“गुजरात मॉडल का असली चेहरा: 3 साल में 700 मज़दूरों की मौत, श्रम कानूनों को रखा गया ताक पर”

fire breaks out at chemical factory gujraat

लगभग हर सेक्टर में मज़दूरों की सुरक्षा में कोताही बेहद आम बात है, कारखानों – फैक्टरियों में खर्च कम करने के नाम पर अगर कोई कम सबसे पहले करती हैं तो वो होता है मज़दूरों की सुरक्षा उपायों में कटौती.

फिर चाहे वो बड़ी-बड़ी ऑटोमोबाइल्स कंपनियां हो,विनिर्माण क्षेत्र हो, हैवी मशीनरी हो या फिर केमिकल फैक्ट्री ही क्यों न हो.

गुजरात में अभी कुछ दिनों पहले ही ईथर केमिकल फैक्टरी में विस्फोट हुआ था जिसमें 9 मज़दूरों की मौत हो गयी थी और 24 मज़दूर घायल हो गये थे.

उसके कुछ समय बाद ही 5 दिसंबर को एक और केमिकल फैक्टरी में दो मज़दूरों की मौत हो गयी. ये दोनों मज़दूर बिहार के थे.

यह वही गुजरात है जिसका मॉडल 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी की छवि को चमकाने के लिए किया गया था और पूरे भारत को गुजरात मॉडल की तर्ज़ पर विकसित करने का सपना पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने दिखाया था.

लेकिन इस गुजरात मॉडल की असलियत क्या है इसको हम लगातार हो रही मज़दूरों की मौत से समझ सकते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक पिछले तीन सालों (2020-2023) में गुजरात में 587 औद्योगिक दुर्घटनाओं में 700 मज़दूरों की मौत हो चुकी है और 213 मज़दूर घायल हुए हैं.

इन्हीं 3 सालों में कानूनों के उल्लंघन के 599 आपराधिक मुकदमे दर्ज़ हुए हैं. ये वो आंकड़े हैं जो दर्ज़ हुए हैं.

भारत में असल में दर्ज़ होने वाले आंकड़ों की संख्या वास्तविक आंकड़ों से कम होती है

इन औद्योगिक दुर्घटनाओं की एक चिंताजनक तस्वीर यह है कि ये आंकड़े कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं.

2020-2021 से 2022-23 के बीच औद्योगिक दुर्घटनाओं में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2020-21 के बीच जहाँ 179 दुर्घटनाएं हुई थी वहीं 2022-23 में ये बढ़कर 210 हो गयी.

इनमें मरने वाले मज़दूरों की संख्या भी 2020-21 में 217 की तुलना में 2022-23 में 249 हो गयी.

2020-23 के बीच सरकारी आंकड़ों के अनुसार 16,770 शिकायतें मज़दूरों के शोषण की प्राप्त हुईं.

इन शिकायतों में भी इन तीन सालों में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2020-21 में जहाँ शिकायतें 5063 थीं वहीं 2022-23 में ये बढ़कर 6209 हो गयीं.

जहां एक तरफ मज़दूरों के शोषण-उत्पीड़न की घटनायें बढ़ रही हैं, फैक्टरियों में उनकी मौतों की संख्या बढ़ रही है तो ऐसे में सरकार की तरफ से फैक्टरियों पर निगरानी बढ़नी चाहिए.

जाँच इस बात की होनी चाहिए की फैक्टरियों में सुरक्षा के क्या इंतज़ाम हैं ? क्या फैक्टरियों में श्रम कानूनों का सही तरीके पालन हो रहा ?
लेकिन हो इसके उल्ट रहा हैं. सरकार द्वारा इन फैक्टरियों को खुला हाथ दे दिया गया हैं.

फैक्ट्री में निरीक्षण के पदों पर नहीं की जा रही बहाली

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के स्टैंडर्ड रिफरेन्स नोट 2022 के अनुसार 2021 तक गुजरात में 153 फैक्टरी इंस्पेक्टर के पद थे, जिसमें से मात्र 78 इंस्पेक्टर ही काम कर रहे थे.

इसी तरह 5 मेडिकल फैक्टरी इंस्पेक्टर के पद थे जो खाली हैं.

अभी हाल में जिन फैक्टरियों में दुर्घटनाएं हुईं हैं वे केमिकल की थीं। आंकड़े के अनुसार 4 केमिकल फैक्टरी इंस्पेक्टर के पद होने के बावजूद उनमें से 3 पद खाली हैं.

केमिकल फैक्टरियों में दुर्घटना के बाद क्या सरकार इन पदों को भरेगी. इसी तरह फैक्टरियों में स्वच्छता की निगरानी के लिए 4 पद हैं लेकिन उनमें किसी की भी नियुक्ति नहीं हुई है.

अगर ये सभी पद भर भी दिये जाएं तो क्या फैक्टरियों में निगरानी के लिए ये पर्याप्त होंगे?

गुजरात में 48,920 फैक्टरियां पंजीकृत (इनमें से 36,750 चल रही हैं) हैं जिनमें 19,83,431 मज़दूर काम करते हैं.इन मज़दूरों में 2,01,640 महिलाएं हैं.

ऐसे में वाकई फैक्टरियों में या अन्य जगहों पर काम कर रहे मज़दूरों की चिंता सरकार को है, तो उसे जहाँ फैक्टरी निरीक्षकों के पद बढ़ाने होंगे वहीं श्रम कानूनों को सख्त बनाना होगा.

मोदी का गुजरात मॉडल मज़दूरों के लिए न होकर पूंजीपतियों के लिए था. जहाँ पूंजीपतियों को जमीन, पानी, बिजली सस्ती दरों पर मिलनी थीं ,वहीं उन्हें मज़दूरों के श्रम की लूट की पूरी छूट होनी थी.

मोदी का पूंजीपतियों को साफ संदेश था कि अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो ऐसा मॉडल वे पूरा देश में लागू कर देंगे, और 4 श्रम कानूनों को लागू करके और तमाम श्रम क़ानूनों को बदलकर वे ऐसा करने में लगे हैं.

गुजरात में मज़दूरों की हो रही ये मौतें दरअसल हत्याएँ हैं जो पूरे देश में मज़दूरों की हो रही मौतों (हत्याओं) का एक हिस्सा हैं.

(नागरिक अखबार की खबर से साभार)

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