मुंबई : 580 सफाई कर्मचारियों को परमानेंट करने का आदेश, रंग लाया 25 साल का संघर्ष

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औद्योगिक न्यायालय ने 25 साल पुराने एक मामले में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को 580 सफाई कर्मचारियों को नगर निकाय के स्थायी कर्मचारी बनाने का निर्देश दिया है।

आदेश में यह भी कहा गया है कि मजदूरों को उनकी सारी बकाया राशि लौटा दिया जाए और नगर परिषद में उनका दर्जा स्थायी कर्मचारियों का करें।

दरअसल दादाराव पाटेकर ने 1996 में बीएमसी में सफ़ाई कर्मचारी के तौर पर अपनी सेवाएं शुरू की थीं। 1999 में उन्हें ठेके पर काम करने के लिए ‘स्वयंसेवी’ के तौर पर शामिल कर लिया गया। इसके बाद उन्होंने स्थायी कर्मचारी के तौर पर अपनी पहचान पाने के लिए लंबी न्यायिक लड़ाई लड़ी।

25 साल बाद औद्योगिक न्यायालय ने आखिरकार MCGM को निर्देश दिया कि वे पाटेकर और 580 सफाई कर्मचारियों की सारी बकाया राशि लौटा दें और नगर परिषद में उनका दर्जा स्थायी कर्मचारियों का करें।

पाटेकर दादाराव कहते हैं, “मैं खुश हूं। हम सभी को स्थायी कर्मचारी नियुक्त कर दिया गया है। बीते सालों में चाहे गर्मी हो या बारिश, हम हर एक दिन काम पर जाते रहे हैं। लेकिन BMC हमारे काम को मान्यता नहीं दे रही थी। आखिरकार कोर्ट ने हमें न्याय दिया है, जिसका हमें लंबे वक़्त से इंतज़ार था।”

लेकिन जिन 580 सफ़ाई कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारी के तौर पर पहचान मिली है, उनमें से 54 बीते 22 सालों में जान गंवा चुके हैं।

इन 580 कर्मचारियों में शामिल अरुण दाहिवालकर की 2014 में मौत हो गई थी। तबसे उनकी पत्नी घरेलू नौकर के तौर पर काम कर अपने बच्चों की परवरिश कर रही थीं। उन्होंने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे उन्हें उनके बच्चों को बड़ा करने में मदद मिलेगी।

वह कहती हैं, “हर तारीख पर अरुण कोर्ट जाते थे। उन्हें स्थायी होने की बहुत आशा थी। वह यह बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि उनकी लड़ाई का कोई मतलब ही ना निकले। आज वह जहां भी हैं, वहां बहुत खुश होंगे।”

MCGM के खिलाफ सफाई कर्मचारियों का यह लंबा संघर्ष आसान नहीं था। 1999 में दायर किए गए केस के पहले दिन से ही परिषद लगातार कहती रही कि यह लोग उनके कर्मचारी नहीं हैं।

परिषद का कहना था कि “यह लोग सफाई विभाग में काम करने वाले स्वयंसेवी हैं। चूंकि यह लोग स्वयंसेवी हैं, इसलिए इन्हें वेतन नहीं दिया जा सकता, लेकिन परिषद इन्हें भत्ता देती है।” पिछले 22 सालों से परिषद यही कहती आई।

कचरा वाहतुक श्रमिक संघ के नेता दीपक भालेराव ने कोर्ट में इस तर्क को बदल दिया। भालेराव ने कहा, “बीएमसी ने सफाई कर्मचारियों की भर्ती के लिए विज्ञापन दिया था। यह स्वयंसेवकों के लिए नहीं था। यह लोग सड़कों और कचरा वाहनों में जो काम करते हैं, वह सफाई कर्मचारियों से किसी भी तरह अलग नहीं है। ऐसे मामलों में इन लोगों को स्वयंसेवी कहना, सिर्फ उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा ना देने की कोशिश है।”

एक दूसरी चुनौती काम वाले दिनों की थी। किसी कर्मचारी को स्थायी घोषित करने के लिए, संबंधित शख्स को 240 दिन तक लगातार काम करना होता है। लेकिन MCGM अलग-अलग सामाजिक संगठनों को सफाई का काम ठेके पर दे देती, यह संगठन सिर्फ सात महीने या 220 दिन का ही काम देते। यह कागज पर था।

यही सफाई कर्मचारी लगातार काम करते रहे, लेकिन उनका कांट्रेक्ट हर सात महीने में एक संगठन से दूसरे के साथ बदल दिया जाता। इस तरह इन लोगों को स्थायी कर्मचारी बनने से रोका जा रहा था।

इसका खुलासा कामगार संगठन के महासचिव मिलिंद रानाडे ने किया, उन्होंने साबित किया कि कामगारों के साथ इन संगठनों और परिषद द्वारा धोखा किया जा रहा है।

MCGM में सफ़ाई कर्मचारियों की संख्या 28,082 है। लेकिन यह संख्या आखिरी बार 1995 में दर्ज की गई थी। तबसे मुंबई कई गुना ज्यादा बढ़ चुका है।

भालेराव कहते हैं, “लेकिन BMC सफाई कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के लिए तैयार नहीं थी। कांट्रेक्ट के तहत काम पर रखने वाली यह व्यवस्था पूरी तरह फर्जी थी। कोर्ट के आदेश से यह साबित भी हो गया है।”

MCGM ने तर्क दिया कि महाराष्ट्र की राज्य सरकार भी उन्हें इस संबंध में आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि राज्य सरकार ने सफाई कर्मचारियों के बारे में लाड-पेज आयोग की अनुशंसाओं को माना है। आयोग ने सफाई कर्मचारीयों को स्थायी करने की सलाह दी थी।

लेकिन यह अकेला मामला नहीं है। कचरा वाहतुक मजदूर संघ ने 2006 में 1,240 मजदूरों और 2017 में 2,700 मजदूरों के लिए भी केस जीता था। फिलहाल 5,876 सफाई कर्मचारियों वाले तीन ऐसी ही केस कोर्ट में लंबित पड़े हुए हैं।

कचरा वाहटुक श्रमिक संघ के महासचिव मिलिंद रानाडे कहते हैं, ”हमें भरोसा है कि हम उनके सभी केस जीतेंगे। BMC के सफ़ाई कार्य के लिए ऐसे 8000 कांट्रेक्ट के तहत काम करने वाले कामग़ार हैं। BMC को इन सभी को स्थायी बनाना चाहिए। हम अपनी बात साबित करेंगे और जीतकर रहेंगे।”

गौरतलब है कि कचरा वाहटुक श्रमिक संघ ने इससे पहले 2006 में 1240 श्रमिकों और 2017 में 2700 श्रमिकों के लिए स्थायीता हासिल की थी।

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