“यूनाइटेड ऑटोमोबाइल वर्कर्स यूनियन: होंडा, हुंडई और वोक्सवैगन कर रहे हैं श्रम कानूनों का उल्लंघन”

UAW Protest

यूनाइटेड ऑटोमोबाइल वर्कर्स यूनियन ने अपने हालिया दिए एक बयान में दुनिया की कई बड़ी ऑटोमोबाइल्स कंपनियों पर श्रम कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया है.

हाल ही में यू.ए.डब्ल्यू. (UWA) ने ऐसी ऑटोमोबाइल्स कम्पनियाँ जहाँ मज़दूरों का कोई संगठन नहीं है ,वहां मज़दूरों को संगठित करने के लिए अभियान की शुरुआत की थी.

इस अभियान के शुरू होने के एक सप्ताह बाद ही UWA ने होंडा, हुंडई और वोक्सवैगन पर श्रम कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया है.

यूनाइटेड ऑटोमोबाइल वर्कर्स यूनियन ने सोमवार को तीन विदेशी वाहन निर्माताओं पर अनुचित श्रम प्रथाओं का आरोप लगाया, और दावा किया कि उन्होंने अमेरिकी संयंत्रों में यूनियन के लिए समर्थन बनाने के कर्मचारियों के प्रयासों में हस्तक्षेप किया है.

इसके साथ ही यूनियन ने कहा कि ‘उसने राष्ट्रीय श्रम संबंध बोर्ड के समक्ष आरोप दायर किया है कि वाहन निर्माता – होंडा, हुंडई और वोक्सवैगन ने मज़दूरों को यू.ए.डब्ल्यू. पर चर्चा करने से रोकने की कोशिश की थी. साथ ही कार्यस्थल पर कंपनियों ने उन मज़दूरों के साथ भेदभाव भी किया जिन्होंने इस चर्चा में भाग लिया.’

ख़बरों की माने तो यू.ए.डब्ल्यू. ने दो सप्ताह पहले इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाले घरेलू निर्माताओं टेस्ला, ल्यूसिड और रिवियन के साथ-साथ 10 विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियों में जहाँ मज़दूरों का कोई संगठन नहीं है, उनको एकजुट करने की बात कही थी.

हालांकि यू.ए.डब्ल्यू. ने बीते समय में कई कंपनियों में यूनियन बनाने की कई असफल कोशिश की है.

यू.ए.डब्ल्यू. सोमवार को जारी अपने बयान में कहा गया कि “ग्रीन्सबर्ग, इंडियाना में होंडा के प्लांट और मोंटगोमरी, अलाना में हुंडई के प्लांट के सैकड़ों कर्मचारियों तथा टेनेसी के चट्टानूगा में वोक्सवैगन फैक्ट्री के 1,000 से अधिक कर्मचारियों ने यूनियन में शामिल होने के लिए समर्थन व्यक्त करते हुए कार्ड पर हस्ताक्षर किए थे”.

मज़दूरों को दी जा रही है काम से निकाले जाने कि धमकी

यूनियन से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि ‘होंडा में मज़दूरों को संगठन बनाने की गतिविधियों के कारण प्रबंधन द्वारा लक्षित और निगरानी किए जाने की रिपोर्ट मिली है. जबकि हुंडई में प्रबंधन द्वारा मज़दूरों के यूनियन के समर्थन को लेकर जारी सामग्रियों को गैरकानूनी रूप से जब्त, नष्ट और प्रतिबंधित कर दिया है.”

वही यूनियन ने वोक्सवैगन पर आरोप लगते हुए कहा कि “यूनियन के बारे में बात करने के लिए मज़दूरों को परेशान किया और उनको नौकरी से निकाले जाने की धमकी भी दी. ब्रेक रूम में यूनियन समर्थक सामग्री को जब्त कर लिया और नष्ट कर दिया”.

वही वोक्सवैगन ने अपने बयान में कहा कि” वो अपने ऊपर लगे इन आरोपों को गंभीरता से लिया है और वह मामले की जांच करेगी. साथ ही वो मज़दूरों के इस अधिकार का सम्मान करती है की कार्यस्थल में उनके हितों का प्रतिनिधित्व किसे करना चाहिए.”

होंडा ने कहा कि “हमने यू.ए.डब्ल्यू. का समर्थन या विरोध करने वाली गतिविधि में शामिल होने के मज़दूरों के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं किया है और न ही करेंगे.”

वही हुंडई ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहा कि ‘इस मामले में यूनियन का आरोप सही नहीं है. मज़दूर यूनियन का सदस्य बनना चाहते हैं या नहीं ये उनका अधिकार है और कंपनी उसमें हस्तक्षेप नहीं करती.’

यू.ए.डब्ल्यू. यूनियन के अध्यक्ष शॉन फेन की ओर से जारी एक बयान में उन्होंने तीनों कंपनियों पर जमकर निशाना साधा.

बेहतर कार्यस्थल बनाने कि बजाए मज़दूरों से छीने जा रहे उनके अधिकार

उन्होंने कहा “ये कंपनियां मज़दूरों के लिए उचित काम का माहौल देने के बजाय ऑटोकर्मियों को बैठाने और चुप रहने की कोशिश में कानून तोड़ रही हैं. लेकिन मज़दूरों ने ये साबित कर दिया है कि बेहतर जीवन के लिए बोलने और संगठित होने के उनके अधिकार को छिना नहीं जा सकता.”

यू.ए.डब्ल्यू. तीन डेट्रॉइट वाहन निर्माताओं फोर्ड, जनरल मोटर्स और स्टेलेंटिस (जो जीप, क्रिसलर सहित कई गाड़ियां बनती हैं) के खिलाफ छह सप्ताह की सफल हड़ताल के बाद अब विदेशी स्वामित्व वाले संयंत्रों को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा है .

यूनियन का कहना है कि इन विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियों को भी मज़दूरों को वेतन वृद्धि और अतिरिक्त लाभ प्रदान करने वाले अनुबंध करने ही पड़ेंगे.

यू.ए.डब्ल्यू. का कहना है कि वो न सिर्फ होंडा, हुंडई और वोक्सवैगन बल्कि कई और विदेशी कंपनियां टोयोटा, निसान, बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज-बेंज, सुबारू, माज़दा और वोल्वो में भी मज़दूरों को संगठित करने के अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ती रहेगी.

मालूम हो यू.ए.डब्ल्यू. के हड़ताल के बाद फोर्ड, जी.एम. में नए अनुबंध और स्टेलेंटिस ने साढ़े चार साल की अवधि के अंत में शीर्ष प्रति घंटा वेतन को पहले के 32 डॉलर से बढ़ाकर 40 डॉलर कर दिया है.

(द न्यूयोर्क टाइम्स कि खबर से साभार)

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