घर देने का वादा कर बेघर किया, मलबों में जीने को मज़बूर है लोग: भूमिहीन कैंप

दिल्ली के गोविंदपुरी के क़रीब भूमिहीन कैंप पर जून के महीने में DDA का बुलडोज़र चला था लेकिन कोर्ट के स्टे के बाद कुछ घर बच गए जिनमें आज भी कई परिवार रह रहे हैं. इन परिवारों का आरोप है कि मलबे में तब्दील ये इलाक़ा नशा करने वालों का अड्डा बन गया है और यहां बिजली-पानी की सुविधा मिलने में भी दिक्कत हो रही है.

गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन से संगम विहार को जाती सड़क के रास्ते में कुछ कच्चे मकान (झुग्गियां) और मलबा ध्यान खींचता है. मलबे के बीच-बीच में टूटे घर दिखते हैं. कहीं सिर्फ हवा में खड़ी दीवारों पर खिड़की दरवाज़े नज़र आते हैं. इस मलबे पर खड़े होकर लगता है जैसे हाल ही में आए किसी भूकंप ने इस इलाक़े का भूगोल बिगाड़ दिया हो.

लेकिन इस जगह का भूगोल ही नहीं बल्कि लोगों की जिंदगी ही बदल गई है. इलाके का नाम भूमिहीन कैंप है जहां जून महीने में DDA (Delhi Development Authority) का बुलडोज़र चला था. लेकिन कोर्ट का स्टे ऑर्डर आने की वजह से कुछ घरों को छोड़ दिया गया. यह मामला कोर्ट में चल रहा है.

कई लाभार्थियों को प्रधानमंत्री ने फ्लैट की चाबियां सौंपी थी

लोगों का आरोप है कि इन्हें फ्लैट देने का वादा किया गया था लेकिन आज भी बहुत से परिवारों को घर नहीं मिले हैं. नवंबर 2022 की कुछ मीडिया रिपोर्ट पर नज़र डालें तो पता चलता है कि प्रधानमंत्री ने कालकाजी इलाके में ” यथास्थान झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास परियोजना” के तहत बने 3024 EWS (Economically Weaker Section) आवासों का उद्घाटन किया था.दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था जहां भूमिहीन कैंप के कई लाभार्थियों को प्रधानमंत्री ने फ्लैट की चाबियां सौंपी थी।

RTI से पता चला केवल 1862 लोगों को ही फ्लैट दिए गए

जून-जुलाई के महीने में भूमिहीन कैंप पर बुलडोज़र चला. हालांकि मामला कोर्ट पहुंच गया और कोर्ट ने स्टे लगा दिया. लेकिन इन सबके बीच वो लोग जिनके घर नहीं टूटे वो इसी खंडहर हो चुके मलबे के ढेर के बीच बने घरों में आज भी रह रहे हैं.

जबकि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक RTI से मिली जानकारी के पता चला कि भूमिहीन कैंप के 3 हज़ार झुग्गिवासियों में से केवल 1862 लोगों को ही फ्लैट दिए गए हैं. जब हमने इस मामले में एक स्थानीय से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये बात सच है और उन्होंने हमारे साथ वो RTI भी साझा की.

ज्यादातर मेहनत-मजदूरी और छोटे-मोटे काम धंधे करने वाले यहां के लोग इसी मलबे के बीच फंसे हैं.लोगों का आरोप है कि इलाका असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बन गया है. एक परिवार हमें अपने घर ले गया मलबे के पहाड़ के बीच से होते हुए हम उनके घर पहुंचे.
उनके घर से सटे एक खाली कमरे में दिनदहाड़े तीन-चार लड़के नशा कर रहे थे. जब हमने उनसे बातचीत करने की कोशिश की तो स्थानीय लोगों ने हमें ये कहते हुए रोक दिया कि ये नशे में हैं और तुरंत ही चाकू या ब्लेड निकाल लेते हैं.

नशा करने वालों का अड्डा बना

अरुण कुमार यादव ने अपने घर पर लगे रेड क्रॉस को दिखाते हुए बताया कि उनके घर को नहीं तोड़ा गया क्योंकि कोर्ट का स्टे ऑर्डर आ गया था. लेकिन हमें जो उनका घर दिखाई दे रहा था वो पूरी तरह से टूटा हुआ था.
हमने वजह जाननी चाही तो उनका कहना था कि ” जून में जब बुलडोज़र चला था तो हमारा घर नहीं तोड़ा गया था. हम यहीं रह रहे थे. लेकिन फिर यहां गुंडे आने लगे तो उन गुंडों ने हमारे ऊपर चाकू रख दिया. तब ये घर खाली कर दिया (15 दिन पहले) यहां पुलिस भी नहीं आती.
पुलिस को फोन करो तो वो कहते हैं यहां क्यों रह रहे हो. पानी नहीं आ रहा है. बिजली का मीटर उखाड़ कर ले गए.” खाली घर को इलाके के नशा करने वाले लड़कों ने तोड़ कर उसमें से लोहा निकाल लिया. अरुण कुमार की पत्नी हमें अपने टूटे घर से गायब लोहा का स्‍थान दिखा रही थीं.

”बीजेपी और डीडीए ने कहा था घर मिलेगा”

रमा भी अपने घर पर लगे रेड क्रॉस को दिखाती हैं. उनके घर को तोड़ने पर भी स्टे लग गया है. वे बताती हैं ”मैं यहां बचपन से रहती हूं. मैं यहीं पैदा हुई और मेरी शादी भी यहीं पर हुई. अब मैं अपने पति के साथ यहां रहती हूं.
पिछले डेढ़ महीने से पानी नहीं आ रहा है. चोर आ रहे हैं, दिन भर मैं यहीं रहती हूं और रात को मम्मी के घर चली जाती हूं. डर लगता है. लेकिन जब मुझे घर नहीं मिला तो मैं कहां जाऊं? हमें बोला गया था कि घर मिलेगा. ये बीजेपी की तरफ से बोला गया था. डीडीए वालों ने भी सर्वे किया था तो कहा था कि आपको घर मिल जाएगा मगर नहीं मिला. अभी जिस घर में हम रह रहे हैं उसका स्टे ऑर्डर आ गया है. दिन भर तो हम रह सकते हैं लेकिन रात को हम कैसे रहें. हमारा सामान तक चोरी हो गया.”

यहीं हमें दुर्गा देवी भी मिली जिन्होंने अपने दरवाज़े पर तीन-तीन नोटिस लगा रखे थे. पूछने पर पता चला कि कोर्ट का स्टे ऑर्डर है और डीडीए के ऑर्डर की कॉपी हैं. दुर्गा भी बताती हैं कि ”बहुत ही डर-डर कर यहां रह रहे हैं. नशा करने वाले घर में घुस कर चोरी कर रहे हैं लेकिन हम कहां जाएं मजबूरी में रह रहे हैं.”

मलबे के ढेर पर बच गए घर किसी टापू की तरह लग रहे थे. हमें यहां सरोज सिंह नाम की महिला मिलीं. सरोज सिंह ने जो बताया वो बहुत ही हैरान करने वाला था. एक ही घर में ऊपर नीचे वो अपनी जेठानी के साथ रहती थीं. उन्हें सरकार की तरफ से फ्लैट मिल गया लेकिन उनकी जेठानी को नहीं मिला. किस आधार पर उन्हें घर मिल गया और उनकी जेठानी को नहीं मिला.
हमने समझने की कोशिश की तो सरोज बताती हैं ”श्री लाल चौक पर घर मिल गया है. दो कमरों का घर है. जो घर मिला है वो मेरी सास के राशन कार्ड से मिला है. हम अलग नहीं रहते थे. सास थी तो हमारा नाम सास के राशन कार्ड पर ही था तो हमें घर सास की वजह से मिला है. लेकिन हमारी जेठानी का राशन कार्ड अलग था.” सरोज की सास तो अब जिन्दा नहीं हैं लेकिन उन्हें घर मिल चुका है. वो ख़ुश तो हैं कि उन्हें घर मिल गया लेकिन परेशान हैं कि जेठानी को घर नहीं मिला.

दरअसल सरोज सिंह का पूरा परिवार एक ही घर में रहता था ऊपर-नीचे. लेकिन शादी के बाद दोनों भाइयों ने परिवार के मुताबिक अलग-अलग राशन कार्ड बनवा लिए. तो जिस भाई के राशन कार्ड पर उनकी मां का नाम था उस राशन कार्ड के आधार पर उन्हें घर मिल गया. लेकिन उसी घर में रह रहे दूसरे भाई को घर नहीं मिला. अब ऐसे वो क्या करे उन्हें समझ नहीं आ रहा है.

”दो बिल्डिंग में क़रीब 1200 घर खाली पड़े हैं”

सरोज बताती हैं कि ” वैसे तो फ्लैट खाली पड़े हैं. दो बिल्डिंग में क़रीब 1200 घर खाली पड़े हैं. देने में आए तो इन लोगों को देकर भी बच जाएंगे. लेकिन डीडीए वाले दे नहीं रहे हैं. हमारे लिए ही तो बने हैं वे घर, लेकिन नहीं दे रहे.”

”सारे प्रूफ होने के बावजूद घर नहीं मिला”

सरोज सिंह के पड़ोस में रीता रहती हैं. उन्हें भी घर नहीं मिला. रीता भी उसी मलबे के बीच में बने घर में रह रही हैं.
वे बताती हैं कि ” हमारा ऊपर नीचे घर है. लेकिन सर्वे में इसे एक ही घर मान लिया गया. फिर भी हमें घर नहीं मिला. हमारी क्या गलती है. हमारे पास सारे प्रूफ होने के बावजूद घर नहीं मिला. हमें कहा कि वोटर आईडी में गलती है. वो भी ठीक करवाया. उसमें नम्बर थोड़ा चेंज हो गया था. तो वो ग़लती तो वोटर आईडी बनाने वालों की थी. हमने तो सारे प्रूफ दे दिए, फिर भी हमारा घर कैंसिल कर दिया. अब हम क्या करें, जबकि हमारा आधार कार्ड, बैंक के कागज सब यहीं के एड्रेस पर हैं, लेकिन उन्होंने नहीं माना.”

वे आगे कहती हैं कि ” रात को यहां डर लगता है. चोर आते हैं. रात को कुंडी बजाते हैं. चाकू लेकर आते हैं. क्या करें, कहीं कोई जगह नहीं है जहां चले जाएं. यहां पानी भी नहीं आ रहा है.”

”नेहरू प्लेस की सड़कों पर रहना पड़ेगा’’

हरी भी यहीं रहते हैं. वे बताते हैं कि ”यहां जिन घरों पर स्टे लगा था उन्हें तोड़ दिया गया. जबकि डीडीए के अधिकारियों को पता था कि कोर्ट में केस चल रहा है.”
वहीं एक और शख़्स बेहद नाराज़गी के साथ कहते हैं कि ”अभी भी डीडीए के अधिकारियों को पता है कि केस कोर्ट में है. फिर भी वो इंदिरा कैंप और नवजीवन कैंप का सर्वे कर रहे हैं और उन्हें घर दे देंगे. और जब जगह नहीं बचेगी तो हमें कह दिया जाएगा कि जगह नहीं है. फिर हम कहां रहेंगे? फिर हमें नेहरू प्लेस की सड़कों पर रहना पड़ेगा.”
वे भी दावा करते हैं कि ”क़रीब 1200 फ्लैट अभी भी खाली पड़े हैं और इसकी जानकारी डीडीए के अधिकारियों को भी है. यहां के लोगों को भी है.”

लोगों ने कहा कि ”आप देखिए चारों तरफ मलबा ही मलबा है. लोग छोटे-छोटे बच्चों के साथ यहां रह रहे हैं. लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई ठिकाना नहीं हैं वो जाएं तो जाएं कहां. ये मलबा अभी तक हटा क्यों नहीं. बुलडोज़र चलने के बाद उसे हटा देना चाहिए था. लेकिन क्यों नहीं हटाया गया?”

यहां चोरी की ऐसी-ऐसी वारदात हो रही हैं. नशा करने वाले हमें हमारे ही घर में बंद करके, हमारी आंखों के सामने से सामान ले कर जा रहे हैं. SHO साहब के पास उसकी शिकायत है. लेकिन इन सबके बाद हमें ये कहा जा रहा है कि रह क्यों रहे हो. अब हम यहां नहीं रहे तो कहां रहें? घर हमारा यहां है.”

”रिकार्ड्स में भूमिहीन कैंप ख़त्म हो गया”

चंदन, कुंदन कुमार शाह और हरि शंकर बताते हैं कि यहां 1200 परिवार बेघर हो गए हैं. ये 1200 वो परिवार हैं जिन्हें घर नहीं मिले हैं. यहां जितने भी मंत्री, अधिकारी आते हैं कहते हैं कि तीन हज़ार घर दे दिए गए हैं ऑन रिकॉर्ड है ये.

हमारे सांसद बिधूड़ी जी ने बोला है, बीजेपी के दूसरे नेता, डीडीए के अधिकारी भी कह रहे हैं. ये लोग वोट लेने के लिए हमारे पास क्यों आते हैं. क्यों बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं. अब हम क्या करें.
ये लोग चिंता ज़ाहिर करते हैं कि जिन लोगों के घरों पर स्टे लगा है उनकी पहचान अब कैसी होगी? वे बताते हैं कि ”आज की तारीख़ में हमारे पास घर नहीं है. अगले साल कुछ लोगों के बच्चों के एडमिशन होने हैं. रिकॉर्ड में तो भूमिहीन कैंप साफ हो चुका है. कल को हमें कहा जाएगा तुम कहां रहते हो, भूमिहीन कैंप तो है ही नहीं. रिकॉर्ड्स में तो ये आ गया.
लेकिन वहां ये नहीं लिखा होगा कि मामला कोर्ट में है. स्टे है और इतनी झुग्गियां बची हैं ऐसा कोई नहीं जानता, उनके लिए तो भूमिहीन कैंप ख़त्म हो गया.”

इन लोगों का कहना है कि जिन घरों को तोड़ने पर कोर्ट ने स्टे लगा दिया है और जो लोग इसी मलबे में बचे अपने घरों में रह रहे हैं अब उनके बिजली के मीटर हटाए जा रहे हैं. उनको पानी नहीं मिल पा रहा है. चूंकि चारों तरफ मलबा ही मलबा है तो नालियां बंद हो चुकी है. बिना बुनियादी सुविधा के, नशा करने वाले आपराधिक तत्वों के बीच ये लोग डर-डर कर जीने को मजबूर हैं.

नेताओं से मदद की गुहार

लोगों के मुताबिक उन्हें बीजेपी सरकार से अब कोई उम्मीद नहीं है. लेकिन आम आदमी पार्टी विधायक आतिशी से उन्हें बहुत उम्मीदें हैं. वे बार-बार उनसे मिलकर अपनी परेशानी बता कर मदद मांग रहे हैं लेकिन वहां भी अब इनकी उम्मीदें टूटती नज़र आ रही हैं.

23 सितंबर को भूमिहीन कैंप के इन लोगों ने कालकाजी में आतिशी सिंह के ऑफिस जाकर उनसे बात करने की कोशिश की. लेकिन वहां उन्हें साफ कह दिया गया कि आतिशी सिंह शहर में नहीं हैं. ये लोग बारिश में, रात आठ बजे तक आतिशी सिंह के ऑफिस के बाहर बैठे रहे. सौ के क़रीब इन लोगों में बुजुर्ग महिलाओं से लेकर डेढ़ महीने के बच्चे के साथ पहुंची महिलाएं दिखीं.

atishi office

यहां हमें आरती मिलीं वे अपनी दस महीने की बच्ची के साथ पहुंची. वे बताती हैं कि ” भूमिहीन कैंप में रहती हूं. हमें मकान नहीं दिया गया. बोला गया था कि मकान दिया जाएगा लेकिन दिया नहीं. कहते हैं तुम्हारा राशन कार्ड नहीं है. तुम्हारे आधार कार्ड में गलती है.”
आरती आगे बताती हैं कि वो कितनी मुश्किलों के साथ आज भी अपने बच्चों के साथ उसी मलबे के बीच बचे अपने घर में रह रही हैं ”बहुत डर लगता है लेकिन क्या करें, दो बच्चे और हैं एक 6 साल का और एक 9 साल का जिन्हें मैं घर पर ही छोड़ कर इस प्रोटेस्ट में आई हूं. बच्चे घर में अकेले हैं. पति काम पर गए हैं.”
आरती कहती हैं कि ”मेरा बिजली का मीटर काट कर ले गए हैं. पिछले डेढ़ महीने से बिना बिजली के रह रही हूं – छोटे बच्चों के साथ. हमारी परेशानी का कोई हल नहीं निकाल रहे हैं. वोट चाहिए होता है तो आ जाते हैं वर्ना कोई मतलब नहीं है हमसे.”

यहां हमें रेहाना और शाहीन भी मिलीं. रेहाना अपने चार महीने के बच्चे और शाहीन डेढ़ महीने के बच्चे के साथ प्रोटेस्ट में पहुंची थीं. उन्होंने बताया कि ” इन्हीं हालात में मेरी डिलीवर हुई थी. सोचिए कैसे हम रह रहे होंगे. जब हमारे घर टूट रहे थे तब भी डीडीए वाले वीडियो बना रहे थे. उन्होंने हमें ऐसी हालत में देखा लेकिन रहम नहीं आया. हम आज भी भूमिहीन कैंप में रह रहे हैं. हमें घर नहीं मिला है. बिजली तो आ रही है लेकिन पानी की बहुत दिक्कत हो रही है. नाली की दिक्कत है. मच्छर बहुत हैं. हमारे घर में चोरी हो गई थी. हमें घर देने के लिए कहा गया था. सर्वे हुआ था. लेकिन अब वे कह रहे हैं कि पर्सनल राशन कार्ड होने चाहिए. श्रीलाल चौक पर हमें घर तो दिखाए थे लेकिन आज भी हम झुग्गी में ही पड़े हैं.”
हमने इन दोनों से पूछा कि किराए के घर में क्यों नहीं गए तो इनका जवाब था ”हम कितना किराया दे पाएंगे, कोठी में काम करते हैं. आदमी मजदूरी करता है. कितना किराया भर लेंगे. यहां तो ख़ुद का है. सिर पर छत हो तो लोग खाली पेट अपने घर में रह सकते हैं.”

चंदन कुमार शाह कहते हैं कि ”मैं दो महीने से आतिशी जी से मिलने के लिए संघर्ष कर रहा हूं. मिलने का मुझे समय नहीं दिया जा रहा है. लेकिन जब हमारा नेता हमसे मिलेगा ही नहीं, हमसे बातचीत नहीं होगी तो फिर हमारे पास क्या रास्ता रह जाता है. हम उनसे मिलकर अपनी समस्या बताना चाहते हैं. हम अपनी समस्या अपने नेता को नहीं बताएंगे तो किसे बताएंगे. यही पब्लिक है भूमिहीन कैंप की जिन्होंने एकतरफ वोट डालकर इन्हें विधायक बनाया था वो भूल गए. अपना समय भूल जाते हैं. आज भूमिहीन कैंप के लिए टाइम नहीं है. वहां पर इतना बुरा हाल है. डेमोलिशन के दौरान गलियां बंद हो गई हैं. लाइट, पानी निकासी सब तोड़ दिया गया है. बहुत मुश्किल से लोग वहां रह रहे हैं.”

ये लोग कहते हैं कि ”हमने उनसे बात की थी. टाइम मांगा था. लेकिन हमें टाइम नहीं दिया जा रहा है.अगर हमने विधायक को वोट दिया है तो हम विधायक से नहीं मिल सकते क्या? मुख्यमंत्री को वोट दिया है तो मुख्यमंत्री से मिलेंगे लेकिन हमें रोका जा रहा है. डीडीए, दिल्ली सरकार की गलती बता रहा है. वहीं केंद्र कह रहा है 3 हज़ार घर दे दिए. हम क्या करें. हम जनप्रतिनिधि के पास ही तो जाएंगे ना. क्या हमने वोट देकर गलती कर दी. हम हमारी विधायक के अगेंस्ट नहीं हैं. हम दिल्ली सरकार के अगेंस्ट नहीं हैं. मेरी हाथ जोड़कर विनती है दिल्ली सरकार से. आतिशी जी से कृपा हमसे मिलें और मोदी सरकार से भी गुहार लगाता हूं कि जो लोग बेघर हुए हैं उन्हें घर दे दीजिए. प्लीज अरविंद जी हमसे मिलिए.”

मलबे के ढेर के बीच रह रहे लोगों को समझ नहीं आ रहा कि क्या करें. मामला कोर्ट में है जहां से अब तक सिर्फ तारीख़ पर तारीख़ मिली है. जबकि बिजली-पानी जैसे बुनियादी सुविधा से महरूम इन लोगों को समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या करें. ये लोग लगातार विरोध-प्रदर्शन भी कर रहे हैं लेकिन उसका भी किसी पर कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा. ऐसा लग रहा है जैसे भूमिहीन कैंप के ये लोग जिस तरह से पेपर से गायब हो गए हैं वैसे ही इनका वजूद भी ख़त्म हो गया हो.

(न्यूज़क्लीक की खबर से साभार )

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