्रकार की असहमति और विरोध के खिलाफ एक फासिस्ट राजसत्ता का प्रतिशोध है जिससे आगे उनकी प्रतिरोध की हिम्मत टूट जाए।

मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जज हरिपरंथनम कहते हैं कि इसको भी तमिलनाडु तक नहीं बल्कि भीमा कोरेगांव के मामले में देश भर में मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की तरह व्यापक संदर्भ में देखना चाहिए।

(ये रिपोर्ट स्क्रॉल डॉट इन की एक रिपोर्ट पर आधारित है।)

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